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राष्ट्रपति कोविंद पहुंचे पैतृक गांव, कहा- स्वर्ग से बढ़कर है जननी-जन्मभूमि - Prakhar Prahari
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राष्ट्रपति कोविंद पहुंचे पैतृक गांव, कहा- स्वर्ग से बढ़कर है जननी-जन्मभूमि

नई दिल्ली.
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद अपने तीन दिवसीय दौरे के लिए रविवार को कानपुर पहुंचे। इस दौरान उन्होंने अपने पैतृक गांव परौंख का दौरा किया। परौंख गांव में लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि जन्मभूमि से जुड़े ऐसे ही आनंद और गौरव को व्यक्त करने के लिए संस्कृत काव्य में कहा गया है कि ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ अर्थात जन्म देने वाली माता और जन्मभूमि का गौरव स्वर्ग से भी बढ़कर होता है।

मैंने सपने में भी कभी कल्पना नहीं की थी कि गांव के मेरे जैसे एक सामान्य बालक को देश के सर्वोच्च पद के दायित्व निर्वहन का मौका मिलेगा, लेकिन हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था ने यह कर दिखाया। मातृभूमि की इसी प्रेरणा ने मुझे हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट से राज्यसभा, राज्यसभा से राजभवन और राजभवन से राष्ट्रपति भवन तक पहुंचा दिया। राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में संविधान निर्माताओं का आभार जताया और कहा कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह देश के राष्ट्रपति बनेंगे।

उत्तर प्रदेश के कानपुर नगर और कानपुर देहात के 3 दिवसीय दौरे पर पहुंचे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद तय कार्यक्रम के अनुसार रविवार सुबह सबसे पहले अपने गांव परौंख पहुंचे। उन्होंने यहां पथरी देवी मंदिर पहुंच कर दर्शन किया और फिर गांव वालों का अभिनंदन करते हुए सभी को धन्यवाद दिया।

मेरे लिए परौंख केवल एक गांव नहीं है। यह मेरी मातृभूमि है, जहां से मुझे आगे बढ़कर देश-सेवा की सदैव प्रेरणा मिलती रही। सचमुच में, आज मैं जहां तक पहुंचा हूं उसका श्रेय इस गांव की मिट्टी और इस क्षेत्र तथा आप सब लोगों के स्नेह और आशीर्वाद को जाता है। अपने संबोधन के अंत में उन्होंने गांव वालों से अपील की कि पूरे देश में और उत्तर प्रदेश में भी टीकाकरण का अभियान चल रहा है। वैक्सीनेशन भी कोरोना महामारी से बचाव के लिए कवच की तरह है। इसीलिए सभी स्वयं तो टीका लगवाएं ही, दूसरों को भी वैक्सीनेशन के लिए प्रेरित करें।

गांव में सबसे वृद्ध महिला को माता तथा बुजुर्ग पुरुष को पिता का दर्जा देने का संस्कार मेरे परिवार में रहा है। चाहे वे किसी भी जाति, वर्ग या संप्रदाय के हों। आज मुझे यह देख कर खुशी हुई है कि बड़ों का सम्मान करने की हमारे परिवार की यह परंपरा अब भी जारी है। भारतीय संस्कृति में ‘मातृ देवो भव’, ‘पितृ देवो भव’, ‘आचार्य देवो भव’ की शिक्षा दी जाती है। हमारे घर में भी यही सीख दी जाती थी।

Delhi Desk

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