दत्तात्रेय होसबाले को आरएसएस (RSS) यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह की जिम्मेदारी दी गई है। संघ की सर्वोच्च इकाई अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की दो दिवसीय बैठक शुक्रवार को बेंगलुरु में शुरू हुई थी। इस बैठक में संघ के नंबर दो का फैसला होना था। बैठक में शनिवार को दत्तात्रेय होसबाले को सर्वसम्मति से सह-सरकार्यवाह की जिम्मेदारी दी गई। होसबाले 2025 में संघ के स्थापना के शताब्दी वर्ष के कार्यक्रम तक आरएसएस के संगठनात्मक ढांचे को कंट्रोल करेंगे।
होसबाले पहले सुरेश भैयाजी जोशी 2009 से सरकार्यवाह यानी महासचिव की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। हालांकि जोशी ने तीन साल पहले यानी 2018 में भी पद छोड़ने की पेशकश की थी, लेकिन 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों के मद्देनजर उनका कार्यकाल बढ़ा दिया गया था।
आइए जानते हैं कि दत्तात्रेय होसबाले कौन हैं?
हालांकि होसबोले की मातृभाषा कन्नड़ है, लेकिन वह हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, तमिल और मराठी के अलावा कई विदेशी भाषाओं के भी जानकार हैं। वह कन्नड़ भाषा की मासिक पत्रिका असीमा के संस्थापक एवं संपादक भी हैं। होसबोले महज 13 साल की उम्र में 1968 में ही स्वयंसेवक बन गए थे। 1972 में वह एबीवीपी (ABVP) यानी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े और 15 साल तक संगठन महामंत्री रहे।
1975-77 तक चले जेपी आंदोलन में भी होसबाले शामिल रहे और मीसा कानून के तहत 21 महीने तक जेल में भी रहे हैं। उन्होंने जेल में हाथ से लिखित दो पत्रिकाओं का संपादन किया। वह 1978 में एबीवीपी के पूर्णकालिक कार्यकर्ता हो गए। सोसबोले को अंडमान निकोबार द्वीप समूह और पूर्वोत्तर भारत में एबीवीपी को आगे बढ़ाने का श्रेय जाता है। होसबाले अमेरिका, रूस, फ्रांस, इंग्लैंड और नेपाल की यात्राएं भी कर चुके हैं। वह कुछ समय पहले नेपाल में आए भूंकप के बाद संघ की भेजी गई राहत सामग्री दल के साथ वहां गए थे। होसबोले को 2004 में संघ का अखिल भारतीय सह-बौद्धिक प्रमुख बनाया गया था।
आपको बता दें कि संघ प्रमुख या सरसंघचालक के लिए चुनाव नहीं होते हैं। संघ प्रमुख अपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति करते हैं। बात कार्य की करें, तो संघ प्रमुख की भूमिका मुख्य तौर पर मार्गदर्शन की होती है। संगठन का सारा कामकाज सरकार्यवाह ही देखते हैं।
प्रत्येक तीन साल में होने वाली अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में सरकार्यवाह का चुनाव होता है। आमतौर पर अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक मार्च के दूसरे या तीसरे हफ्ते में होती है और यह तीन दिनों तक चलती है। इस साल यह बैठक शुक्रवार को शुरू हुई है और रविवार को खत्म होनी चाहिए थी, लेकिन इस बार यह बैठक दो दिवसीय है। इस तरह से यह बैठक आज समाप्त होगी।
उल्लेखनीय है कि सरकार्यवाह को चुने जाने की मौजूदा प्रक्रिया 1950 के दशक में अपनाई गई थी। हालांकि आपातकाल (1975-77) के दौरान और 1993 में चुनाव नहीं हुए थे। चूंकि 1992 में बाबरी मस्जिद ढांचे के ढहने के बाद संघ को प्रतिबंधित कर दिया गया था। इस वजह से 1993 में चुनाव नहीं हुए थे।
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