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लाइफस्टाइल

वक्त आ गया है, बच्चों को सेक्स की घर में शिक्षा दी जाए

नई दिल्ली.
अपने देश में ‘सेक्स’ को बंद कमरे में ही उचित माना गया है, मगर जमाना बदल रहा है। पहले नाबालिग उम्र में ही भले ही शादियां हो जाती थीं, लेकिन जिनकी शादी होती थी, वे ही शादी के बारे में कुछ नहीं जानते थे। अब इस पर बहस चल निकली है कि जब विचार स्वच्छंद होने ही लगे हैं, तो क्यों न बच्चों को घर पर ही सेक्स की भ्रांतियों के बारे में जानकारी दी जाए। दूसरे शब्दों में कहें तो शारीरिक परिवर्तन के समय में ही बच्चे-बच्चियों को उनके अभिभावक इन परिवर्तनों के बारे में समझाएं। परंतु दिक्कत यह है कि हमारे समाज में अभी तक इस विषय पर घर में कुछ भी खोलकर बोलना कतई सभ्य नहीं माना जाता। बच्चों को सेक्स एजुकेशन देना कोई गलत बात नहीं है, आप अपने हिसाब से अपने बच्चों से इस बारे में बात कर सकते हैं, ध्यान रहे कि बच्चों को सही समय पर सेक्स एजुकेशन देने से उन्हें गलत राह पर जाने या कुछ गलत करने से बचाया जा सकता है।

जो समझ सकें, वही समझाएं
सबसे पहले अपने बच्चों से सेक्सुअलटी के बारे में बात करते समय, सुनिश्चित करें कि आप चीजों को इस तरह से समझाएं जो उनके विकास के लिए उपयुक्त हों। आपको एक बार में सब कुछ समझाने की ज़रूरत नहीं है, यंग बच्चे सेक्सुलअटी संबंधित जानकारी के बजाय गर्भावस्था और शिशुओं में अधिक रुचि रखते हैं। जब आप अपने बच्चों से सेक्स एजुकेशन को लेकर बात कर रहे हैं, तो चीजों को इस तरह से समझाना जरूरी है, जिसे आपका बच्चा उसकी उम्र और विकास के लेवल के मुताबिक समझ सके। ज्यादातर दो साल के बच्चे पुरुष और महिला के बीच के अंतर को जानते हैं, और आमतौर पर यह पता लगा सकते हैं कि कोई व्यक्ति पुरुष है या महिला है। उन्हें इस बात की सामान्य समझ होनी चाहिए कि किसी व्यक्ति के जेंडर की पहचान उनके प्राइवेट पार्ट्स से निर्धारित नहीं होती है और यह जेंडर आइडेंटेटी अलग-अलग तरीकों से व्यक्त किया जा सकता है, इस उम्र के बच्चों को बेड टच और गुड टच के बारे में बताया जा सकता है।

1.टॉडलर्स 13-14 महीने
टॉडलर्स को प्राइवेट पार्ट्स सहित शरीर के सभी पार्ट्स का नाम बताया जाना चाहिए, बॉडी पार्ट्स के लिए सही नामों का इस्तेमाल किए जाने से वे किसी भी हेल्थ इश्यू, चोटों या सेक्सुअल एब्यूज को को बेहतर ढंग से बता पाएंगे। इससे उन्हें यह समझने में भी मदद मिलती है कि ये अंग किसी भी अन्य की तरह सामान्य हैं, जिससे उनमें आत्मविश्वास और पॉजिटिव बॉडी इमेज डेवलप होती है।

2. प्री स्कूल- 5 से आठ साल की उम्र के बच्चे
इस उम्र के बच्चों को एक बुनियादी समझ होनी चाहिए कि कुछ लोग हेट्रोसेक्सुअल, होमोसेक्सुअल या बायसेक्सुअल होते हैं, और यह है कि जेंडर एक्सप्रेशन की एक रेंज होती है। जेंडर किसी व्यक्ति के जननांगों द्वारा निर्धारित नहीं होता है, उन्हें यह भी पता होना चाहिए कि रिश्तों में सेक्सुअलटी की भूमिका क्या है।

3. प्री-टीन्स- 9 से 12 वर्ष
प्री-टीन्स को सेफ सेक्स और कॉन्ट्रासेप्शन के बारे में समझाया जाना चाहिए, उन्हें गर्भावस्था और यौन संचारित संक्रमण (एसटीआई) के बारे में बुनियादी जानकारी होनी चाहिए, उन्हें पता होना चाहिए कि किशोर होने का मतलब यह नहीं है कि उन्हें सेक्सुअल एक्टिव होना है। प्री-टीन्स को यह समझ होनी चाहिए कि एक पॉजिटिव रिलेशनशिप क्या होता है और ये कब बुरा हो सकता है। प्री-टीन्स को बुलिंग और सेक्सटिंग सहित इंटरनेट सेफ्टी की जानकारी होनी चाहिए, ताकि वे अपनी और अपने किसी दोस्त की न्यूज तस्वीरें साझा करने का रिस्क न लें।

4. टीनएजर्स- 13 से 18 वर्ष
इस उम्र की किशोरियों को मासिक धर्म और nocturnal emissions के बारे में ज्यादा डिटेल में जानकारी दी जानी चाहिए, उन्हें ये बताया जाना चाहिए कि वे नॉर्मल और हेल्दी हैं। उन्हें गर्भावस्था और एसटीआई के बारे में और विभिन्न गर्भनिरोधक विकल्पों के बारे में और उन्हें सुरक्षित सेक्स का अभ्यास करने के लिए कैसे उपयोग करना चाहिए, इसके बारे में अधिक जानकारी होनी चाहिए।

Delhi Desk

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