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मनोरंजन

अलविदा दिलीप कुमार…

मुंबई.
दिग्गज अभिनेता और बॉलीवुड के ‘ट्रैजेडी किंग’ के नाम से मशहूर दिलीप कुमार ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है और उन्हीं के साथ भारतीय सिनेमा के एक युग का अंत हो गया। दिलीप कुमार उर्फ मोहम्मद युसुफ खान की जिंदगी के कई ऐसे किस्से हैं, जिन पर फिल्म बन सकती है।

‘दीदार’ और ‘देवदास’ जैसी फिल्मों में दु:खद भूमिकाओं के मशहूर होने की वजह से दिलीप कुमार को ‘ट्रैजडी किंग’ कहा गया। माना जाने लगा कि दिलीप कुमार गंभीर रोल बहुत बेहतरीन तरीके से निभाते हैं। इस तरह के किरदारों में उनका ढल जाना और पूरी सच्चाई से उस किरदार को निभाना दिलीप कुमार की ताकत बन गया।

कहते हैं कि दिलीप का एक्टर बनने का कोई इरादा नहीं था। वह अपनी लिटरेचर की पढ़ाई जारी रखना चाहते थे, लेकिन पिता के कहने पर उन्होंने साइंस ले ली थी। फुटबॉल की दीवानगी भी दिलीप के सिर चढ़कर बोलती थी। उन्हें खालसा कॉलेज की तरफ से फुटबॉल खेलने के लिए करीब 15 रुपये मिला करते थे। दिलीप अपना गुजारा इसी में कर लिया करते थे, लेकिन उनकी जिंदगी में एक ऐसा मोड़ आया कि उन्हें पढ़ाई और फुटबॉल दोनों ही छोड़ने पड़े।

दिलीप के पिता का फलों का बिजनेस था। उनके यहां से रोजाना चार-पांच गाड़ियां भरकर फलों की सप्लाई होती थी, लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ट्रांसपोर्ट की समस्या होने लगी। अब हफ्ते में केवल दो ही गाड़ियां फलों की सप्लाई कर पा रही थीं। गोदाम फलों से भरा हुआ था, इसलिए उन्होंने जैम बनाना शुरू कर दिया, लेकिन फिर भी फल गोदाम में पड़े-पड़े सड़ रहे थे। ऐसे में घर की माली हालत खराब होने लगी थी।

दिलीप का बचपन गुरबत में गुजरा। आर्थिक हालात ठीक न होने के कारण उन्होंने पुणे की सड़कों पर सैंडविच बेचने का काम शुरू किया। हालांकि, इस बीच एक ऑर्डिनेंस पास हुआ, जिसके तहत केवल सैन्य अधिकारियों को आर्मी क्लब में सामान बेचने की अनुमति थी। इस वजह से दिलीप कुमार को अपना काम बंद करना पड़ा। वो ईद का दिन था, जब दिलीप कुमार को अपनी दुकानें हमेशा के लिए बंद कर पुणे से वापस घर लौटना पड़ा।

कुछ समय बाद दिलीप कुमार मुंबई जाकर नौकरी तलाशने लगे। इसी बीच उनकी मुलाकात बॉम्बे टॉकीज की मालकिन देविका रानी से हुई। देविका ने उन्हें फिल्मों में काम करने का सुझाव दिया। परिवार चलाने के लिए ऐसे में दिलीप ने पहली बार पिता और अपनी इच्छाओं के खिलाफ जाकर फिल्मी दुनिया में कदम रखा। शुरुआती दौर में उन्हें काफी असफलताओं का सामना करना पड़ा, लेकिन फिर धीरे-धीरे देखते ही देखते वह हिंदी सिनेमा के चमकते सितारे बन गए।

दिलीप को फिल्मों में लाने का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वह देविका रानी थीं। उनका मानना था कि एक रोमांटिक हीरो के ऊपर युसूफ खान का नाम ज्यादा फबेगा नहीं। नाम की तलाश शुरू हुई और युसूफ खान, दिलीप कुमार बन गए। दिलीप ने बेहतरीन अभिनेता का सबसे ज्यादा फिल्मफेयर अवॉर्ड जीतने का रिकॉर्ड अपने नाम किया है। देश में पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड पाने वाले भी दिलीप थे। उन्हें अभिनय की संस्था कहा जाता था।

दिलीप कुमार को 1991 में पद्म भूषण और 2015 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। 1994 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया। 1998 में उन्हें पाकिस्तान के सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज से भी सम्मानित किया गया।

50 के दशक में दिलीप कुमार और मधुबाला की प्रेम कहानी खूब चर्चा में रही। दोनों का रिश्ता फिल्म ‘तराना’ के सेट से शुरू हुआ था। वक्त गुजरने के साथ दोनों में प्यार हुआ और दिलीप ने मधुबाला से शादी करने का मन बना लिया। इसी दौरान मधुबाला के पिता को जैसे ही इस रिश्ते की जानकारी लगी, उन्होंने मधुबाला को दिलीप से दूर रहने की हिदायत दे दी। परिवार की बंदिशों के बावजूद दोनों का प्यार परवान चढ़ता रहा।

बीआर चोपड़ा की दिलीप-मुधबाला अभिनीत फिल्म ‘नया दौर’ की शूटिंग शुरू होने को थी। शूटिंग मध्यप्रदेश में होनी थी, लेकिन मधुबाला को अपने पिता से वहां जाने की अनुमति नहीं मिली। इससे बीआर चोपड़ा काफी नाराज हुए। उन्होंने मधुबाला के खिलाफ केस कर दिया। जब दिलीप का बयान लिया गया तो उन्होंने प्रोड्यूसर के साथ जो एग्रीमेंट हुआ था, उसके बारे में कोर्ट को जानकारी दे दी। इस घटना के बाद दोनों की राहें हमेशा के लिए जुदा हो गईं।

सायरा बानो दिलीप कुमार की जिंदगी में सच्चा प्यार बनकर आईं, जो आखिरी सांस तक उनके साथ साए की तरह खड़ी रहीं। सायरा ने 22 साल की उम्र में दिलीप कुमार से शादी की थी। उस समय दिलीप 44 साल के थे। 12 साल की उम्र से सायरा, दिलीप को दीवानों की तरह चाहती थीं। वक्त बीतने के साथ दिलीप को भी सायरा से प्यार हो गया। सायरा बानो के शब्दों में दिलीप साहब उन्हें कायनात से तोहफे में मिले।

1200 रुपये सैलरी के साथ दिलीप कुमार ने बॉम्बे टॉकीज में काम शुरू किया था। देविका रानी ने उन्हें ज्वार भाटा में कास्ट किया। अपनी बायोग्राफी Dilip Kumar: The Substance and The Shadow में उन्होंने लिखा है, ‘मैंने अपनी लाइफ में कभी फिल्म स्टूडियो नहीं देखा था। यहां तक कि फोटो में भी नहीं देखा था। मैंने सिर्फ इस बारे में सुना था। स्टूडियो में मैं पहली बार जब देविका रानी से मिला तो उनके एक सवाल ने मेरी जिंदगी बदल दी। उन्होंने पूछा था कि क्या तुम 1250 रुपये की सैलरी पर यहां काम करोगे। उस वक्त मुझे पता नहीं था कि क्या जवाब दूं।”

फिल्म ज्वार भाटा में दिलीप कुमार का पहला सीन वो था, जिसमें उन्हें दौड़ते हुए जाकर हीरोइन को बचाना था। यहां पर वो इतनी तेज दौड़े कि कैमरे में सब ब्लर रिकॉर्ड हुआ। ये फिल्म तो नहीं चली, लेकिन इससे उनकी किस्मत जरुर चमक गई। जुगनू में नूरजहां के साथ उनकी जोड़ी को पसंद किया गया और उन्हें पॉपुलैरिटी मिली। 1949 में रिलीज हुई फिल्म अंदाज ने उनके करियर को बड़ा ब्रेक दिया। इस फिल्म को महबूब खान ने बनाया जिसमें उनके साथ नरगिस और राज कपूर थे। इसके बाद इसी साल शबनम रिलीज हुई ये फिल्म भी हिट रही।

दिलीप कुमार कितने बड़े स्टार थे इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि 1950 के दशक में Top 30 highest-grossing फिल्मों में से उनकी नौ फिल्में थीं। वहीं उनकी फिल्म मुगल-ए-आजम ने ऐसा इतिहास रचा कि 11 सालों तक कोई रिकॉर्ड नहीं तोड़ पाया था। के. आसिफ की इस फिल्म में दिलीप कुमार ने इसमें प्रिंस सलीम का रोल निभाया। 1960 में रिलीज हुए ये फिल्म उस जमाने की Highest-Grossing फिल्म बन गई। 1971 में रिलीज हुई हाथी मेरे साथी और 1975 में रिलीज हुई शोले ने इस फिल्म को पीछे छोड़ा।
1976 में बैराग फिल्म के बाद दिलीप कुमार ने काम से ब्रेक ले लिया। उनका कहना था कि वो थक गए थे और उन्हें छुट्टियों की बहुत जरुरत थी। लेकिन उनके इस फैसले से सायरा बानो खुश नहीं थीं।

ब्रेक के बाद 1981 में क्रांति फिल्म का आइडिया लेकर मनोज कुमार उनके पास आए थे। बिना स्क्रिप्ट पढ़े ही वो इस फिल्म के लिए तैयार हो गए थे। उनकी कमबैक फिल्म क्रांति जब 1982 में रिलीज हुई तो ब्लॉकबस्टर साबित हुई। इसके बाद उन्होंने सुभाष घई के साथ विधाता की। इसके अलावा कर्मा सौदागर, शक्ति और मशाल जैसी हिट फिल्में दीं।
आज फिल्मों में कौन कितनी फीस लेता है इसकी खूब चर्चा होती है। दिलीप कुमार पहले ऐसे एक्टर थे, जिन्होंने उस दौर में सबसे पहले अपनी फीस एक लाख कर दी थी। वो सबसे महंगे एक्टर थे। 1950 के दशक में ये रकम बहुत ज्यादा थी। इसके बावजूद उनके पास फिल्मों की भरमार थी।

Delhi Desk

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