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क्या से क्या हो गए देखते-देखते…

चंडीगढ़ः नवजोत सिद्धू का स्टाइन इस बार उन्हीं पर भारी पड़े दिखाई दे रहा है।थ उनके रवैये को देखकर कांग्रेस आलाकमान भी अड़ गया है। पार्टी ओर से सिद्धू को स्पष्ट संदेश दिया गया है कि उनकी हर जिद अब पूरी नहीं होगी। नवजोत सिद्धू के अचानक फैसले लेने का स्टाइल समर्थकों को खूब रास आता रहा है। उनके बयान से लेकर हर बात पर अड़ जाने की खूब चर्चा रही। सिद्धू की जिद के आगे पार्टी आलाकमान को कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाना पड़ा। चरणजीत चन्नी का नाम भी सिद्धू ने ही आगे किया था। चन्नी सीएम बने तो अब सिद्धू की सुनवाई नहीं हो रही। संगठन प्रधान होने के बावजूद वे खुद उसकी सीमा लांघ गए। सब कुछ सार्वजनिक तरीके से कर रहे है।

सीएम चन्नी ने भी यही बात कही थी कि अगर उन्हें कोई एतराज है तो वे बैठकर बात कर सकते हैं। वे जिद्दी नहीं हैं, फैसला बदला जा सकता है। हालांकि, सिद्धू चर्चा नहीं बल्कि सीधे मनमाफिक फैसला चाहते हैं, जिसे पार्टी आलाकमान मानने को तैयार नहीं है।

आपको बता दें कि नवजोत सिंह सिद्धू के पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिए दो दिन हो गए हैं, लेकिन पार्टी आलाकमान ने उनसे बात नहीं की है। यहीं वजह है कि सिद्धू के प्रधान बनने से जोश में दिख रहे विधायक और नेता भी उनका साथ छोड़ने लगे हैं। कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटवाते समय उनके साथ 40 विधायक थे, लेकिन अब सिद्धू अकेले पड़ गए हैं। सिद्धू के समर्थन में सिर्फ रजिया सुल्ताना ने ही मंत्रीपद छोड़ा। हालात यह है कि सिद्धू के सबसे करीबी परगट सिंह डटकर सरकार के साथ खड़े हैं।

मुख्यमंत्री चरणजीत चन्नी बुधवार रात चंडीगढ़ से पटियाला जाने की तैयारी में थे, लेकिन ऐन वक्त पर यह दौरा टल गया। माना जा रहा है कि पार्टी आलाकमान ने उन्हें पटियाला जाने से रोक दिया। पंजाब में विधानसभा चुनाव की घोषणा होने में महज तीन महीने बाकी है। ऐसे में उन्हें सरकार के काम पर फोकस करने को कहा गया है। हाईकमान सिर्फ परिणाम चाहता है ताकि पंजाब में अगली सरकार कांग्रेस की बन सके। पार्टी आलाकमान के कहने पर सीएम चन्नी ने सिद्धू को मनाने के लिए नवजोत के ही करीबी मंत्री परगट सिंह और अमरिंदर राजा वडिंग की कमेटी गठित की है। ये दोनों नेता सिद्धू से दो बार मिल चुके हैं, लेकिन बात नहीं बनी है।

2022 में राज्य में जीत हासिल करने के लिए कांग्रेस ने राज्य में पहला अनुसूचित जाति का सीएम बनाया है। आपको बता दें कि पंजाब में  अनुसूचित जाति की आबाद 32 प्रतिशत है। अब खतरा यह है कि यदि सिद्धू की शर्तें मान ली गई, तो डीजीपी और एजी को हटाना पड़ेगा। ऐसा हुआ तो सरकार कमजोर पड़ जाएगी और सिद्धू के सुपर सीएम बनने पर मुहर लग जाएगी। ऐसे में विरोधी इसे मुद्दा बनाकर कांग्रेस का यह दांव फेल कर देंगे। इसी वजह से पार्टी आलाकमान ने सिद्धू से दूरी बना ली है।

यहीं नहीं सिद्धू के अड़ियल रवैए के मद्देनजर पार्टी आलाकमान ने अब पंजाब में नए प्रधान के संकेत दे दिए हैं। कांग्रेस के पर्यवेक्षक हरीश चौधरी बुधवार सुबह से चंडीगढ़ में हैं। यहां पर उन्होंने कुछ नेताओं से मुलाकात और बातचीत की। चर्चा यही है कि सिद्धू के इस्तीफा वापस न लेने की सूरत में नया प्रधान बना दिया जाए। कयास  लगाए जा रहे हैं कि सिद्धू के नहीं मानने की सूरत में आखिरी समय में मंत्री पद पाने से वंचित रह गए कुलजीत नागरा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हो सकते हैं। इस पद के लिए राज्य के पूर्व सीएम बेअंत सिंह के परिवार से जुड़े सांसद रवनीत बिट्‌टू की भी है। संभावना यह भी व्यक्त की जा रही है कि सुनिल जाखड़ को वापस प्रधान बना दिया जाए ताकि उनकी भी नाराजगी दूर हो सके।

पूर्व कैप्टन अमरिंदर के विरोध के बावजूद सिद्धू पंजाब कांग्रेस प्रधान बने। इसमें अहम रोल मौजूदा उपमुख्यमंत्री सुखजिंदर रंधावा और मंत्री तृप्त राजिंदर बाजवा का रहा। नई सरकार बनी तो अब वे सिद्धू का साथ छोड़ गए। परगट सिंह सिद्धू के करीबी थे, उन्होंने भी सिद्धू के समर्थन में इस्तीफा न देकर किनारा कर लिया। अमरिंदर राजा वडिंग को मंत्री बनाने में सिद्धू ने खूब लॉबिंग की, वे मंत्री बन गए तो अब सिद्धू का सपोर्ट करके नहीं, बल्कि मध्यस्थ बनकर काम कर रहे हैं। इसी बड़ी वजह सिद्धू के अचानक लिए जाने वाले फैसले हैं। पहले कैप्टन और अब सिद्धू के चक्कर में टिकट न कटे, इसलिए विधायक और नेता कूदकर सरकार के पाले में चले गए हैं।

Shobha Ojha

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