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राष्ट्रीय

किसान आंदोलनः राजद्रोह के मामले में अदालत की तल्ख टिप्पणी, उपद्रवियों पर लगाम लगाने के नाम पर असंतुष्टों को चुप कराने के लिए राजद्रोह के कानून का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता

किसान आंदोलन के दौरान सोशल मीडिया पर पेक वीडियो पोस्ट कर अफवाह फैलाने के मामले सुनवाई करते हुए दिल्ली की एक अदालत ने देशद्रोह कानून को लेकर तल्ख टिप्पणी की है। कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि उपद्रवियों पर लगाम लगाने के नाम पर असंतुष्टों को चुप कराने के लिए राजद्रोह के कानून का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। किसान आंदोलन के दौरान सोशल मीडिया पर फेक वीडियो पोस्ट कर अफवाह फैलाने और राजद्रोह के दो आरोपियों को जमानत दे दी।

अडिशनल सेशंस जज धर्मेंद्र राना ने आज देवी लाल बुड़दाक और स्वरूप राम को जमानत दे दी। इन दोनों को दिल्ली पुलिस ने इसी महीने गिरफ्तार किया था। इन दोनों के जमानत देते हुए अडिशनल सेशंस जज धर्मेंद्र राना कहा कि समाज में शांति और कानून-व्यवस्था बरकरार रखने के लिए राजद्रोह का कानून सरकार के हाथ में एक ताकतवर औजार है, लेकिन इसका इस्तेमाल असंतुष्टों को चुप करने के लिए नहीं किया जा सकता।

उन्होंने अपने आदेश में कहा, “उपद्रवियों का मुंह बंद करने के बहाने असंतुष्टों को खामोश करने के लिए इसे लागू नहीं किया जा सकता। जाहिर तौर पर, कानून ऐसे किसी भी कृत्य का निषेध करता है, जिसमें हिंसा के जरिए सार्वजनिक शांति को बिगाड़ने या गड़बड़ी फैलाने की प्रवृत्ति हो।“

उन्होंने कहा कि हिंसा या किसी तरह के भ्रम या तिरस्कारपूर्ण टिप्पणी या उकसावे के जरिए आरोपियों की तरफ से सार्वजनिक शांति में किसी तरह की गड़बड़ी या अव्यवस्था फैलाने पर मुझे संदेह है कि आरोपी पर धारा 124 (ए) के तहत कार्रवाई की जा सकती है।

आइए आपको बताते हैं कि धारा 124 (ए) क्या है। भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए के मुताबिक यदि कोई व्यक्ति बोलकर, लिखकर या किसी दूसरे तरीके से सरकार के खिलाफ नफरत, शत्रुता या अवमानना पैदा करता है, तो उसका कृत्य राजद्रोह की श्रेणी में आएगा।

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Shobha Ojha

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