लंदन सोशल मीडिया एक सामान्य मंच है जहां हम अपने दोस्तों, परिवार और अन्य करीबी लोगों के साथ जुड़े रह सकते हैं। यह हमारे विचारों और दिन प्रतिदिन की गतिविधियों को व्यक्त करने का एक बहुत अच्छा माध्यम है। आजकल हर किसी की अपनी एक सामाजिक प्रोफ़ाइल होती है और वे अपने दिन-प्रतिदिन के कार्यों को अद्यतन करते हैं।
क्या आपका बच्चा भी फेसबुक, व्हॉट्सएप, इंस्टाग्राम या स्नैपचेट का इस्तेमाल किए बिना नहीं रह पाता? अगर हां तो ज्यादा परेशान मत होइए। ब्रिटेन में 74 हजार किशोरों पर हुए एक अध्ययन में सोशल मीडिया को मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य के लिहाज से उतना भी घातक नहीं पाया गया है। कभी-कभी यह सामाजिक स्थिति को खोने का जोखिम बढ़ा देता है, जो अकेलेपन का कारण बनता है और कभी-कभी इससे अवसाद भी हो सकता है। ऐसा सुना गया है कि लोग सोशल मीडिया पर कहीं अधिक खूबसूरत दिखते है, जितने वे असल में होते हैं। लोग वैसी अवास्तविक दुनिया में विश्वास करने लगते हैं, जोकि गलत है। सोशल मीडिया के लाभों के बारे में कोई संदेह नहीं है, लेकिन फिर भी, कुछ गंभीर कमियां हैं, जिन्हें नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है। अकेलेपन और अवसाद के कई मामले आजकल सोशल मीडिया के कारण देखे जा सकते हैं। प्रौद्योगिकी का विकास वरदान के साथ-साथ एक अभिशाप भी है। अब यह हमारे ऊपर है कि हम उसे कैसे प्रयोग करते हैं। हमने सोशल मीडिया के कारण लोगों में बढ़ती असुरक्षा के पीछे कुछ मुख्य कारणों पर चर्चा की है।
रॉयल कॉलेज ऑफ साइकैट्रिस्ट के शोधकर्ताओं के मुताबिक फेसबुक, व्हॉट्सएप, इंस्टाग्राम या स्नैपचैट जैसी साइटें अकेलेपन और डिप्रेशन का भाव नहीं पैदा करतीं। हां, बच्चा अपनी छवि, रंग-रूप और रहन-सहन को लेकर थोड़ा सजग जरूर हो सकता है, लेकिन अगर मां-बाप नियमित रूप से बात करें तो उसमें हीन भावना पैदा होने की गुंजाइश घट जाती है। कई किशोरों में तो सोशल मीडिया तनाव, बेचैनी और आक्रामकता की शिकायत को घटाने में कारगर भी मिला है। उन्हें दोस्तों के संपर्क में रहने का मौका मिलना इसकी मुख्य वजह है।
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