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राष्ट्रीय

राज्य सरकारों को 600 रुपये तथा निजी अस्पतालों को 1200 रुपये में मिलेगी देसी वैक्सीन कोवैक्सिन

सीरम इंस्टीट्यूट के बाद कोरोना वायरस से लड़ने के लिए स्वदेसी टीके का कोवैक्सिन निर्माण करने वाली भारत बायोटेक ने भी के नए दाम की घोषणा कर दी है। कंपनी ने शनिवार रात को बताया कि राज्य सरकारों के लिए कोवैक्सिन 600 रुपए, जबकि प्राइवेट अस्पतालों के लिए 1200 होंगे। कंपनी ने एक्सपोर्ट के लिए इसके दाम 15 से 20 डॉलर रखने का ऐलान किया है।

आपको बता दें कि  देश में अप्रूवल पाने वाली दूसरी वैक्सीन कोवीशील्ड बनाने वाले सीरम इंस्टीट्यूट ने बुधवार को नए दाम घोषित किए थे। कंपनी ने बताया था कि कोवीशील्ड निजी अस्पतालों को 600 रुपए में, राज्य सरकारों को 400 रुपए में और केंद्र को पहले की तरह 150 रुपए में दी जाएगी। अभी कुल प्रोडक्शन में से 50 प्रतिशत वैक्सीन केंद्र के वैक्सीनेशन प्रोग्राम के लिए भेजी जाती हैं, जबकि बाकी 50 फीसदी वैक्सीन राज्यों और निजी अस्पतालों को दी जाती है।

 

वैक्सीन की कीमतः-

कोवैक्सिन बनाम कोवीशील्ड

कोवैक्सिन कोवीशील्ड
केंद्र सरकार-150 रुपये केंद्र सरकार-150 रुपये
राज्य सरकार-600 रुपये राज्य सरकार-400 रुपये
निजी अस्पताल-1200 रूपये निजी अस्पताल-600 रूपये

 

 

भारत बायोटेक और आईसीएमआर (ICMR) यानी इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की कोशिशों से बनी पहली स्वदेसी कोरोना वैक्सीन कोवैक्सिन को दुनिया की सबसे सफल वैक्सीनों में से एक माना जाता है। कंपनी ने फेज-3 क्लीनिकल ट्रायल्स के दूसरे अंतरिम नतीजों के आधार पर दावा किया है कि वैक्सीन की क्लिनिकल एफिकेसी 78 प्रतिशत है, यानी यह वैक्सीन कोरोना संक्रमण को रोकने में 78 फीसदी कारगर है।

भारत बायोटेक ने हाल ही में कोवैक्सिन का प्रोडक्शन बढ़ाने का फैसला किया था। कंपनी अब हर साल इसके 70 करोड़ डोज तैयार करेगी। कंपनी ने अपने हैदराबाद और बेंगलुरु के कई प्लांट की क्षमता बढ़ाई है। हालांकि मैक्सिमम लिमिट तक प्रोडक्शन पहुंचाने में दो महीने का समय लगेगा। वित्त मंत्रालय ने कोवैक्सिन का प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए भारत बायोटेक कंपनी को 1,567.50 करोड़ रुपए एडवांस देने का ऐलान किया है। कंपनी ने कहा कि वह जुलाई से हर महीने 5.35 करोड़ वैक्सीन तैयार करना शुरू कर देगी। कंपनी इनएक्टिवेटेड वैक्सीन बनाती है। इस तरह की वैक्सीन सुरक्षित होती है, लेकिन उसमें काफी जटिलता होती है। इसको तैयार करना भी महंगा पड़ता है। इसलिए लाइव वायरस वैक्सीन के मुकाबले इसका उत्पादन कम होता है।

Shobha Ojha

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