दिल्लीः संसद का मानसून सत्र अंतिम पड़ाव पर है।इस वजह से सरकार इसके आखिरी सप्ताह के पहले दिन ही कई अहम विधाई कार्य निपटाने की तैयारी में है। इनमें सबसे बड़ा मुद्दा ओबीसी से जुड़ा हुआ है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सरकार ओबीसी को लुभाने के लिए बड़ा दांव खेलने वाली है। सरकार सोमवार को सरकार राज्यों को ओबीसी सूची बनाने का अधिकार देने वाला 127वां संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश करेगी।
आपको बता दें कि विपक्ष पेगासस, महंगाई तथा कृषि से संबंधित कानूनों के साथ अन्य मुद्दों पर लगातार हंगामा कर रही है और इसी तरह का माहौल आज भी रहने की की है। बावजूद इसके इस विधेयक को पारित करने में ज्यादा अड़चन नहीं आएगी, क्योंकि कोई राजनीतिक दल आरक्षण संबंधी विधेयक का विरोध नहीं करेगा।
बहरहाल हंगामे के बीच संविधान संशोधन विधेयक को पारित कराना सरकार के लिए थोड़ा कठिन जरूर होगा। आपको बता दें कि हाल में ही केंद्रीय कैबिनेट ने इस विधेयक को मंजूरी प्रदान की थी। दरअसल, मई में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में राज्यों के ओबीसी सूची तैयार करने पर रोक लगा दी थी, जिसके बाद यह विधेयक लाया जा रहा है। इससे राज्यों को दोबारा यह अधिकार मिल सकेगा।
लोकसभा में आज कुल छह विधेयक पेश किए जाने हैं। इनमें ओबीसी आरक्षण विधेयक के अलावा लिमिटेड लाइबिलीटी पाटर्नरशिप बिल, डिपॉजिट एवं इंश्योरेंस क्रेडिट गारंटी बिल, नेशनल कमीशन फॉर होम्योपैथी बिल, नेशनल कमीशन फॉर इंडियन सिस्टम ऑफ मेडिसिन बिल और द कॉन्स्टीट्यूशन एमेंडमेंट शिड्यूल ट्राइब्स ऑर्डर बिल शामिल हैं। वहीं, राज्यसभा में चार विधेयक लाए जाएंगे, जो पहले ही लोकसभा से पारित हो चुके हैं। इनमें एप्रोपिएशन बिल तीन और चार पूर्व के खर्च को पारित कराने के लिए हैं। इनके अलावा ट्रिब्नयूल रिफॉर्म बिल एवं जनरल इंश्योरेंस बिल भी सूचीबद्ध हैं।
अब आपको बताने जा रहे हैं कि इस संशोधन विधेयक का असर क्या होगाः- यदि संसद में संविधान के अनुच्छेद 342-ए और 366(26) सी के संशोधन पर अगर मुहर लग जाती है तो इसके बाद राज्यों के पास ओबीसी सूची में अपनी मर्जी से जातियों को अधिसूचित करने का अधिकार होगा। महाराष्ट्र में मराठा समुदाय, हरियाणा में जाट समुदाय, गुजरात में पटेल समुदाय और कर्नाटक में लिंगायत समुदाय को ओबीसी वर्ग में शामिल होने का मौका मिल सकता है। लंबे समय से ये जातियां आरक्षण की मांग कर रही हैं। इनमें से मराठा समुदाय को महाराष्ट्र देवेंद्र फडणवीस सरकार ने आरक्षण दिया भी था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 5 मई को दिए फैसले में इसे खारिज कर दिया था।