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ममता को राहतः साफ हुआ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री का विधानसभा पहुंचने का रास्ता, भबानीपुर सहित तीन सीटों पर 30 सितंबर को होगा उपचुनाव

कोलकाताः पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सियासी सफर में आया रोड़ हट गया है। अब उनके विधानसभा पहुंचने का रास्ता साफ हो गया है। निर्वाचन आयोग ने पश्चिम बंगाल की भबानीपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव की तारीख घोषित कर दी है।

आपको बता दें कि ममता इस समय विधानसभा की सदस्य नहीं हैं और संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले व्यक्ति को पद एवं गोपनीयता की शपथ लेने के छह महीने के अंदर विधानसभा की सदस्य निर्वाचित होना अनिवार्य है।

दरअसल ममता बनर्जी हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में नंद्रीग्राम सीट से बीजेपी नेतका सुवेंदु अधिकारी से चुनाव हार गई थीं। इससे पहले भबानीपुर सीट से टीएमसी विधायक शोभनदेब चट्टोपाध्याय ने 21 मई को इस्तीफा दिया था। उन्होंने अपने इस्‍तीफे से पहले कहा था, “मुख्‍यमंत्री को छह महीने के भीतर किसी भी विधानसभा सीट पर जीतना है। मैं उनकी सीट से खड़ा हुआ और जीत गया। मैं विधायक पद इसलिए छोड़ रहा हूं, ताकि वह निष्‍पक्ष तरीके से चुनाव जीतकर मुख्‍यमंत्री बनी रहें।“

चुनाव आयोग के मुताबिक भबानीपुर सीट पर उपचुनाव के लिए 30 सितंबर को  मतदान होगा। वहीं वोटों की गिनती 3 अक्टूबर को की जाएगी। आयोग ने इसके साथ ही बंगाल की शमशेरगंज, जंगीपुर और ओडिशा की पीपली विधानसभा सीट पर भी चुनाव कार्यक्रम का ऐलान किया है।

विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करने के बाद ममता बनर्जी ने चार मई को लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, लेकिन विधानसभा के सदस्य नहीं होने की वजह से उन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के दिन से छह महीने के अंदर यानी 4 नवंबर तक विधानसभा का सदस्य बनना जरूरी है। उन्होंने अपने लिए एक सीट (भबानीपुर) खाली भी करा ली थी, लेकिन कोरोना की वजह से चुनाव की तारीख तय नहीं हो पाई थी।

आपको बता दें कि संवैधानिक बाध्यता की वजह उत्तराखंड में तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। संवैधानिक बाध्यता की वजह से रावत ने 2 जुलाई को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। रावत ने 10 मार्च 2021 को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की शपथ ली थी। ऐसे में 10 सितंबर से पहले उन्हें किसी सदन का सदस्य होना जरूरी था, लेकिन कोरोना की वजह से चुनाव आयोग ने चुनाव की घोषणा नहीं की, जिसके वजह से उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था। अनुच्छेद 164(4) के अनुसार, कोई मंत्री अगर 6 माह की अवधि तक राज्य के विधानमंडल (विधानसभा या विधान परिषद) का सदस्य नहीं होता है तो उस समयसीमा के खत्म होने के बाद मंत्री का कार्यकाल भी समाप्त हो जाएगा।

Shobha Ojha

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