पटना.
दिवंगत दिग्गज नेता रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) अंतत: पारिवारिक कलह की भेंट चढ़ती नजर आ रही है। लोजपा सांसद पशुपति कुमार पारस, चौधरी महबूब अली कैसर, वीणा सिंह, चंदन सिंह और प्रिंसराज की चिराग पासवान से राहें अलग हो गई हैं। लोजपा में इस टूट की वजह भाजपा और जदयू के बीच चिराग को लेकर जारी तकरार को माना जा रहा है।
रविवार देर शाम तक चली लोजपा सांसदों की बैठक में इस फैसले पर मुहर लग गई। बाद में पांचों सांसदों ने अपने इस फैसले की जानकारी लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को भी दे दी। सांसदों ने उन्हें इस संबंध में आधिकारिक पत्र भी सौंप दिया। सोमवार यानी आज ये सांसद चुनाव आयोग को भी इसकी जानकारी देंगे। उसके बाद अपने फैसलों की आधिकारिक घोषणा भी करेंगे। सूत्रों के मुताबिक, सोमवार शाम 3 बजे लोकसभा स्पीकर के साथ लोजपा के नाराज गुट की मीटिंग है। इस मीटिंग के दौरान लोजपा का नाराज गुट पार्टी पर अपना दावा ठोकेगा, जिसके बाद सभी के जेडीयू में शामिल होने की संभावना जताई जा रही है। अब चिराग पार्टी में अकेले ही रह गए हैं। चिराग पासवान पार्टी के रूठे नेताओं को मनाने में जुट गए हैं। पिछली बार सांसदों ने चिराग की बात मान ली थी, लेकिन इस बार वे पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।
बड़ी बात यह भी है कि टूट की खबर उस समय आ रही है, जब केंद्र में कैबिनेट फेरबदल की खबर आ रही है और नीतीश अपनी पार्टी के लिए अधिक कोटे की मांग कर रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, पशुपति कुमार पारस केंद्र में मंत्री बन सकते हैं। वर्ष 2019 में जब प्रधानमंत्री मोदी ने दोबारा कमान संभाली, तब एक फार्मूला बना कि सहयोगी दलों को मंत्रिपरिषद में एक-एक सीट दी जाएगी। तब 16 सांसदों वाली जेडीयू मंत्रिपरिषद में शामिल नहीं हुई। उसकी कम से कम दो सीटों की मांग थी। 6 सांसदों वाली लोजपा से रामविलास पासवान मंत्री बने। विधानसभा चुनाव के ठीक पहले उनका निधन हो गया। लोजपा का कोटा खाली हुआ तो अभी तक भरा नहीं गया।
याद रहे, आज से 2 साल पहले वर्ष 2000 में 28 नवंबर को रामविलास पासवान ने लोजपा बनाई थी। तब से व लगातार केंद्र के चहेते बने रहे और वृहद जनाधार नहीं होने के बावजूद विभिन्न मंत्रालयों को संभालते रहे। उनके निधन के बाद चिराग को पुत्र होने का फायदा मिला। विधानसभा चुनाव के दौरान चिराग ने खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान बताया था, लेकिन एनडीए से बाहर निकलकर बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने को लेकर उनके चाचा पशुपति कुमार पारस नाराज थे। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि नीतीश के सवाल पर चाचा-भतीजे में मनमुटाव संवादहीनता के स्तर तक पहुंच गया और परिवार टूट गया।
विधानसभा चुनाव के पहले भी पार्टी के सांसदों में टूट की बात सामने आई थी। उस वक्त भी बागी सांसदों का नेतृत्व पशुपति कुमार पारस ही कर रहे थे। हालांकि, बाद में अपने लेटर हेड पर इन चर्चाओं का खंडन कर पारस ने इस मामले पर विराम लगा दिया था, लेकिन चिराग के खिलाफ पार्टी में नाराजगी कम नहीं हुई। विधानसभा चुनाव में लोजपा के बेहद खराब प्रदर्शन के बाद यह नाराजगी चरम पर पहुंच गई।
बिहार विधानसभा चुनाव में 143 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली लोजपा महज एक सीट जीत पाई थी। महिटानी के जीतकर आए लोजपा के इकलौते विधायक को भी चिराग पासवान अपनी पार्टी में नहीं रख पाए और वह जेडीयू में शामिल हो गए। इसके पहले, चुनाव परिणाम के बाद कई जिलाध्यक्ष समेत दो सौ से ज्यादा नेता लोजपा छोड़कर जेडीयू में शामिल हो गए थे। अब लोजपा का बिहार विधानसभा या विधान परिषद में कोई विधायक नहीं है।
राजनीति में पासवान परिवार की एकता की मिसाल दी जाती थी। रामविलास पासवान, पशुपति कुमार पारस और रामचंद्र पासवान तीनों भाईयों में अगाध प्रेम अक्सर चर्चा का विषय रहता था। राजनीतिक गलियारों में चर्चा थी कि जब भी तीनों भाई जुटते हैं, तो साथ ही खाना खाते हैं। कोई भी फैसला सामूहिक रूप से लेते हैं। अब सब कहानी रह गई है।
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