काठमांडूः पड़ोसी मुल्क नेपाल में लगभग दो साल से जारी सियासी रस्साकशी आखिरकार अंत हो गया है। प्रधानमंत्री केपी ओली को संसद में विश्वास मत हार गए गए हैं। अब उन्हें इस्तीफा देना होगा। आपको बता दें कि ओली के पार्टी के नेता ही लंबे समय से उनसे इस्तीफा देने की मांग कर रहे थे। ओली को चीन के काफी करीब माना जाता रहा है और उन्होंने कई मौकों पर भारत विरोधी बयान भी दिए थे।
संसद में सोमवार को विश्वास मत पर वोटिंग में कुल 232 सांसदों ने हिस्सा लिया। इनमें से 124 ने ओली के विरोध में मतदान किया, जबकि 93 ने उनके पक्ष में वोट डाला। 15 सांसद न्यूट्रल रहे। नेपाल की संसद में कुल 271 सदस्य हैं। ओली को सरकार बचाने के लिए कुल 136 वोटों की जरूरत थी। माधव नेपाल और झालानाथ खनाल ग्रुप वोटिंग में शामिल नहीं हुआ। संसद की अगली बैठक अब गुरुवार को होगी।
फरवरी 2018 में केपी ओली दूसरी बार प्रधानमंत्री बने थे और उस समय पहली बार वे 271 सीट वाले संसद में फ्लोर टेस्ट का सामना कर रहे थे। ओली को समर्थन दे रही अहम मधेशी पार्टी ने वोटिंग से दूर रहने का फैसला किया था। उस समय ऐसा लग रहा था कि ओली की सरकार गिर जाएगी, लेकिन वह उपनी कुर्सी बचाने में कामयाब रहे थे। दो साल के दौरान ऐसे कई मौके आए, लेकिन वे हर बार सरकार और कुर्सी बचाने में कामयाब रहे।
अपनी पार्टी और जनता समाजवादी पार्टी के नेताओं के साथ बैठकों के बाद ओली ने रविवार की शाम कहा था कि मुझे विश्वास है कि इस पार्टी के वफादार नेता और कार्यकर्ता पार्टी और कम्युनिस्ट आंदोलन को नुकसान पहुंचाने का काम नहीं करेंगे।
अब आपको समझाते हैं बहुमत का गणित- केपी ओली की पार्टी सीपीएन (यूएमएल) के पास संसद के निचले सदन में 121 सीट हैं। वहीं नेपाली कांग्रेस के पास 63, प्रचंड के नेतृत्व वाली माओवादी पार्टी के पास 49 और जनता समाजवादी पार्टी के पास 32 सीटें हैं। अन्य पार्टियों के पास दो सांसद हैं। नेपाली कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के दो-दो सांसद निलंबित हैं।
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