नई दिल्ली
जाने माने पर्यावरणविद और चिपको आंदोलन से पहचान बनाने वाले सुंदरलाल बहुगुणा का आज शुक्रवार को कोरोना से निधन हो गया है। इसकी जानकारी ऋषिकेश एम्स की तरफ से दी गई है। एम्स में उनका इलाज चल रहा था। 8 मई को ही कोरोना संक्रमित होने के बाद उन्हें एम्स में भर्ती कराया गया था, जहां आज उन्होंने अंतिम सांस ली। मिली जानकारी के मुताबिक आज दोपहर 12 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। बताया जा रहा है कि संक्रमण की वजह से उनका ऑक्सीजन काफी कम हो गया था जिसकी वजह से उनका निधन हो गया। उनका ऑक्सीजन सेचुरेशन 86% पर था। डायबिटीज के साथ वह कोविड निमोनिया से पीड़ित थे।
एम्स के जनसंपर्क अधिकारी हरीश थपलियाल ने बताया, उनका उपचार कर रही चिकित्सकों की टीम ने इलेक्ट्रोलाइट्स व लीवर फंक्शन टेस्ट समेत ब्लड शुगर की जांच और निगरानी की सलाह दी है। उनके पुत्र व पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा, बहनोई डा.बीसी पाठक ने लेकर एम्स में भर्ती करवाया था। सुंदरलाल बहुगुणा की उम्र 94 साल थी।
सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म उत्तराखंड के टिहरी में हुआ था। 13 साल की उम्र में उन्होंने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। साल 1956 में उनकी शादी होने के बाद उन्होंने राजनीतिक जीवन से संन्यास ले लिया था। उन्होंने टिहरी के आसपास के इलाके में शराब के खिलाफ मोर्चा खोला। 1960 के दशक में उन्होंने अपना ध्यान वन और पेड़ की सुरक्षा पर केंद्रित किया।
चिपको आंदोलन में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर चलने वाले सुंदरलाल बहुगुणा ने 70 के दशक में पर्यावरण सुरक्षा को लेकर अभियान चलाया, जिसने पूरे देश में अपना एक व्यापक असर छोड़ा। इसी दौरान शुरू हुआ चिपको आंदोलन भी इसी प्रेरणा से शुरू किया गया अभियान था। तब गढ़वाल हिमालय में पेड़ों की कटाई के विरोध में शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन चलाया गया। मार्च 1974 को कटाई के विरोध में स्थानीय महिलाएं पेड़ों से चिपक कर खड़ी हो गईं, दुनिया ने इसे चिपको आंदोलन के नाम से जाना।
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