काबुल: तालिबान को अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा किए अभी छह ही दिन हुए हैं, लेकिन उसे अभी से ही झटका लगाने लगा है। तालिबान विरोधी बलों ने देश पर राज करने के उसके ख्वाब को जोर का झटका दिया है। अफगानिस्तान में पंजशीर से शुरू हुआ तालिबान की खिलाफत का सिलसिला राजधानी काबुल तक पहुंच चुका है और इससे तालिबानी परेशान नजर आ रहे हैं। अफगानिस्तान के बाघलान प्रांत में स्थानीय विरोधी गुटों ने बानू और पोल-ए-हेसर जिलों पर फिर से कब्जा कर लिया है तथा अब तेजी से डेह सलाह जिले की ओर बढ़ रहे हैं। इस लड़ाई में तालिबान के कई लड़ाके मारे जाने की भी खबरें हैं और उससे कहीं ज्यादा घायल हुए हैं।
स्थानीय न्यूज एजेंसी अशवाका की रिपोर्ट के मुताबिक लोकल विद्रोही गुटों ने पोल-ए-हेसर, डेह सलाह और बानो जिलों को तालिबान के कब्जे से छुड़ा लिया है। बताया जा रहा है कि सरकार बनाने की रस्साकस्सी में उलझे तालिबान के शीर्ष नेतृत्व की आंखों में आने के लिए इस समय कई शीर्ष आतंकी कमांडर काबुल में डेरा जमाए हुए हैं। इस कारण स्थानीय स्तर पर तालिबान की पकड़ कमजोर भी हुई है और इसी का फायदा स्थानीय विद्रोही समूह उठा रहे हैं।
आपको बता दें कि पंजशीर अफगानिस्तान का एकमात्र ऐसा प्रांत है, जिसपर तालिबान आजतक अपना कब्जा नहीं कर पाया है। चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा यह प्रांत इस बार भी तालिबान के खिलाफ विद्रोह की आवाज बुलंद करता हुआ दिख रहा है। विद्रोहियों का नेतृत्व अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह, अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद और बल्ख प्रांत के पूर्व गवर्नर अता मुहम्मद नूर कर रहे हैं। अमरुल्लाह सालेह ने तो खुद को अफगानिस्तान का कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित कर दिया है।
आपको बता दें कि जलालाबाद में एक मीनार पर लगे तालिबानी झंडे को बुधवार को उतार दिया गया और उसकी जगह अफगानिस्तान का झंडा फहराया गया। यह विरोध का एक बड़ा कदम था जिसके तहत कार्यालयों पर तालिबान के झंडे की जगह अफगानिस्तान का झंडा फहराने की मांग को लेकर स्थानीय लोग सड़कों पर उतर आए। हालांकि, इसका अंत दर्दनाक हुआ और प्रदर्शनकारियों पर गोलियां बरसाई गईं। घटना में करीब 3 लोगों के मारे जाने की खबर है लेकिन बड़ी बात यह रही कि आंदोलन यहां खत्म नहीं हुआ।