File Picture

दिल्ली: लंबे समय तक सियासी नाटक के बाद बीएस येदियुरप्पा ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया, लेकिन येदियुरप्पा के इस्तीफे ने कई सवाल पैदा कर दिए हैं। मसलन क्या बीजेपी युवा नेताओं को स्थापित करने की ओर कदम बढ़ा रही है। क्या पार्टी नेतृत्व येदियुरप्पा के साथ-साथ अन्य राज्यों के नेताओं को बदलने के मूड में है, जिनका एक अपना कद है और जो अटल-आडवाणी युग के नेताओं में शुमार हैं। है। क्या यह मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान के लिए भी खतरें की घंटी है क्योंकि राज्य में वह मजबूत और बीजेपी के अकेले पुराने नेता हैं। आखिर बीजेपी ने यह जानते हुए की येदियुरप्पा सिर्फ कर्नाटक ही नहीं, बल्कि दक्षिण भारत के अन्य राज्यों में भी काफी लोकप्रिये हैं, उन्हें हटाने का जोखिम क्यों लिया। क्या येदियुरप्पा को हटाने का कदम जोखिम भरा हो सकता है।

राजनीति विश्लेषकों के मुताबिक पहले सवाल का जवाब है कि यह बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व की हर स्तर पर नए चेहरों को जगह देने की योजना का हिस्सा है। पार्टी नेतृत्व येदियुरप्पा के अलावा अन्य राज्यों के नेताओं को बदलने के मूड में है जिनका एक अपना कद है और जो अटल-आडवाणी युग के नेता हैं। इसकी झलक हाल ही में मोदी कैबिनेट में हुए कैबिनेट फेरबदल से दिखाई दी। आपको बता दें कि कर्नाटक में चुनाव अभी दूर है और पार्टी की ओर से कोशिश थी कि येदियुरप्पा को इस फैसले के लिए राजी किया जाए। येदियुरप्पा के जाने के बाद भी लिंगायत समुदाय पार्टी के साथ जुड़ा रह सकता है।

अब आते हैं मध्य प्रदेश के मुद्दे पर…। येदियुरप्पा के इस्तीफे के बाद सबसे बड़ा सवाल यह पैदा हो गया है कि क्या अब शिवराज की बारी है, क्योंकि वह राज्य में मजबूत और अकेले पुराने नेता हैं, तो इसकी उत्तर हां में दिया जा सकता है। बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व ने यह निश्चित रूप से नई टीमों को स्थापित करने के साथ आगे बढ़ने का संकेत है। इसके लिए वह जोखिम उठाने के लिए भी तैयार है।

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या येदियुरप्पा को हटाने का फैसला जोखिम भरा हो सकता है। क्या वह कर्नाटक में एक और वीरेंद्र पाटिल बनेंगे?  आपको बता दें कि वीरेंद्र पाटिल कर्नाटक में कांग्रेस के मुख्यमंत्री थे जिन्हें राजीव गांधी ने 1990 में हटा दिया था। उन्होंने 1989 में कांग्रेस के लिए अब तक की सबसे बड़ी जीत दर्ज कराई थी। पाटिल भी लिंगायत के दिग्गज थे। पाटिक को हटाए जाने के बाद से लिंगायत कांग्रेस से दूर जाने लगे और बीजेपी की ओर कदम बढ़ीने लगे। उन्हें हटाए जाने के बाद राज्य में 1994 में कांग्रेस को अपनी सबसे अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा। येदियुरप्पा का इस्तीफा कांग्रेस के लिए अवसर हो सकता है लेकिन बीजेपी के लिए यह सुकून भरी खबर है कि कांग्रेस के पास आज एक शक्तिशाली लिंगायत चेहरा नहीं है, और पार्टी दो खेमों में बंटी नजर आ रही है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here