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बूचड़खानों पर बैन का मामलाः कोर्ट की तल्ख टिप्पणी, क्या राज्य तय करेगा लोगों का भोजन - Prakhar Prahari
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बूचड़खानों पर बैन का मामलाः कोर्ट की तल्ख टिप्पणी, क्या राज्य तय करेगा लोगों का भोजन

नैनीतालः क्या नागरिकों को अपना भोजन चुनने का अधिकार है या राज्य इसका निर्णय करेगा। यह तल्ख टिप्पणी उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने शनिवार को हरिद्वार में बूचड़खानों पर पाबंदी लगाने के मामले पर सुनवाई के दौरान की। कोर्ट ने इस फैसले की संवैधानिकता पर सवाल उठाया और कहा कि सभ्यता का आकलन अल्पसंख्यकों के साथ किए जाने वाले व्यवहार के आधार पर होता है।

कोर्ट ने मंगलौर कस्बे के निवासी याचिककार्ता की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि सवाल यह है कि क्या नागरिकों को अपना भोजन चुनने का अधिकार है या राज्य इसका फैसला करेगा?

चीफ जस्टिस आरएस चौहान और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि लोकतंत्र का मतलब है अल्पसंख्यकों की रक्षा करना होता है। सभ्यता का आकलन सिर्फ इस बात से किया जा सकता है कि अल्पसंख्यकों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है। इस पाबंदी से सवाल उठता है कि राज्य किस हद तक नागरिकों के विकल्पों को तय कर सकता है।

अदालत ने कहा कि इसी तरह के मामले में सु्प्रीम कोर्ट ने कहा था कि मांस पर प्रतिबंध किसी पर भी थोपा नहीं जाना चाहिए। कल आप कह सकते हैं कि कोई मांस का सेवन नहीं करे। इसको ध्यान में रखते हुए हाई कोर्ट ने टिप्पणी की कि सवाल यह है कि क्या नागरिकों को अपना भोजन चुनने का अधिकार है या राज्य इसका फैसला करेगा।

हालांकि कोर्ट इस मामले में कोई फैसला नहीं दिया और कहा कि यह संवैधानिक मामला और त्योहार को देखते हुए सुनवाई में जल्दबाजी नहीं की जा सकती है। इस मामले में उचित सुनवाई और विमर्श की जरूरत है। इसलिए इस मामले पर फैसला बकरीद तक करना संभव नहीं है। कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 23 जुलाई की तारीख मुकरर्र की है।

 

याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा है कि यह पांबदी निजता के अधिकार, जीवन के अधिकार और स्वतंत्रता से अपने धार्मिक रीति रिवाजों का अनुपालन करने के अधिकार का उल्लंघन करती है। यह हरिद्वार में मुस्लिमों के साथ भेदभाव करती है जहां पर मंगलौर जैसे कस्बे में बड़ी मुस्लिम आबादी रहती है। साथ ही यह भी कहा है कि हरिद्वार में धर्म और जाति की सीमाओं से परे साफ और ताजा मांसाहार से मनाही भेदभाव जैसा है।

आपको बता दें कि राज्य सरकार ने इस साल मार्च में हरिद्वार को ‘बूचड़खानों से मुक्त क्षेत्र’ घोषित कर दिया था और बूचड़खानों के लिए जारी अनापत्तिपत्रों को भी रद्द कर दिया था।

याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि यह पाबंदी मनमाना और असंवैधानिक है।

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