देश में कोरोना वायरस से संरक्षण के लिए वैक्सीनेश का दौर चल रहा है। इस प्राण घातक विषाणु से बचाव के लिए 18 से अधिक उम्र के सभी लोगों का टीकाकरण किया जा रहा है। इस बीच लोगों के मन में ये सवाल बार-बार कौंध रहे हैं कि कोविड-19 के खिलाफ कौन सी वैक्सीन अधिक प्रभावी है? किस वैक्सीन को लगवाने से कोरोना संक्रमण का खतरा खत्म हो जाएगा? कौन सी वैक्सीन का साइड इफेक्ट सबसे कम है? कौन सी वैक्सीन लगवाने से एंडीबॉडी तेजी से और अधिक बनने लगते हैं। इन्हीं सवालों का जवाब तलाशन के लिए हाल ही में एक स्टडी हुई है, जिसमें बताया गया है कि ऑक्सफर्ड-एस्ट्राजेनेका की कोविशील्ड (Covishild) स्वदेशी कोवैक्सीन (Covaxine) की तुलना में अधिक एंडीबॉडीज बनाती है।
कोरोना वायरस वैक्सीन-इंड्यूस्ड एंडीबॉडी टाइट्रे (COVAT) की तरफ से की गई प्रारंभिक स्टडी के मुताबिक वैक्सीन की पहली डोज ले चुके लोगों में कोवैक्सीन की तुलना में कोविशील्ड वैक्सीन लेने वाले लोगों में एंटीबॉडी अधिक बनती है। इस स्टडी में 552 हेल्थकेयर वर्कर्स को शामिल किया गया था। स्टडी में दावा किया गया कि कोविशील्ड वैक्सीन लगवाने वाले लोगों में सीरोपॉजिटिविटी रेट (Seropositivity Rate) से लेकर एंटी-स्पाइक एंटीबॉडी कोवैक्सीन की पहली डोज लगवाने वाले लोगों की तुलना में काफी अधिक थे।
कोवैट की स्टडी में बताया गया है कि दोनों वैक्सीन कोविशील्ड और कोवैक्सीन दोनों का रेस्पॉन्स अच्छा है, लेकिन सीरोपॉजिटिवी रेट और एंटी स्पाइक एंटीबॉडी कोविशील्ड में अधिक है। सर्वे में शामिल 456 हेल्थकेयर वर्कर्स को कोविशील्ड और 96 को कोवैक्सीन की पहली डोज दी गई थी। पहली डोज के बाद ओवरऑल सीरोपॉजिटिविटी रेट 79.3 फीसदी रहा।
कोवैट की स्टडी के निष्कर्ष में कहा गया कि दोनों वैक्सीन लगवा चुके हेल्थकेयर वर्कर्स में इम्यून रिस्पॉन्स अच्छा था। आपको बता दें कि कोवैट की स्टडी अभी चल रही है। इसमें दोनों वैक्सीन की दूसरी डोज लेने के बाद इम्यून रेस्पॉन्स के बारे में और बेहतर तरीके से रोशनी डाली जा सकेगी। स्टडी में उन हेल्थ वर्कर्स को शामिल किया गया जिन्हें कोविशील्ड और कोवाक्सिन दोनों में से कोई भी वैक्सीन लगाई गई थी। साथ ही इनमें से कुछ ऐसे थे जिन्हें सार्स-सीओवी-2 संक्रमण हो चुका था। वहीं, कुछ ऐसे भी थे जो पहले इस वायरस के संपर्क में नहीं आए थे। अब आपको बताते हैं कि
देश में कोरोना वायरस से संरक्षण के लिए वैक्सीनेश का दौर चल रहा है। इस प्राण घातक विषाणु से बचाव के लिए 18 से अधिक उम्र के सभी लोगों का टीकाकरण किया जा रहा है। इस बीच लोगों के मन में ये सवाल बार-बार कौंध रहे हैं कि कोविड-19 के खिलाफ कौन सी वैक्सीन अधिक प्रभावी है? किस वैक्सीन को लगवाने से कोरोना संक्रमण का खतरा खत्म हो जाएगा? कौन सी वैक्सीन का साइड इफेक्ट सबसे कम है? कौन सी वैक्सीन लगवाने से एंडीबॉडी तेजी से और अधिक बनने लगते हैं। इन्हीं सवालों का जवाब तलाशन के लिए हाल ही में एक स्टडी हुई है, जिसमें बताया गया है कि ऑक्सफर्ड-एस्ट्राजेनेका की कोविशील्ड (Covishild) स्वदेशी कोवैक्सीन (Covaxine) की तुलना में अधिक एंडीबॉडीज बनाती है।
कोरोना वायरस वैक्सीन-इंड्यूस्ड एंडीबॉडी टाइट्रे (COVAT) की तरफ से की गई प्रारंभिक स्टडी के मुताबिक वैक्सीन की पहली डोज ले चुके लोगों में कोवैक्सीन की तुलना में कोविशील्ड वैक्सीन लेने वाले लोगों में एंटीबॉडी अधिक बनती है। इस स्टडी में 552 हेल्थकेयर वर्कर्स को शामिल किया गया था। स्टडी में दावा किया गया कि कोविशील्ड वैक्सीन लगवाने वाले लोगों में सीरोपॉजिटिविटी रेट (Seropositivity Rate) से लेकर एंटी-स्पाइक एंटीबॉडी कोवैक्सीन की पहली डोज लगवाने वाले लोगों की तुलना में काफी अधिक थे।
कोवैट की स्टडी में बताया गया है कि दोनों वैक्सीन कोविशील्ड और कोवैक्सीन दोनों का रेस्पॉन्स अच्छा है, लेकिन सीरोपॉजिटिवी रेट और एंटी स्पाइक एंटीबॉडी कोविशील्ड में अधिक है। सर्वे में शामिल 456 हेल्थकेयर वर्कर्स को कोविशील्ड और 96 को कोवैक्सीन की पहली डोज दी गई थी। पहली डोज के बाद ओवरऑल सीरोपॉजिटिविटी रेट 79.3 फीसदी रहा।
कोवैट की स्टडी के निष्कर्ष में कहा गया कि दोनों वैक्सीन लगवा चुके हेल्थकेयर वर्कर्स में इम्यून रिस्पॉन्स अच्छा था। आपको बता दें कि कोवैट की स्टडी अभी चल रही है। इसमें दोनों वैक्सीन की दूसरी डोज लेने के बाद इम्यून रेस्पॉन्स के बारे में और बेहतर तरीके से रोशनी डाली जा सकेगी। स्टडी में उन हेल्थ वर्कर्स को शामिल किया गया जिन्हें कोविशील्ड और कोवाक्सिन दोनों में से कोई भी वैक्सीन लगाई गई थी। साथ ही इनमें से कुछ ऐसे थे जिन्हें सार्स-सीओवी-2 संक्रमण हो चुका था। वहीं, कुछ ऐसे भी थे जो पहले इस वायरस के संपर्क में नहीं आए थे। अब आपको बताते हैं कि एंटीबॉडी क्या होती है?
एंटीबॉडी शरीर का वह तत्व है, जिसका निर्माण हमारा इम्यून सिस्टम शरीर में वायरस को बेअसर करने के लिए पैदा करता है। कोरोना वायरस का संक्रमण के बाद एंटीबॉडीज बनने में कई बार एक हफ्ते तक का वक्त लग सकता है। जब कोई व्यक्ति कोविड-19 से संक्रमित हो जाता है तो उसके शरीर में एंटीबॉडी बनते हैं, जो वायरस से लड़ते हैं। ठीक हुए 100 कोरोना मरीजों में से आमतौर पर 70-80 मरीजों में ही एंटीबॉडी बनते हैं। इसमें अमूमन ठीक होने के बाद दो हफ्ते का समय लगता है, लेकिन कुछ मरीजों में कोरोना से ठीक होने के बाद भी महीनों तक भी एंटीबॉडी नहीं बनता है।
एंटीबॉडी शरीर का वह तत्व है, जिसका निर्माण हमारा इम्यून सिस्टम शरीर में वायरस को बेअसर करने के लिए पैदा करता है। कोरोना वायरस का संक्रमण के बाद एंटीबॉडीज बनने में कई बार एक हफ्ते तक का वक्त लग सकता है। जब कोई व्यक्ति कोविड-19 से संक्रमित हो जाता है तो उसके शरीर में एंटीबॉडी बनते हैं, जो वायरस से लड़ते हैं। ठीक हुए 100 कोरोना मरीजों में से आमतौर पर 70-80 मरीजों में ही एंटीबॉडी बनते हैं। इसमें अमूमन ठीक होने के बाद दो हफ्ते का समय लगता है, लेकिन कुछ मरीजों में कोरोना से ठीक होने के बाद भी महीनों तक भी एंटीबॉडी नहीं बनता है।