नई दिल्ली
हमारे देश में सबसे ज़्यादा युवा आबादी है। हर साल एक नई खेप नौकरी के बाज़ार में उतरती है और उनमें से ज़्यादातर के हाथ मायूसी ही लगती है। बेरोज़गारी दर 8.5 फीसदी के आस-पास है। आने वाले समय में बेरोज़गारी और बढ़ेगी, क्योंकि ज़्यादातर छात्र इंजीनियरिंग और आईटी सेक्टर में ही दाखिला ले रहे हैं, जो कि बुरे दौर से गुज़र रहा है। अब शिक्षा पर और खर्च बढ़ जाएगा। इसमें ज़्यादातर खर्च ट्यूशन फीस और परीक्षा फीस पर खर्च होता है, इसमें किताबों और स्टेशनरी पर होने वाला खर्च अलग है। नौकरियां है नहीं, प्रतिस्पर्धा और खर्च दोगुना हो गए।
भारत की जीडीपी लगातार गिरावट पर है। ऐसे माहौल में रोज़गार के अवसर पैदा होना नामुमकिन है उल्टा कंपनियां खर्च घटाने के लिए लोगों को निकालने लगेंगी या फिर नए लोगों को नौकरियां नहीं देंगी। शिक्षा पर खर्च 4 गुना बढ़ गया है। कई छात्र लोन लेकर महंगी शिक्षा हासिल करते हैं अगर उन्हें नौकरी नहीं मिली तो वो कहां जाएंगे।
इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने वाले छात्रों को हाल तक आईटी यानी सूचना तकनीक का क्षेत्र काफी लुभावना लगता था। यह कहें तो बेहतर होगा कि इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद किसी आईटी कंपनी में नौकरी पाना ज्यादातर छात्रों का सपना होता था, लेकिन अब इसका आकर्षण तेजी से घट रहा है। इस क्षेत्र की कंपनियों के आकर्षक पैकेज भी भारत के बेहतरीन इंजीनियरिंग कालेजों के होनहार छात्रों को नहीं लुभा पा रहे हैं। ऐसे तमाम छात्र अब आईटी कंपनी में नौकरी की बजाय मास्टर डिग्री के लिए जरूरी ग्रेजुएट एप्टीट्यूड टेस्ट इन इंजीनियरिंग (गेट) को तरजीह दे रहे हैं।
पहले सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां कैंपस इंटरव्यू के जरिए ही नौकरियां देती थीं, लेकिन अब उहोंने ऐसा करने की बजाय गेट में बढ़िया अंक हासिल करने को ही चयन का पैमाना बना लिया है। यही वजह है कि ज्यादातर छात्र गेट की ओर मुड़ रहे हैं। तमाम इंजीनियरिंग कालेजों में आईटी कंपनियां बड़े पैमाने पर छात्रों को नौकरी देती हैं. लेकिन आम धारणा यह है कि वहां काम के मुकाबले पैसे नहीं मिलते और जिंदगी एक ढर्रे में बंध जाती है।