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सेवा भारत की सनातन संस्कृति तथा दर्शन का प्राण है: डॉ. कृष्णगोपाल - Prakhar Prahari
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सेवा भारत की सनातन संस्कृति तथा दर्शन का प्राण है: डॉ. कृष्णगोपाल

संवाददाताः शोभा ओझा

नई दिल्लीः कोरोना के अप्रत्याशित संकट से निपटने के लिए राष्ट्रीय सेवा भारती द्वारा समाज के सहयोग से विविध प्रकार के सेवा कार्य संचालित किए गए। यह सेवा कार्य समाज के अंत: करण में प्रेरणा का भाव जागृत करें, इस उद्देश्य से ‘वयं राष्ट्रांगभूता’ (कॉफी टेबल बुक), ‘कोरोना काल में संवेदनशील भारत की सेवा गाथा’ पुस्तक एवं ‘सौ दिन सेवा के’ वृत्तचित्र के रूप में प्रेरणादायी कहानियों का संकलन किया गया है। 17 अगस्त 2021 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह माननीय डॉ. कृष्ण गोपाल जी की गरिमामयी उपस्थिति में इन विशिष्ट संकलनों का विमोचन किया गया।

इस सिलसिले में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के एनडीएमसी कन्वेंशन सेंटर में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसिद्ध उद्योगपति तथा समाजसेवी मुकेश गर्ग जी ने की। इस मौके पर डॉ. श्री कृष्णगोपाल जी ने कहा कि ‘‘इस संकलन की पृष्ठभूमि कोरोना की त्रासदी है। वर्तमान पीढ़ी ने पहली बार इस त्रासदी को देखा और अनुभव किया। कोरोना की आपदा कुछ ऐसी थी कि विभिन्न प्रकार के उपकरण, व्यवस्थाएं और शोध पराजित होते दिखे। मनुष्य हतप्रभ, निराश और कहीं न कहीं असमंजस में था। अमेरिका और यूरोप की बड़ी-बड़ी अर्थव्यवस्थाएं असहाय नजर आ रही थीं। भारत के शहर और गांव इससे अछूते नहीं थे। लेकिन भारत ने दुनिया के समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत किया है।

उन्होंने कहा कि हमारे यहां सरकार और प्रशासन के साथ समाज शक्ति ने अपने दायित्व और कर्तव्यों का जिस प्रकार निर्वहन किया उसे पूरी दुनिया ने देखा। इस महामारी काल में भारत ने जिस भाव को प्रगट किया, वह दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिला। वह सभी भविष्यवाणियां एक बार पुन: गलत सिद्ध हुईं जो भारत को समझे बिना की जाती हैं। हमारा देश जो भौगोलिक रूप से दिखता है, मात्र वही नहीं है। भारत एक प्रेम की भाषा प्रगट करता है। भारत भावनाओं का देश है।

कोरोना की त्रासदी में देश की हर सामाजिक और धार्मिक संस्था ने अपने सामर्थ्य के अनुसार सेवा कार्य किए। उन्होंने कहा कि सेवा हजारों वर्षों से दर्शन और सनातन संस्कार का अभिन्न अंग है। इस आध्यात्म की पूंजी को लेकर ही भारतीय समाज आगे बढ़ता है। संवेदना और सहकार रूपी पूंजी का पश्चिम जगत में अभाव है। यही मौलिक अंतर है। कोरोना की वीभीषिका से हम इसलिए भी उठ खड़े हुए क्योंकि दूसरों की सेवा करने में यहां लोगों को आनंद आता है। दुनिया को बोध कराने का दायित्व भी हमारा है। आज दुनिया इस बात का साक्षात्कार कर रही है कि कैसे भारत ने समाज की समवेत शक्ति के आधार पर कोरोना की त्रासदी पर विजय प्राप्त की है।

इस मौके पर सेवा भारती के अध्यक्ष पन्नालाल जी, भारतीय चित्र साधना के अध्यक्ष ब्रजकिशोर कुठियाला जी अध्यक्ष ,दिल्ली प्रांत के संघचालक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कुलभूषण आहुजा जी,  अखिल भारतीय सेवा प्रमुख पराग अभ्यंकर जी , अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख रामलाज जी, सेवा भारती के संगठन मंत्री सुधीर, अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख नरेन्द्र जी , राष्ट्रीय सेवा भारती डॉ. श्री रामकुमार जी, भारतीय चित्र साधना के सचिव अतुल गंगवार सहित काफी संख्या में गणमान्य लोग उपस्थित रहे।

आपको बता दें कि प्रशांत पोल द्वारा संपादित कोरोना काल में संवेदनशील भारत की सेवा गाथा पुस्तक की प्रस्तावना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरकार्यवाह माननीय सुरेश (भैया जी) जोशी जी ने लिखी है। उन्होंने प्रस्तावना के जरिए संकलन को एक अकल्पनीय काल के इतिहास का एक पृष्ठ बताया है। इसी प्रकार ‘वयं राष्ट्रांगभूता’ (कॉफी टेबल बुक) प्राक्कथन में  भैया जी ने कहा कि इस संकलन को देखकर व पढ़कर सभी को समाज सेवा की नई प्रेरणा और ऊर्जा प्राप्त होगी।

कार्यक्रम में भारतीय चित्र साधना के सहयोग से तैयार मुख्य वृत चित्र ‘सौ दिन सेवा के’ का प्रसारण किया गया। इसके साथ ही सात लघु वृत चित्र भी विभिन्न सेवाभावी लोगों द्वारा तैयार किए गए हैं। इन सभी वृत चित्र में कोरोना कालखंड में समाज के विभिन्न वर्गों के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों उसके समाधान के लिए प्रदर्शित सामूहिक एकता का दर्शन होता है। लघु वृत चित्र में कोरोना प्रबंधन : प्रशासन का सहयोग, कोरोना काल : अल्पसंख्यक समाज और सेवा, पूर्वोत्तर भारत: कोरोना काल में सेवा, कोरोना संकट: जनजातीय समाज में सेवा, कोरोना: समाज के उपेक्षित वर्गों की सेवा, कोरोना संकट व स्वाभिमानी घुमंतु समाज, कोरोना संकट: प्रवासी श्रमिकों को राहत जैसे विषयों को सम्मिलित किया गया है। यह संकट के समय देश की एकता व अखंडता के साथ सामाजिक समरसता के दृश्यों को व्यक्त करती है।

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