नई दिल्ली.
नेपाल इस वक़्त, चुनौतियों के बड़े बवंडर तूफ़ान का सामना कर रहा है। इस समय नेपाल के सामने कोविड-19 महामारी के संकट, तबाही मचाने वाले लैंडस्लाइड, अगले कुछ महीनों में होने वाले चुनाव जैसी चुनौतियां तो हैं ही। नेपाल इस वक़्त दुनिया की बड़ी ताक़तों के बीच प्रभाव बढ़ाने की खींच-तान के दलदल में भी फंसा हुआ है। जिस समय नेपाल कोविड की वैक्सीन की समस्या से उबरने की कोशिश कर रहा रहा था, उसी दौरान बाढ़ से हज़ारों लोगों के बेघर हो जाने से उसके हालात और बिगड़ गए।
इस समय नेपाल के सामने सबसे बड़ी चुनौती वैक्सीन ख़रीदकर उसे अपने नागरिकों को लगाने की है। इसी वजह से वो तबाही वाले मंज़र से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की अपील कर रहा है, जिससे नेपाल की बिखरती स्वास्थ्य व्यवस्था को संभाला जा सके।
हालात को देखते हुए, कई देशों ने नेपाल की ओर मदद का हाथ बढ़ाया है। इनमें पहला नंबर चीन का है, जिसने नेपाल को अपनी सिनोफार्म वैक्सीन (वेरो सेल से तैयार टीका) की 8 लाख ख़ुराक की मदद दी। इसके अलावा, सौदे की क़ीमत सार्वजनिक न करने की शर्त पर नेपाल ने चीन से 40 लाख टीके और ख़रीदने का फ़ैसला किया है। चीन इस शर्त को लेकर बहुत सख़्त है। नेपाल, वैक्सीन के लिए चीन पर निर्भर होता जा रहा है, जो भारत के लिए निराशा की बात है। आने वाले समय में इससे दक्षिण एशिया की कूटनीति में उतार चढ़ाव देखने को मिल सकते हैं।
विपक्षी दलों का आरोप है कि नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली, आने वाले चुनाव जीतने के लिए भारतीय जनता पार्टी का तुष्टिकरण कर रहे हैं। जब भारत ने वैक्सीन का निर्यात रोका, तो नेपाल के पास इस संकट से उबरने के लिए कोई प्लान बी नहीं था। अभी भी चीन के साथ छुपकर हुए वैक्सीन के सौदे पर पर्दा डाले रखा गया है। इसके पीछे शायद मक़सद ये है कि भारत को ये अंदाज़ा न हो कि नेपाल ने चीन से किस क़ीमत पर वैक्सीन ख़रीदी है।
बता दें कि नेपाल ने अपने यहां कोरोना का टीकाकरण अभियान 27 जनवरी से शुरू किया था। इसके लिए उसे पुणे के सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया से ऑक्सफोड्र एस्ट्राज़ेनेका की कोविशील्ड वैक्सीन की 11 लाख ख़ुराक मदद के रूप में मिली थी। ये वैक्सीन भारत ने अपनी ‘नेबरहुड फर्स्ट’ की नीति के तहत दी थी। इसके अलावा, नेपाल ने सीरम इंस्टीट्यूट से सीधे 10 लाख वैक्सीन ख़रीदी थी। दुर्भाग्य से इस पहले चरण के बाद महामारी की भयंकर दूसरी वेव ने इतना ज़ोरदार हमला किया कि नेपाल में हर दिन हर एक लाख लोगों पर क़रीब 32 नए केस सामने आने लगे। ये उस समय दुनिया में सबसे ज़्यादा दर थी।
नेपाल के टीकाकरण कार्यक्रम में (अपने वैक्सीन मैत्री अभियान के तहत) भारत अभिन्न भागीदार था। इसलिए, जब भारत ने अपने यहां कोरोना के मामले बढ़ने के बाद वैक्सीन का निर्यात बंद किया, तो उससे नेपाल का टीकाकरण अभियान पटरी से उतर गया और उसे दुनिया के हर मुमकिन देश से वैक्सीन देने की अपील करनी पड़ी। इसमें उसके हाथ निराशा ही लगी। जून महीने में नेपाल में 3 करोड़ लोगों में से केवल 30 लाख (ग्राफ 1 देखें) लोगों को ही टीके लगाए जा सके थे। इनमें से 60 साल से ज़्यादा उम्र के कई ऐसे लोग भी थे, जो वैक्सीन की दूसरी ख़ुराक का इंतज़ार कर रहे थे।
इसका मतलब ये था कि नेपाल की कुल आबादी में से केवल दो प्रतिशत को ही वैक्सीन की दोनों डोज़ दी जा सकी थी। विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगर टीकाकरण अभियान की दर ऐसे ही रही, तो 10 प्रतिशत आबादी को वैक्सीन देने में 481 दिन लगेंगे। विशेषज्ञ मानते हैं कि हर्ड इम्युनिटी विकसित करने के लिए 60 से 80 प्रतिशत आबादी को टीका लगाने की ज़रूरत है। नेपाल तो इससे बहुत पीछे है। जिन लोगों को दूसरी डोज़ का इंतज़ार है, उनके लिए लगभग 14 लाख वैक्सीन की फ़ौरन ज़रूरत है।