टाइप 2 डायबिटीज से डिमेंशिया का खतरा

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नई दिल्ली.
टाइप 2 डायबिटीज को अक्सर मोटापे से जोड़ा जाता है, क्योंकि मोटापा एक ऐसी अवस्था है, जिसमें वजन बढ़ने की वजह से आपके शरीर में बदलाव आता है और अन्य रोगों को जगह भी मिलती है। इस बीमारी में अत्यधिक मात्रा में चर्बी आपके शरीर में जमा होना शुरू हो जाता है। एक रिसर्च में दावा किया गया है कि 60 साल की उम्र से पहले टाइप 2 डायबिटीज का होना बुढ़ापे में डिमेंशिया के खतरे को दोगुना कर सकता है। घबराएं नहीं, टाइप 2 डायबिटीज को काफी हद रोका जा सकता है।

वैज्ञानिकों ने पाया कि 70 साल की उम्र में डिमेंशिया दोगुना हो जाता है अगर किसी में 10 साल पहले डायबिटीज की पहचान हुई हो। शोधकर्ताओं ने बताया कि हाई ब्लड शुगर होने पर दिमाग बहुत ज्यादा ग्लूकोज अवशोषित करता है। बड़ी मात्रा में ग्लूकोज को जहरीला जाना जाता है और ये नसों और रक्त वाहिकाओं को भी नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिए डायबिटीज के रोगियों का पांव सुन्न हो सकता है। दिमाग की नसों या ब्लड आपूर्ति का नुकसान बढ़ सकता है, जिससे डिमेंशिया होने का खतरा रहता है।

वैज्ञानिकों ने संबंध का एक संभावित वजह सुझाया है कि दिमाग तक कम इंसुलिन पहुंचता है। इसका मतलब हुआ कि ऊर्जा के लिए ग्लूकोज शुगर का इस्तेमाल करने में कम सक्षम है क्योंकि डायबिटीज के मरीज हार्मोन की पर्याप्त मात्रा नहीं पैदा करते हैं। दिमाग ग्लूकोज का इस्तेमाल अपने सामान्य तंत्र के काम को ऊर्जा देने और स्वस्थ कोशिकाओं को बहाल करने के लिए करता है, और उसकी कमी से अंग को नुकसान पहुंच सकता है।

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