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दिल्ली उच्च न्यायालय ने समान नागरिक संहिता को बताया जरूरी, कहा अनुच्छे 44 को लागू करने यही है सही समय, केंद्र उठास जरूरी कदम - Prakhar Prahari
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दिल्ली उच्च न्यायालय ने समान नागरिक संहिता को बताया जरूरी, कहा अनुच्छे 44 को लागू करने यही है सही समय, केंद्र उठास जरूरी कदम

दिल्लीः दिल्ली हाईकोर्ट ने देश में समान नागरिक संहिता की जरूरत बताई है और कहा है कि देश में संविधान के अनुच्छेद 44 को लागू करने का यही सही समय है।  हाईकोर्ट ने यह बात मीणा जनजाति की एक महिला और उसके हिंदू पति के बीच तलाक के मुकदमे की सुनवाई के दौरान शुक्रवार को कही। कोर्ट ने कहा कि देश में समान नागरिक संहिता की जरूरत है और इसे लाने का यही सही समय है। साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस मामले में जरूरी कदम उठाने को कहा।

दरअसल महिला का पति हिन्दू मैरिज एक्ट के हिसाब से तलाक चाहता था, जबकि पत्नी का कहना था कि वह मीणा जनजाति की है, ऐसे में उस पर हिन्दू मैरिज एक्ट लागू नहीं होता। पत्नी ने पति की तरफ से फैमिली कोर्ट में दायर तलाक की अर्जी खारिज करने की मांग की थी। पति ने हाईकोर्ट में पत्नी की इसी दलील के खिलाफ याचिका लगाई थी।

मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि भारतीय समाज में जाति, धर्म और समुदाय का फर्क समाप्त हो रहा है। इस वजह से दूसरे धर्म और दूसरी जातियों में शादी करने और फिर तलाक होने में दिक्कतें आ रही हैं। कोर्ट ने कहा कि मौजूदा समय की युवा पीढ़ी को इन दिक्कतों से बचाने की जरूरत है। इस समय देश में समान नागरिक संहिता होनी चाहिए। यानी आर्टिकल 44 में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर जो बात कही गई है, उसे हकीकत में तब्दील करना होगा।

चलिए आपको बताते हैं कि यूनिफॉर्म सिविल कोड क्या होता है- भारतीय संविधान के भाग 4 में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों का ब्योरा है। सीधे शब्दों में कहें, तो अनुच्छेद 36 से 51 के जरिए राज्य को कई मुद्दों पर सुझाव दिए गए हैं और उम्मीद जताई गई है कि राज्य अपनी नीतियां तय करते समय इन नीति निर्देशक तत्वों का ध्यान रखेंगे। इसी सुझाव के तहत आर्टिकल 44 राज्य को सही समय पर सभी धर्मों के लिए समान नागरिक संहिता बनाने का निर्देश देता है। सरल शब्दों में कहें, तो यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी देश के सभी नागरिकों के लिए एक जैसा पर्सनल लॉ बनाने और उसे लागू करने की जिम्मेदारी राज्य की है। अभी तक देश में हिंदू और मुसलमानों के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ हैं। आपको बता दें कि इसमें प्रॉपर्टी, शादी, तलाक और उत्तराधिकार जैसे मामले आते हैं।

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