नई दिल्ली.
भारत के उत्तर पूर्वी इलाक़े (नॉर्थ ईस्टर्न रीजन यानी एनईआर) के आठ राज्य- अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम- देश के भौगोलिक क्षेत्र के केवल 8 प्रतिशत पर कब्ज़ा करते हैं। फिर भी वे रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि अपने भौगोलिक इलाक़े के बीच ये राज्य नेपाल, भूटान, चीन, म्यांमार और बांग्लादेश के पड़ोसी देशों के साथ 5300 किलोमीटर की अंतरराष्ट्रीय सीमाएं साझा करते हैं। इनके सामने कई तरह की चुनौतियां हैं, जिसमें भौगोलिक चुनौतियों से लेकर सामाजिक-आर्थिक समस्याएं एवं राजनीतिक अस्थिरता के हालात शामिल हैं।
उत्तर पूर्व कई नदियां हो कर गुज़रती हैं। इसमें अनुमानित रूप से 1800 किलोमीटर का नदी मार्ग शामिल है, जो स्टीमर और बड़ी देशी नौकाओं के लिए आवाजाही का ज़रिया बन सकता है। इन मार्गों से ले जाए जाने वाले कार्गो में चाय, सीमेंट, कोयला, फ्लाई ऐश, चूना पत्थर, पेट्रोलियम, कोलतार और खाद्यान्न शामिल हैं।
मलक्का जलडमरूमध्य या जलसंधि के माध्यम से हिंद-प्रशांत के व्यापक जल में विलय होने से पहले परिवहन व संचार के महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग, बंगाल की खाड़ी और उससे सटे अंडमान सागर को पार करते हैं। खाड़ी के विशाल हाइड्रोकार्बन भंडार के आकर्षण के अलावा चीन के बढ़ते दबाव और प्रभुत्व से पैदा हुई चिंताओं के मद्देनज़र इन शिपिंग मार्गों की स्वायत्तता को संरक्षित करने की ज़रूरत बढ़ी है और यही वजह है कि हाल के वर्षों में अलग-अलग हितधारक इस जल-क्षेत्र की ओर आकर्षित हुए हैं।
आज़ादी के बाद कई दशकों तक उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में विकास परियोजनाओं की गति काफी धीमी रही, क्योंकि इसका सीधा जुड़ाव देश की कथित सुरक्षा संबंधी रणनीतियों और ख़तरों से था। इसके अलावा दशकों से इस क्षेत्र में राजनैतिक अशांति के माहौल ने आधारभूत ढांचे के निर्माण को अवरूद्ध रखा, जबकि भारत सरकार ने इन राज्यों में कई परियोजनाओं की नींव रखी और वित्तीय सहायता प्रदान की। क्षेत्र की अन्य देशों जैसे बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल और भूटान के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमाएं काफ़ी दुर्गम हैं, जो नशीली दवाओं की तस्करी, कालाबाजारी और मानवीय घुसपैठ
जैसी गतिविधियों पर किसी कार्रवाई को मुश्किल बनाती हैं। क्षेत्र में सुचारू व्यापार केवल तभी संभव होगा जब इन राज्यों में कानून-व्यवस्था की स्थिति में सुधार हो।
भारत ने बांग्लादेश, म्यांमार और थाईलैंड के साथ द्विपक्षीय तटीय नौवहन समझौते किए हैं। अगर बांग्लादेश और म्यांमार के साथ एक समान समझौता स्थापित होता है और पूर्वी तटरेखा को तटीय नौवहन के लिए जोड़ा जाता है, तो इससे उत्तर-पूर्वी राज्यों को विशेष लाभ होगा। हालांकि, इस क्षेत्र में आधारभूत ढांचे को और अधिक विकसित करने की ज़रूरत है अगर उत्तर-पूर्वी राज्य अंतराष्ट्रीय व्यापार में माध्यम होने की अपनी मौजूदा भूमिका से इतर सक्रिय भागीदार की भूमिका में आना चाहते हैं।
पूर्वोत्तर रेलवे का जाल फैलाने का फ़ायदा दो स्तरों पर होगा, एक, ये इस क्षेत्र में सामाजिक-आर्थिक लाभों को बढ़ावा देगा, दूसरा, ये कि देश का पूर्वी हिस्सा भारतीय विदेश नीति से जुड़ जायेगा। इस बहुस्तरीय आंतरिक संपर्क बिंदुओं के जरिए उत्तर-पूर्वी क्षेत्र को राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय परिवहन सुविधाओं से जोड़ा जाएगा, जिससे न सिर्फ़ म्यांमार और बांग्लादेश जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के साथ व्यापार संबंध बेहतर होंगे बल्कि इस क्षेत्र में आर्थिक विकास की गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा।
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