हार रहा श्रीलंका, जीत रहा चीन, मगर घेराबंदी से निकलने का कोई रास्ता भी तो नहीं

0
220

नई दिल्ली.
श्रीलंका जैसे देशों की चिंताएं बढ़ गई हैं क्योंकि, वहां के मूलभूत ढांचे के विकास में चीन की कंपनियों ने काफ़ी पूंजी लगाई हुई है, और ये निवेश लगातार बढ़ भी रहा है। श्रीलंका की विदेश नीति की हालत इस समय एक डोनट जैसी है जो केवल चीन के विदेशी हितों पर ही केंद्रित है। चिंता की बात ये है कि ये भीतर से खोखली है और संप्रभुता की रक्षा करने वाले राष्ट्रीय हितों की पूरी तरह से अनदेखी की जा रही है। जब कोई विदेशी साझीदार घरेलू मामलों में दख़ल देना शुरू करेगा, तो ये विदेश नीति हिलने लगेगी और श्रीलंका की सरकार घरेलू राजनीति पर अपनी पकड़ गंवा देगी।

श्रीलंका आज चीन के सधे तरीक़े से बिछाए गए क़र्ज़ के जाल मे फंस गया है, और अलग अलग तरह के उसके क़र्ज़ चुका रहा है। इसके लिए उसे अपने सामरिक संसाधनों को क़र्ज़ के बदले हिस्सेदारी से लेकर, व्यापक दायरे वाले विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने जैसे क़दम उठाने पड़ रहे हैं।

श्रीलंका की सरकार से दो तिहाई बहुमत से मंज़ूरी मिलने के बाद 27 मई को संसद के स्पीकर महिंदा यपा अभयवर्धना ने कोलंबो पोर्ट सिटी इकॉनमिक कमीशन बिल पर दस्तख़त किए थे। श्रीलंका के सुप्रीम कोर्ट ने इस विधेयक के कई प्रावधानों को असंवैधानिक ठहराया था। श्रीलंका की बेहद मज़बूत बहुमत वाली सरकार ने बहुत हड़बड़ी में पोर्ट सिटी बिल पास किया था। सरकार ने इस बात की भी अनदेखी कर दी थी, ये देश की संप्रभुता के लिए ख़तरनाक है।

श्रीलंका की हालिया हलचलों का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि लोकतंत्र को चोट पहुंचाकर निरपेक्ष एजेंसियों को हथियार बनाया जा रहा है। दरअसल, श्रीलंका की घरेलू राजनीति और कूटनीति किस क़दर आपस में उलझे हुए हैं। गोटाबाया राजपक्षे की मौजूदा सरकार घरेलू स्तर पर निर्णय लेने की प्रक्रिया और मोल-भाव की गुंजाइश ख़त्म कर दी है। किसी विदेशी ताक़त से अफ़सरशाही के अलग अलग स्तरों पर मोल-भाव करने की सरकारी व्यवस्था भी मौजूद नहीं है। जब बड़े फ़ैसले सीधे शीर्ष स्तर (गोटाबाया और शी जिनपिंग के बीच) पर लिए जाते हैं, तो मोल-भाव की गुंजाइश एकदम ख़त्म हो जाती है।

चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट से जुड़ने और किसी अन्य खिलाड़ी को तरज़ीह दिए बग़ैर, बिना वार्ता के पूरी तरह चीन के पाले में जाने से किसी और ताक़त, ख़ास तौर से श्रीलंका के सबसे क़रीबी पड़ोसी भारत के साथ जुड़ने का विकल्प ख़त्म हो जाता है। भारत और चीन के संबंधों के आयाम को देखते हुए, श्रीलंका को ये उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि भारत कोलंबो पोर्ट सिटी को की तरफ़ से आंखें बंद कर लेगा और ख़ामोश बैठ जाएगा।’ भारत के मुक़ाबले चीन को तरज़ीह देने का घरेलू फ़ैसला करने और अपनी विदेश नीति का संतुलन गंवाने का भारत और श्रीलंका के संबंधों पर गहरा असर होगा।

मौजूदा सरकार ये समझ पाने में नाकाम रही है कि बिल पास करने से उसे घरेलू राजनीति में जो जीत हासिल हुई है, उससे विदेश नीति की चुनौतियां ख़त्म नहीं हुईं। जबकि श्रीलंका के एक संतुलित विदेश नीति अपनाने की ये बुनियादी ज़रूरत है। चीन का आक्रामक रुख़ और श्रीलंका के विदेश सचिव द्वारा शिंजियांग पर बोलने जैसे क़दमों से चीन का असामान्य रूप से बचाव करने से श्रीलंका की विदेश नीति पर कई तरह के बाहरी दबाव पड़ रहे हैं। श्रीलंका की हालिया हलचलों का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि लोकतंत्र को चोट पहुंचाकर निरपेक्ष एजेंसियों को हथियार बनाया जा रहा है।

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के मॉडल में शी जिनपिंग को श्रीलंका के पोर्ट सिटी के प्रोजेक्ट की चिंता करने की ज़रूरत ही नहीं है। श्रीलंका की सरकार का इस बिल को मंज़ूर करके पास कराना राष्ट्रपति जिनपिंग की बीआरआई रणनीति की एक और सफ़लता है। ये उनकी घरेलू नीति से ज़्यादा विदेश नीति की जीत है। वही, गोटाबाया के लिए पैमाना अलग है। उन्होंने ये विधेयक अपने देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को देखते हुए घरेलू राजनीतिक समीकरण के हिसाब से पास कराया है। अगर ये विधेयक घोषित वादे पूरे नहीं करता, तो गोटाबाया की राष्ट्रपति की कुर्सी भी छिन सकती है। वहीं, राष्ट्रपति जिनपिंग को ऐसी कोई फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं है।

चीन के लिए तो पोर्ट सिटी समझौते का दबाव बनाना पहली प्राथमिकता है। ख़ास तौर से तब और जब चीन पर अपने आस-पड़ोस के इलाक़ों और अन्य जगहों पर आक्रामक रवैया अपनाने के आरोप लग रहे हों। ऐसे में श्रीलंका को अपने प्रभाव के दायरे में लाना, चीन की बीआरआई नीति की बड़ी जीत है।

केवल चीन की आर्थिक मदद और सुरक्षा के भरोसे रहना निश्चित रूप से ग़लत आकलन है। चीन के लिए तो पोर्ट सिटी समझौते का दबाव बनाना पहली प्राथमिकता है। ख़ास तौर से तब और जब चीन पर अपने आस-पड़ोस के इलाक़ों और अन्य जगहों पर आक्रामक रवैया अपनाने के आरोप लग रहे हों। ऐसे में श्रीलंका को अपने प्रभाव के दायरे में लाना, चीन की बीआरआई नीति की बड़ी जीत है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here