काबुलः तालिबानी विद्रोहियों ने अफगानिस्तान की सरकार को पराजित कर दिया है और राजधानी काबुल सहित पूरे अफगानिस्तान में अपना आधिपत्य स्थापित कर दिया है। ऐसे खबरे हैं कि मुल्ला अब्दुल गनी बरादर अफगानिस्तान का प्रशासक यानी राष्ट्रपति बन सकता है। अब आइए आपको बताते हैं कि मुल्ला अब्दुल गनी बरादर कौन हैः-
मुल्ला अब्दुल गनी बरादर तालिबान के सह-संस्थापकों में से एक है और मौजूदा समय में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय का प्रमुख है। साथ ही वह तालिबान के शांति वार्ता दल का नेता भी है। पाकिस्तान के सुरक्षा बलों ने 2010 में मुल्ला उमर के सबसे भरोसेमंद कमांडरों में से एक अब्दुल गनी बरादर को कराची में गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन बाद में तालिबान के साथ समझौता होने के बाद पाकिस्तान की सरकार ने 2018 में उसे रिहा कर दिया था।
अब आपको बताते हैं कि अली अहमद जलाली कौन है, जिसके अफगानिस्तान का अंतरिम प्रशासक बनने की अटकलें लगाई जा रही हैंः-
2003 से 2005 तक अली अहमद जलाली अफगानिस्तान का आतंरिक मंत्री रह चुका है। वह अमेरिका में एक यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर भी हैं। ऐसी अटकलें लगाई जा रही है कि जिलाली को अफगानिस्तान का अंतरिम प्रशासन का प्रमुख बनाया जा सकता है। आपको बता दें कि अफगानिस्तान के कार्यवाहक आंतरिक मंत्री अब्दुल सत्तार मिर्जाकवाल ने कहा है कि सत्ता हा हस्तांतरण शांतिपूर्ण तरीके से होगा। हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि तालिबान ने जलाली की नियुक्ति के लिए अपना अंतिम समझौता किया है या नहीं।
20 साल बाद फिर तालिबानी राजः-
अमेरिका समर्थित अफगानिस्तान की सरकार से तालिबान 2001 से जंग लड़ रहा है। आपको बता दें कि तालिबान का उदय भी अमेरिका के प्रभाव से कारण ही हुआ था। अब वही तालिबान अमेरिका के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बना हुआ है। 1980 के दशक में जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में फौज उतारी थी, तब अमेरिका ने ही स्थानीय मुजाहिदीनों को हथियार और ट्रेनिंग देकर जंग के लिए उकसाया था। इसका परिणाम यह हुआ कि सोवियत संघ तो हार मानकर चला गया लेकिन अफगानिस्तान में एक कट्टरपंथी आतंकी संगठन तालिबान का जन्म हो गया।
कैसे हुआ तालिबान का का उदयः-
अफगानिस्तान से सोवियत सेना की वापसी के बाद अलग-अलग जातीय समूह में बंटे ये संगठन आपस में ही लड़ाई करने लगे। 1994 में इन्हीं के बीच से एक हथियारबंद गुट उठा और उसने 1996 तक अफगानिस्तान के अधिकांश भूभाग पर कब्जा जमा लिया और पूरे देश में शरिया या इस्लामी कानून को लागू कर दिया। इसे ही तालिबान के नाम से जाना जाता है।
दो महाशक्तियां भी नहीं कर पाईं तालिबान का अंतरः-
अफगानिस्तान में तालिबान की जड़ें कितनी मजबूत है, इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि अमेरिका के नेतृत्व में कई देशों की सेनाएं भी इनका खात्मा नहीं कर पाईं। आपको बता दें कि तालिबान का प्रमुख उद्देश्य अफगानिस्तान में इस्लामिक अमीरात की स्थापना करना है। 1996 से लेकर 2001 तक तालिबान ने शरिया के तहत ही अफगानिस्तान में शासन चलाया था, जिसमें महिलाओं के स्कूली शिक्षा पर पाबंदी, हिजाब पहनने, पुरुषों को दाढ़ी रखने, नमाज पढ़ने जैसे अनिवार्य कानून भी लागू किए गए थे।
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