दिल्लीः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को देशवासियों से मन की बात की। आकाशवाणी और दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले मोदी की मन की बात का यह 80वां कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री विशेष रूस से हॉकी का उल्लेख करते हुए मेजर ध्यान चंद को याद किया और एक नया नारा दिया- सब खेलें, सब खिलें। मोदी ने कहा कि ओलिंपिक ने इस बार प्रभाव पैदा किया है और हर परिवार में खेल की चर्चा शुरू हुई है।

पीएम ने कहा कि आज मेजर ध्यानचंद की जयंती है। मैं सोच रहा था कि ध्यानचंद जी की आत्मा जहां होगी प्रसन्न होगी। दुनिया में भारत की हॉकी का डंका बजाने का काम ध्यानचंद की हॉकी ने किया था। अब 4 दशक बाद भारत के बेटे और बेटियों ने हॉकी में जान भर दी। कितने ही मेडल मिल जाएं, हॉकी का मेडल मिलने के बाद ही भारतीय आनंद लेता है। इस बार पदक मिला। ध्यानचंद जी का जीवन खेल को समर्पित था, उनकी आत्मा प्रसन्न होगी।

उन्होंने कहा कि आज का युवा अलग करना चाहता है। वह बने बनाए रास्ते पर नहीं चलना चाहता है, नए रास्तों पर चलना चाहता है। उसकी मंजिल, राह और चाह नई है। कुछ समय पहले ही भारत ने अपने स्पेस सेक्टर को ओपन किया और युवा पीढ़ी ने उस मौके को पकड़ लिया। नौजवान आगे गए और मुझे भरोसा है कि आने वाले दिनों में बहुत बड़ी संख्या ऐसे सैटेलाइट की होगी, जिन पर कॉलेज और यूनिवर्सिटी की लैब में युवाओं ने काम किया होगा।

पीएम ने कहा कि आज छोटे शहरों में स्टार्टअप कल्चर का विस्तार हो रहा है। युवा रिस्क लेना चाहता है। युवाओं ने दुनिया में भारत के खिलौने की पहचान बनाने की ठान ली। आज हमारे देश का युवा उस पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। एक बात मन को खुशियों से भरती है, विश्वास को मजबूत करती है। आमतौर पर स्वभाव बन चुका था कि चलता है। युवा मन अब सर्वश्रेष्ठ की तरफ केंद्रित कर रहा है, वो सर्वोत्तम करना चाहता है।

उन्होंने टोक्यो ओलिंपिक का उल्लेख करते हुए कहा कि इस बार ओलिंपिक ने प्रभाव पैदा किया। अभी पैरालिंपिक्स चल रहा है, जो हुआ वह विश्वास पैदा करने के लिए बहुत है। युवा ईकोसिस्टम को देख रहा है, समझ रहा है, परंपरागत चीजों से निकल रहा है। हर परिवार में खेल की चर्चा शुरू हुई है। इसे रुकने नहीं देना चाहिए। अब देश में खेल, खेल भावना रुकनी नहीं है। इसे पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्र जीवन में स्थाई करना है और निरंतर नई ऊर्जा से भरना है। गांव, शहर में खेल के मैदान भरे होने चाहिए। सबके प्रयास से ही भारत खेलों में वो ऊंचाई हासिल करेगा जिसका वो हकदार है। मेजर ध्यानचंद जी ने जो राह दिखाई है, उसमें आगे बढ़ना हमारी जिम्मेदारी है। खेलों के प्रति परिवार, समाज और राष्ट्र जुट रहा है।

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