दिल्लीः मशहूर सिंगर, पश्चिम बंगाल के आसनसोल से बीजेपी सांसद एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो ने राजनीति को गुडबाय बोल दिया है। उन्होंने शनिवार को राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा की। पूर्व केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो को 7 जुलाई को हुए मोदी मंत्रिपरिषद में बदलाव और विस्तार से ठीक पहले मंत्री पद छोड़ना पड़ा था।
बाबुल ने राजनीति को अलविदा करने की घोषणा एक फेसबुक पोस्ट में किया है। चलिए अब वजह तलाशने की कोशिश करते हैं, कि उन्होंने उनका अचानक राजनीति से ‘मोहभंग’ क्यों हो गया? क्या उन्हें बीजेपी में वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वह हकदार थे? या क्या मंत्री पद छिने जाने की वजह से उन्होंने ऐसा फैसला किया या कोई और कारण है?
बाबुल सुप्रियो ने राजनीति से अपने ‘संन्यास’ लेने की वजह बताते हुए लिखते हैं कि राजनीति और समाज सेवा एक साथ मुमकिन नहीं है…पिछले कुछ दिनों में मैंने अमित शाह और जेपी नड्डा से मुलाकात की और उन्हें इस बारे में बताया कि मैं क्या सोच रहा हूं…उनके प्यार की वजह से मैं यह हिमाकत नहीं कर पाया कि उन्हें बता दूं कि मैं क्या करूंगा, लेकिन मैंने बहुत पहले यह फैसला कर लिया था। उन्होंने आगे लिखा, “उस वक्त अगर मैं यह करता तो ऐसा लगता कि मैं सौदेबाजी कर रहा हूं।”
पूर्व केंद्रीय मंत्री सुप्रियो ने भले ही अचानक राजनीति से संन्यास का ऐलान किया लेकिन उनका यह फैसला चौंकाने वाला नहीं है। सियासी गलियारे में पिछले कुछ दिनों से ऐसी अटकलें लग रही थीं। उनके हाल के फेसबुक पोस्ट्स स्पष्ट तौर पर उनके राजनीति छोड़ने की इस ओर इशारा कर रहे थे। उन्होंने एक पोस्ट में उन्होंने लिखा था कि मैंने कभी सबको खुश करने के लिए राजनीति नहीं की। यह मेरे लिए संभव नहीं है और मैंने कभी ऐसा करने का प्रयास भी नहीं किया, इसलिए मैं सबके लिए अच्छा नहीं बन पाया।
वहीं एक अन्य पोस्ट में उन्होंने लिखा, “मुझे अच्छा रिस्पॉन्स तभी मिलता है, जब मैं राजनीति से हटकर गानों के बारे में पोस्ट करता हूं। कई पोस्ट के जरिए मुझसे राजनीति से दूर रहने की गुजारिशें की गई हैं, जो मुझे गहराई से इस बारे में सोचने के लिए मजबूर कर रहे हैं।”
सुप्रियो ने दावा किया है कि वह बहुत पहले ही राजनीति से तौबा करने का मन बना चुके थे, बस इसलिए हिचक रहे थे कि लोग गलत मतलब न निकालने लगें, उसे सौदेबाजी के लिए कोई पैंतरा न समझने लगें।
चलिए समझने की कोशिश करते हैं कि क्या सुप्रियो सचमुच राजनीति को अलविदा करने का मन पहले ही बना चुके थे, जैसा कि वह दावा कर रहे हैं? हालांकि इस सच्चाई को उनसे बेहतर कोई दूसरा नहीं जान सकता लेकिन कई बातें उनके दावे पर सवाल उठाती हैं। मसलन राजनीति से संन्यास का मन बना रहा कोई मौजूदा सांसद विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए क्यों तैयार होगा? आपको बता दें कि सुप्रियो हाल ही में हुए पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में टॉलीगंज सीट से चुनाव लड़े और उन्हें करारी हार का मुंह देखना पड़ा था।
अब सवाल यह उठता है कि क्या बीजेपी में उन्हें वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वह हकदार थे? इसका जवाब हां तो नहीं लगता है। बाबुल सुप्रियो 2014 में पहली बार सांसद बने और पहली ही बार में केंद्र में मंत्री भी बन गए। 2019 में जब नरेंद्र मोदी लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री बने तो बाबुल सुप्रियो भी उनकी टीम में शामिल रहे। यह जरूर हो सकता है कि उनकी महत्वाकांक्षा इससे कहीं और ज्यादा की रही हो, जो शायद पूरी होती नहीं दिखने से सियासत से ही उनका मन उचट गया।
आपको बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 7 जुलाई को मंत्रिपरिषद में बदलाव और विस्तार किया था और सुप्रियो को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। उस उनके फेसबुक पोस्ट में मंत्री पद छिनने का दर्द छलका भी था। उस समय उन्होंने लिखा था कि मुझे इस्तीफा देने के लिए कहा गया था और मैंने दे दिया… बंगाल से मंत्रिमंडल में शामिल होने जा रहे नए साथियों को मेरी ढेर सारी शुभकामनाएं। मैं अपने लिए जरूर दुखी हूं, लेकिन उन लोगों के बहुत खुश हूं।
सुप्रियो के राजनीति को तौबा करने की एक वजह पश्चिम बंगाल बीजेपी से उनका अनबन भी हो सकती है। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष से उनके खराब रिश्ते तो जगजाहिर रहे हैं। 2020 में एंटी-सीएए प्रोटेस्ट के दौरान घोष ने जब यह कहा था कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों को गोली मार देनी चाहिए तब बाबुल ने उनके बयान को गैरजिम्मेदार बताकर निंदा की थी।
सुप्रियो मौजूदा समय में आसनसोन से लोकसभा सांसद हैं। उन्होंने यह भी ऐलान किया है कि वह एक महीने में खुद को मिले सरकारी आवास को छोड़ देंगे और लोकसभा की सदस्यता से भी इस्तीफा देंगे। यानी बंगाल के सियासी दंगल में जल्द ही उपचुनाव के रूप में बीजेपी और टीएमसी का एक आमने-सामने आने वाली हैं।
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