फर्जी मामलों में यातनाएं भुगतने वाले पीड़ितों को मुआवजा दिए जाने तथा इसके लिए दिशानिर्देश जारी करने की मांग उठी है। इसको लेकर बीजेपी नेता एवं वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट पीआईए (PIL) यानी जनहित याचिका दायर की है। उपाध्याय ने अपनी याचिका में उत्तर प्रदेश के विष्णु तिवारी केस का हवाला दिया है, जिन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यह कहते हुए बरी किया कि उन्हें आपसी झगड़े के कारण दुष्कर्म के केस में फंसाया गया था। तिवारी को 20 साल जेल में बिताने के बाद निर्दोष पाया गया।

अश्विनी उपाध्याय सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि वह केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दे कि ऐसे विक्टिम को मुआवजा देने के लिए गाइडलाइन तैयार करें और इस बाबत लॉ कमिशन की रिपोर्ट को लागू करें। इस पीआइएल में राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के साथ-साथ गृह मंत्रालय, विधि एवं न्याय मंत्रालय और विधि आयोग को पक्ष बनाया गया है। उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा है कि गलत अभियोजन के कारण लोगों को होने वाला नुकसान बहुत बड़ा है। इस संबंध में केंद्र की निष्क्रियता के कारण संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त नागरिकों के जीवन, आजादी एवं सम्मान के अधिकार का उल्लंघन हो रहा है।

उन्होंने कहा है कि 30 नवंबर, 2017 को दिल्ली हाई कोर्ट ने गलत अभियोजन के पीड़ित को राहत एवं पुनर्वास के मामले में विधि आयोग को व्यापक विचार का निर्देश दिया था। इसके बाद 30 अगस्त, 2018 को विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट भी सौंप दी थी, लेकिन केंद्र ने इन सिफारिशों को लागू करने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। उपाध्याय ने कहा कि कोई प्रभावी वैधानिक एवं कानूनी व्यवस्था नहीं होने के कारण झूठे मुकदमे, गलत अभियोजन और निर्दोष लोगों को जेल में डालने के मामले बहुत बढ़े हैं। यह देश की न्यायिक व्यवस्था पर एक धब्बा है।

आपको बता दें कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 28 जनवरी, 2021 को अपने फैसले में दुष्कर्म के आरोपित विष्णु तिवारी को निर्दोष करार दिया गया। मामले में एफआइआर के पीछे जमीन विवाद को कारण पाया गया। विष्णु को तिवारी को16 सितंबर, 2000 को गिरफ्तार किया गया था। इस तरह से झूठे मामले में उन्होंने 20 साल बिताया, जिसके बाद उन्हें निर्दोष पाया गया। अधिकार का प्रयोग करे और इस संबंध में विधि आयोग की सिफारिशें सख्ती से लागू हो जाने तक इनके क्रियान्वयन के लिए केंद्र एवं राज्यों को निर्देश दे।

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