दिल्लीः राजनीतिज्ञों, पत्रकारों तथा अन्य महत्वपूर्ण हस्तियों की जासूसी मामले की गूंज सोमवार को संसद में सुनाई दी और जमकर बवाल हुआ। कांग्रेस ने लोकसभा में इजराइली कंपनी के पेगासस सॉफ्टवेयर के जरिए पत्रकारों सहित अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों की फोन टेपिंग का मुद्दा उठाया और सरकार से इस मामले की स्वतंत्र जांच कराने की मांग की। सरकार ने कांग्रेस की मांग को खारिज करते हुए कहा कि रिपोर्ट में लीक हुए डेटा का जासूसी से कोई लेना-देना नहीं है।

आपको बता दें कि 16 मीडिया समूहों की साझा पड़ताल के बाद जारी रिपोर्ट में दावा किया गया था कि पेगासस सॉफ्टवेयर के जरिए सरकार पत्रकारों सहित जानी-मानी हस्तियों की जासूसी करा रही है। रिपोर्ट में कहा गया था कि दुनियाभर में 180 से ज्यादा रिपोर्टरों और संपादकों की पहचान की गई है, जिन्हें सरकारों ने निगरानी सूची में रखा है। इन देशों में भारत भी शामिल है, जहां सरकार और प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना करने वाले पत्रकार निगरानी के दायरे में थे।

लोकसभा में शोर-शराबे के बीच संचार, सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा, “एक वेब पोर्टल ने रविवार की रात को बेहद सनसनीखेज स्टोरी पब्लिश की। इसमें कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं। संसद के मानसून सत्र की शुरुआत के एक दिन पहले इस स्टोरी को लाया गया। यह सब महज एक संयोग नहीं हो सकता है। पहले भी  वॉट्सऐप पर पेगासस के इस्तेमाल को लेकर इसी तरह के दावे किए गए थे, जिनमें कोई तथ्य नहीं थे और उन्हें सभी ने नकार दिया था। 18 जुलाई को छपी रिपोर्ट भारत के लोकतंत्र और उसके संस्थानों की छवि खराब करने की कोशिश दिखाई देती है।“

उन्होंने कहा कि जासूसी और अवैध निगरानी के खिलाफ हमारे देश में सख्त कानून हैं। देश में प्रक्रिया के तहत ऐसा करने की व्यवस्था है। राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखकर किसी इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन को सर्विलांस करते समय नियम-कानून का पूरी तरह से पालन किया जाता है। भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम 1885 की धारा 5 (2) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धारा 69 के प्रावधानों के तहत इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन को इंटरसेप्ट किया जा सकता है, लेकिन ऐसा तभी किया जाता है, जब कोई सक्षम अधिकारी इसका अनुमोदन करता है।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि उन लोगों को दोष नहीं दिया जा सकता, जिन्होंने वह मीडिया रिपोर्ट विस्तार से नहीं पढ़ी। सदन के सभी सदस्यों से अनुरोध है कि वे तथ्य और तर्क के आधार पर इस मुद्दे पर चर्चा करें। रिपोर्ट एक कंसोर्टियम (समूह) को आधार बनाकर पब्लिश की गई है। उन्होंने बताया कि इस ग्रुप की पहुंच लीक हुए 50,000 फोन नंबरों के डेटाबेस तक है। रिपोर्ट में ये तो कहा गया है कि फोन नंबर के जरिए कई लोगों की जासूसी की जा रही थी, लेकिन ये नहीं बताया गया कि किस समय फोन की पेगासस के जरिए निगरानी की गई या कब हैकिंग की कोशिश हुई। इस मामले को तर्क के चश्मे से देखने पर पता चलता है कि इसका कोई आधार नहीं है।

आपको बता दें कि द वायर ने रविवार रात को एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें कहा गया है कि भारत में मंत्रियों, विपक्ष के नेताओं, पत्रकारों, लीगल कम्युनिटी, कारोबारियों, सरकारी अफसरों, वैज्ञानिकों, एक्टिविस्ट सहित लगभग  300 लोगों की जासूसी की गई है।  इनमें से करीब 40 पत्रकार हैं। उधर, वॉशिंगटन पोस्ट और द गार्जियन के मुताबिक तीन  प्रमुख विपक्षी नेताओं, दो मंत्रियों और एक जज की  जासूसी की पुष्ट हो चुकी है, हालांकि इन दोनों अखबरों ने जिन लोगों की जासूसी की गई है, उनके नाम नहीं बताए हैं।

वहीं पेगासस की पेरेंट कंपनी एनएसओ (NSO) ग्रुप ने फोन हैकिंग पर रविवार को जारी की गई रिपोर्ट को गलत करार दिया है और कहा है कि रिपोर्ट गलत अनुमानों और अपुष्ट थ्योरी के आधार पर तैयार की गई है। रिपोर्ट में दिया गया ब्योरा हकीकत से परे है।

अब आपको बताते हैं कि कैसे की जाती है पेगासस के जरिये जासूसी। पेगासस के जरिए जिस व्यक्ति को टारगेट करना हो, उसके फोन पर एसएमएस, वॉट्सएप, आई मैसेज (आईफोन पर) या किसी अन्य माध्यम से एक लिंक भेजा जाता है। यह लिंक ऐसे संदेश के साथ भेजा जाता है कि टारगेट उस पर एक बार क्लिक करे। सिर्फ एक क्लिक से स्पायवेयर फोन में एक्टिव हो जाता है और एक बार एक्टिव होने के बाद यह फोन के एसएमएस, ईमेल, वॉट्सएप चैट, कॉन्टैक्ट बुक, जीपीएस डेटा, फोटो व वीडियो लाइब्रेरी, कैलेंडर हर चीज में सेंध लगा लेता है।

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