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आरिज समाज ही नहीं, राज्य का भी है दुश्मन, तब तक फांसी पर लटकाया जाए, जब तक यह मर न जाएः अदालत - Prakhar Prahari
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आरिज समाज ही नहीं, राज्य का भी है दुश्मन, तब तक फांसी पर लटकाया जाए, जब तक यह मर न जाएः अदालत

दिल्ली के बाटला हाउस एनकाउंटर के 13 साल बाद दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल के शहीद इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा का इंसाफ मिला। दिल्ली की एक अदालत ने इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादी आरिज खान उर्फ जुनैद उर्फ सलीम को तब तक फांसी पर लटकाकर रखने का आदेश दिया है,  जब तक वह मर न जाए। अदालत इस मामले में सोमवार को अपना फैसला सुनाते हुए स्पष्ट कहा कि आरिज के न तो सुधार की कोई संभावना है और न उसके जीने से समाज की बेहतरी।

22 पन्नों के अपने फैसले में अडिशनल सेशन जज संदीप यादव ने सोमवार को आरिज खान की मौत का फरमान लिखा। उन्होंने कहा, “दोषी ने अपने घृणित कृत्यों से अपने जीने के अधिकार को खो दिया है।“ उन्होंने कहा कि मामले में अपराध को गंभीर बनाने वाली परिस्थितियों के साथ उसे कम बताने वाली परिस्थितियों की तुलना करने के बाद अदालत इस नतीजे पर पहुंची कि यह रेयरेस्ट ऑफ रेयर केस है, जहां दोषी कानून के तहत मौजूद अधिकतम सजा पाने योग्य है।

उन्होंने कहा, “अन्य चीजों के साथ गंभीरता का स्तर, बर्बरता की हद, अपराध करने के पीछे मुजरिम की सोच भी है, जो इस मामलों को रेयरेस्ट ऑफ रेयर बनाती हैं। समाज को संरक्षण देना और अपराधियों को रोकना ही कानून बनाने का मकसद है।“ अदालत ने इस टिप्पणी के साथ कहा कि आरिज खान उर्फ जुनैद उर्फ सलीम जैसे दोषियों के लिए मौत ही सबसे सही सजा है।

अदालत ने आरिज को हत्या के अपराध के लिए फांसी और 10 लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। इसके अलावा अन्य अपराधों के लिए भी सजा का ऐलान हुआ जो साथ चलेंगी। यानी आरिज पर कुल मिलाकर उस पर 11 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है। हालांकि नियमानुसार इस फैसले के खिलाफ अपील करने की छूट भी उसे दी गई है।

अदालत ने सजा के मुद्दे पर दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं। इसमें दो सवाल उभरकर सामने आए। पहला, क्या दोषी में सुधार हो सकता है? इस पर अदालत ने कहा कि यह साबित हुआ है कि दोषी शूटआउट के बाद मौके से फरार होने में कामयाब हो गया था। कड़ी प्रक्रिया के बावजूद वह 10 सालों तक जांच एजेंसी की पकड़ में नहीं आया। उसे 2009 में भगोड़ा घोषित किया गया था और वह 2018 में जाकर पकड़ा गया। रिकॉर्ड में ऐसा कोई साक्ष्य नहीं, जिससे लगे कि ट्रायल के दौरान दोषी में कभी किसी तरह का कोई पश्चाताप दिखा हो। इससे यह नतीजा निकलता है कि दोषी के सुधरने की कोई संभावना नहीं है।

दूसरा सवाल उठा कि क्या दोषी समाज के लिए खतरा बना रहेगा? इसके जवाब में अदालत ने कहा कि बिना किसी उकसावे के दोषी का पुलिस पर गोली चलाने से जुड़ा घृणित और क्रूर कृत्य अपने आप दिखाता है कि वह केवल समाज के लिए खतरा नहीं, बल्कि राज्य का भी दुश्मन है। दोषी का दिल्ली समेत देश के विभिन्न राज्यों में हुए बम धमाकों में शामिल होना, जिसमें हजारों बेकसूर लोगों की मौत हो गई और कई जख्मी हो गए, दर्शाता है कि वह समाज और राष्ट्र के लिए खतरा बना रहेगा।

अदालत ने अभियोजन पक्ष के वकील एटी अंसारी की उस दलील को स्वीकार कर लिया, जिसमें कहा गया कि आरिज खान और उसके साथियों के पास घातक हथियार थे, जिससे साफ जाहिर होता है कि वे किसी की भी जान लेने के लिए तैयार थे। जिस फ्लैट में शूटआउट हुआ वहां से पुलिस को एके-47 और दो पिस्तौल बरामद हुई थीं। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि बचाव पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि दोषी और उसके साथियों ने क्यों ये हथियार रख रखे थे।

Shobha Ojha

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