गृह मंत्री अमित शाह ने शनिवार को लोकसभा में जम्मू-कश्मीर से संबंधित अनुच्छेद 370 को लेकर कांग्रेस पर करार वार किया। उन्होंने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने जाने के मुद्दे पर बोलते हुए कहा कि जिनको जनता ने पीढ़ियों तक शासन करने का मौका दिया, वे अपने गिरेबान में झांककर देखें कि वे हिसाब मांगने के लायक भी हैं या नहीं।
उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 को हटाने जाने के मामले पर अदालत में लंबी सुनवाई चली और फिर पांच जजों की बेंच को इसे ट्रांसफर कर दिया गया। अब विपक्ष हमसे कहता है कि आप सुप्रीम कोर्ट जाएं और उनसे कहें कि इस पर जल्द सुनवाई हो। उन्होंने कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट के सामने हैं और यह बात लेकर सामने हैं कि देश में धारा 370 नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में अभी वर्चुअल सुनवाई हो रही है और इस मामले की वर्चुअल सुनवाई नहीं हो सकती है। जब फिजिकल सुनवाई फिर से शुरू होगी, तो ये मामला सुना जाएगा।
शाह ने जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा दिए जाने के मुद्दे पर कहा कि सही समय आने पर प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाएगा। उन्होंने सवाल किया कि क्या गोवा राज्य नहीं है? मिजोरम राज्य नहीं है? यदि आप ध्यान से पढ़ें तो इतनी फजीहत ही नहीं होगी। जहां जिस तरह की भौगोलिक और प्रशासनिक परिस्थिति होती है, वहां उस हिसाब से अफसर भेजने पड़ते हैं, लेकिन आप इन चीजों को हिंदू-मुस्लिम में बांट देते हैं। क्या एक हिंदू अफसर मुस्लिम जनता और मुस्लिम अफसर हिंदू जनता की सेवा नहीं कर सकता है? इसके बाद भी आप अपने आपको सेकुलर कहते हैं, ये कैसा सेकुलरिज्म है?’
गृहमंत्री ने कहा कि अभी ये लोग कह रहे हैं कि टूजी (2G) से फोर (4G) इंटरनेट सेवा की शुरुआत हमने विदेशियों के दबाव में किया। ये मोदी की सरकार है, जिसमें देश के फैसले देश करता है। कुछ समय के लिए हमने ये सेवाएं बंद की थीं, ताकि अफवाहें ना फैलें। मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि आपने किसके दबाव के चलते धारा 370 को इतने समय तक जारी रखा?’
उन्होंने कहा कि मैं समझौते को ध्यान से पढ़ता हूं। पहले की सरकारों ने भी जो वादे किए, उन्हें ध्यान से पढ़कर उन पर अमल करना चाहिए। 370 में अस्थाई समझौता वाली बात थी। आप 17 महीने में हमसे हिसाब मांगते हो और 70 साल टेम्परेरी धारा 370 चली, उसका जवाब कौन देगा? हम आएंगे-जाएंगे, जीतेंगे-हारेंगे, लेकिन इसे ध्यान में रखकर देश को ताक पर नहीं रखेंगे। ये आपकी सोच है। आप कहते हैं कि अफसरों के काम करने का अधिकार चला जाएगा। कश्मीर में अफसर काम क्यों नहीं कर पाएगा? क्या कश्मीर देश का हिस्सा नहीं है? क्या कश्मीर के युवा को आईएएस (IAS) और आईपीएस (IPS) बनने का हक नहीं है?
शाह ने विपक्ष पर हमला बोलते हुए साफ शब्दों में कहा, “कश्मीर के अंदर चीप पॉपुलैरिटी के लिए किसी अफसर को बाहरी कहना ठीक नहीं है। सभी भारत माता की संतान हैं और भारत के अफसर हैं। नए पैटर्न पर आप नया तर्क ले आए हैं। किसी को अलग झंडा और अलग संविधान नहीं दिया गया है। हमने 1950 में वादा किया था कि देश में निशान और दो संविधान नहीं रहेंगे।”
उन्होंने कहा कि आर्टिकल 370 हटने के बाद वहां सबसे पहला काम पंचायती राज स्थापित करने का हुआ। पंचायती चुनाव में 51.7 प्रतिशत लोगों ने मतदान किया। कहीं गोली नहीं चलानी पड़ी। कांग्रेस के शासन में कैसे चुनाव होते थे, मैं उसमें नहीं जाना चाहता। विरोधी भी आरोप नहीं लगा सकते कि चुनाव में घपला हुआ है।
आपको बता दें कि केंद्र सरकार ने पांच अगस्त, 2019 में जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले आर्टिकल-370 को समाप्त कर दिया था। इससे जम्मू-कश्मीर में भी भारत का संविधान लागू होने का रास्ता साफ हो गया था। साथ ही सरकार ने जम्मू-कश्मीर को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख नाम से दो अलग केंद्र शासित बना दिया था। जम्मू-कश्मीर में 20 और लद्दाख में दो जिले लेह और करगिल शामिल किए गए।
भारत में विलय के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार के समय संविधान में जम्मू-कश्मीर के लिे आर्टिकल- 370 जोड़ा गया था। इसके तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा और कुछ विशेष अधिकार मिले थे। केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर में सिर्फ रक्षा, विदेश और संचार से जुड़े मामलों में ही दखल दे सकती थी। संसद की तरफ से पारित कई कानून जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होते थे। आर्टिकल 370 के तहत ही अनुच्छेद 35-ए को जोड़ा गया था।
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