सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से अब तक खरीदी गई वैक्सीन पूरी जानकारी तथा कितनी आबादी को वैक्सीनेट किया जा चुका है, इसका डाटा पेश करने को कहा है। इसके साथ ही कोर्ट ने सवाल किया कि वैक्सीनेशन के लिए आपने 35 हजार करोड़ का बजट रखा है, अब तक इसे कहां खर्च किया। कोर्ट ने केंद्र सरकार से दो  हफ्ते के भीतर हलफनामे के रूप में इन सभी डीटेल को पेश करने को कहा है।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एलएन राव और जस्टिस एस रवींद्र भट्ट की स्पेशल बेंच बुधवार को केंद्र सरकार से पूछा है कि बताए कि अभी तक कोरोना की कितनी वैक्सीन कब-कब खरीदी गई हैं। कितनी आबादी को वैक्सीन दी जा चुकी है और बाकी बचे लोगों को कबतक वैक्सीनेट किया जाएगा। इस दौरान कोर्ट ने सरकार से ब्लैक फंगस को लेकर भी सवाल पूछे। कोर्ट ने पूछा है कि ब्लैक फंगस के इलाज के लिए दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं, इसकी भी जानकारी दें।

कोर्ट ने सरकार से कहा कि साफ-साफ बताए कि तीनों वैक्सीनों (कोविशील्ड, कोवैक्सीन, स्पूतनिक-वी)  खरीदने के लिए कब-कब ऑर्डर दिए गए। हर डेट पर वैक्सीनों की कितनी डोज का ऑर्डर दिया गया और उसकी आपूर्ति की आनुमानित तिथि क्या था।

इसके साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह भी बताने को कहा है कि अभी तक कितने प्रतिशत आबादी को वैक्सीन की एक या दोनों डोज दी जा चुकी है। कोर्ट ने पूछा कि ग्रामीण क्षेत्रों में कितने प्रतिशत लोगों को और शहरी क्षेत्रों में कितने प्रतिशत को लोगों को वैक्सीन लग चुकी है।

वैक्सीनेशन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों से भी सवाल पूछे हैं। कोर्ट ने कहा है कि केंद्र ने कहा था कि राज्य सरकारें अपनी आबादी को मुफ्त टीका लगवा सकती हैं। ऐसी स्थिति में यह जरूरी हो जाता है कि राज्य सरकारें कोर्ट के सामने अपनी स्थिति स्पष्ट करें कि वे ऐसा करने जा रही हैं या नहीं। कोर्ट ने कहा कि यदि राज्य सरकारें अपनी जनता के फ्री वैक्सीनेशन के लिए राजी होती हैं तो ये मूल्यों का मामला बन जाता है। ऐसे में राज्यों के जवाब में उनकी इस पॉलिसी को बताया जाना चाहिए ताकि उनके राज्य की जनता को ये भरोसा हो सके कि वैक्सीनेशन सेंटर पर उन्हें फ्री वैक्सीनेशन का अधिकार मिलेगा। कोर्ट ने कहा कि राज्य हमें दो हफ्ते में इस बारे में अपनी स्थिति और अपनी-अपनी पॉलिसी बताएं।

कोर्ट ने कहा कि वैक्सीनेशन पॉलिसी पर केंद्र की सोच को दर्शाने वाले सभी जरूरी दस्तावेज कोर्ट के सामने रखे जाएं। कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार ने वैक्सीनेशन के शुरुआती दो चरणों में सभी को मुफ्त टीका उपलब्ध कराया, लेकिन बारी जब 18 से 44 साल के एज ग्रुप की आई तो केंद्र ने वैक्सीनेशन की जिम्मेदारी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों पर डाल दी। केंद्र ने इस एज ग्रुप के टीकाकरण के लिए राज्यों को भुगतान करने को कहा। केंद्र का यह आदेश पहली नजर में ही मनमाना और तर्कहीन नजर आता है।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने उन रिपोर्ट्स का हवाला भी दिया, जिसमें यह बताया गया था कि 18 से 44 साल के लोग न सिर्फ कोरोना संक्रमित हुए, बल्कि उन्हें लंबे समय तक अस्पताल में भी रहना पड़ा। कई मामलों में इस एज ग्रुप के लोगों की मौत भी हो गई। कोर्ट ने कहा कि कोरोना के बदलते नेचर की वजह से 18 से 44 साल के लोगों का वैक्सीनेशन जरूरी हो गया है। प्रायोरिटी ग्रुप के लिए वैक्सीनेशन के इंतजाम अलग से किए जा सकते हैं।

केंद्र तर्क देता है कि ज्यादा प्राइवेट मैन्युफैक्चर्स को मैदान में उतारने के लिए प्राइसिंग पॉलिसी को लागू किया गया है। जब पहले से तय कीमतों पर मोलभाव करने के लिए केवल दो मैन्युफैक्चरर्स हैं तो इस तर्क को कितना टिकाऊ माना जाए। कोर्ट ने सवाल किया कि केंद्र ये कह रहा है कि उसे वैक्सीन सस्ती कीमतों पर इसलिए मिल रही है, क्योंकि वह ज्यादा मात्रा में ऑर्डर कर रहा है। इस पर तो सवाल उठता है कि फिर वो हर महीने 100 प्रतिशत डोजेज क्यों नहीं खरीद लेता है।

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