काशी और मथुरा जैसे विवादित धार्मिक स्थल, जिन पर मुगलों ने कब्जा कर लिया, वे हिंदुओं को वापस मिल सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी नेता एवं वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय की पूजास्थल कानून-1991 की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए शुक्रवार को सरकार को नोटिस जारी किया। उपाध्याय ने अपनी याचिका में पूजास्थल कानून-1991 को भेदभावपूर्ण और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला बताया है। उन्होंने कानून की धारा 2, 3 और 4 को संविधान के खिलाफ बताते इन्हें रद्द करने की मांग की है।
उन्होंने अपनी याचिका में कहा है कि संविधान में धार्मिक तीर्थ स्थल को राज्य का विषय बताया है। इस लिए केंद्र सरकार को इस तरह का कानून बनाने का अधिकार ही नहीं है। यह संविधान की सातवीं अनुसूची की दूसरी सूची में शामिल है। साथ ही पब्लिक ऑर्डर भी राज्य का विषय है।
अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि 1991 में कांग्रेस की सरकार ने एक कानून बनाया और गजनी, गोरी, बाबर, हुमायू, अकबर और औरंगजेब के द्वारा तोड़े गए सभी मंदिरों, जिन्हें मस्जिद में तब्दील कर दिया है को कानूनी बना दिया। उन्होंने कहा कि देश में जितने भी मंदिर तोड़ कर उनपर जो मस्जिद बनाई गई है उन सभी मस्जिदों को कांग्रेस द्वारा कानून के दायरे ला दिया गया है।
उन्होंने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा कि सरकार का काम गैरकानूनी कार्य को कानूनी बनाना नहीं होता है, लेकिन कांग्रेस ने वह किया है। इन्होंने कहा कि मैंने सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस द्वारा बनाए गए इस कानून को चुनौती दी है। उन्होंने कहा कि हमारा मौलिक अधिकार है कि जो हमारे धार्मिक स्थान हैं उन पर हमारा पूर्ण स्वामित्व हो, उनकी देखरेख करने का हमें अधिकार है, लेकिन मथुरा का मंदिर हो, काशी का भगवान विश्वनाथ का मंदिर हो जिनपर अवैध तरीके से कब्जा किया गया है, उन्हें मुक्त करवाकर हिंदुओं को सौंपा जाए। यह सरकार का कर्तव्य था, लेकिन कांग्रेस ने इसके उल्टा काम किया। कांग्रेस ने अवैध रूब से कब्जा करने वालों को ही मालिकाना हक दे दिया।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने 1991 में जो कानून बनाया था, उसमें अयोध्या को बाहर रखा गया, लेकिन मथुरा को इसके दायरे में रखा गया। उन्होंने कहा कि सरकार का कार्य कोर्ट का दरवाजा बंद करना नहीं है, लेकिन तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने हिन्दू, जैन, सिखों, बौद्ध को अदालत के दरवाजे पर पहुंचने से रोकने का काम किया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि संवैधानिक प्रावधानों और हिंदू, जैन, बौद्ध और सिखों के मौलिक अधिकारों को संरक्षित करते हुए कोर्ट उनके धार्मिक स्थलों को पुनर्स्थापित करे। साथ ही कानून की धारा 2, 3 और 4 को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26 और 29 के खिलाफ मानते हुए इन्हें रद्द करे।
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