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विदर्भ के नक्सल प्रभावित गड़चिरोली जिले में 13 नक्सली मारे गए, मुठभेड़ जारी

गड़चिरोली.
विदर्भ के नक्सल प्रभावित गड़चिरोली जिले में अब तक 13 नक्सलियों के मारे जाने की जानकारी सामने आई है। इसके साथ ही कई लोगों के जख्मी होने की भी खबर है। जानकारी के अनुसार, पुलिस, सी 60 टीम और नक्सलवादियों के बीच गुरुवार मध्यरात्रि से मुठभेड़ चल रहा है। एटापल्ली तहसील के कोटमी पुलिस हेल्प सेंटर की सीमा में पैदी जंगल में यह मुठभेड़ जारी है।

दरअसल, इस क्षेत्र में तेंदूपत्ता तोड़ने और इक्कठा करने का काम चल रहा है। बड़े पैमाने पर इस क्षेत्र के लोग इस काम में लगते हैं। उनके लिए यह समय आजीविक का बड़ा साधन होता है। नक्सली भी इस अवसर की ताक में रहते हैं, क्योंकि तेंदूपत्ता करने वालों से वे जबरन उगाही करते हैं। मुखबीरों से पुलिस को पैदी जंगल में इसी संदर्भ में नक्सलवादियों की एक बैठक होने की जानकारी सी 60 टीम को मिली थी। इस जानकारी के आधार पर टीम ने जंगल में सर्च ऑपरेशन शुरू किया। यह ऑपरेशन चल ही रहा था तभी सुबह के वक़्त नक्सलवादियों के साथ कमांडो की मुठभेड़ शुरू हो गई। कमांडों दवारा की गई फायरिंग में कई नक्सली जख्मी हो गए हैं।

गौरतलब है कि गड़चिरोली जिले की स्थापना के बाद से ही पूरे क्षेत्र में नक्सली गतिविधियां बढ़ गई थी। इस पर प्रतिबंध लगाने के लिए तत्कालीन एसपी केपी रघुवंशी ने 1 दिसंबर 1990 को C-60 की स्थापना की। उस वक्त इस फोर्स में सिर्फ 60 विशेष कमांडो की भर्ती हुई थी, जिससे इसे यह नाम मिला। नक्सली गतिविधियों को रोकने के लिए गड़चिरोली जिले को दो भागों में बांटा गया। पहला उत्तर विभाग, दूसरा दक्षिण विभाग। इन कमांडो को विशेष ट्रेनिंग दी जाती है। इन्हें दिन-रात किसी भी समय कार्रवाई करने के लिए ट्रेंड किया जाता है। इनकी ट्रेनिंग हैदराबाद, NSG कैंप मनेसर, कांकेर, हजारीबाग में होती है। नक्सल विरोधी अभियान के अलावा ये जवान नक्सलियों के परिवार, नाते-रिश्तेदारों से मिलकर उन्हें सरकार की योजनाओं के बारे में बताकर समाज की मुख्यधारा में जोड़ने का काम भी करते हैं। नक्सली इलाकों में ये प्रशासनिक समस्याओं की जानकारी भी जुटाते हैं।

बता दें कि गड़चिरोली जिले में 80 प्रतिशत फॉरेस्ट हैं और 20 प्रतिशत खेती है। 80 प्रतिशत जंगल रहने से और 1980 का वन कानून लगने से जिले के बड़ी-बड़ी मंजूर सिंचन परियोजनाएं रद्द हो गई। जैसा कि तुलतुली, कारवापा, चेन्ना, डुरकॉन गुड्रा और कुछ उपसा सिंचन परियोजनाएं भी शामिल हैं। कुल 20 से 22 परियोजनाएं हैं जो पहले मंजूर हो चुकी थी। निधि मंजूर होकर कुछ काम भी शुरू हो गया था, लेकिन जिले के वन विभाग ने 1980 के वन कानून का आधार लेकर और इन सभी मंजूर सिंचन परियोजनाओं को गलत तरीके से रिर्पोटिंग किया। बड़े पेड़ों की घनता ज्यादा दिखाई देने जिससे राज्य शासन ने भी केन्द्र सरकार को इसी तरीके की रिर्पोट भेजी, जिससे केन्द्र सरकार ने सारी परियोजनाएं रद्द कर दी। तब से जिले के किसान सिंचन के पानी से वंचित हैं और इसी का फायदा उठाकर नक्सली उन्हें अपने पाले में लाने का प्रयास करते हैं।

Delhi Desk

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