6 वर्षीय बालक के साथ मौसी ही करती थी घिनौना काम, अदालत ने नहीं दी राहत

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नागपुर. रिश्तों को शर्मसार करने वाली खबरें अक्सर आती हैं और वे आमतौर पर बालिकाओं से जुड़ी होती हैं। बालकों के साथ आप्राकृतिक कृत्य की घटनाएं होती है, लेकिन इस प्रकरण में तो एक युवती ने हद कर दी। उसके घिनौने काम को अदालत ने भी गंभीर माना और जमानत देने से इनकार कर दिया।

नागपुर के इतवारी क्षेत्र का यह मामला है। पीड़ित बच्चे के माता-पिता का दिसंबर 2013 को आपसी सहमति से तलाक हो गया था। उस वक्त कोर्ट ने दो वर्षीय बच्चे की कस्टडी उसकी मां को सौंपी थी। मां अपने बेटे को लेकर अपने मायके में रहने लगी, पिता समय समय पर बच्चे से मिलते रहे। एक दिन बच्चे ने पिता को अपनी आपबीती बताई, जिसके बाद 10 सितंबर 2017 को पिता ने बाल कल्याण समिति के पास शिकायत कर दी कि बच्चे की मां और ननिहाल के लोग बच्चे के साथ क्रूरता कर रहे हैं। 6 वर्ष के हो चुके इस बच्चे का शारीरिक शोषण किया जा रहा है। शिकायत में बच्चे की मौसी पर आरोप लगाए कि रात को सोते वक्त वह बच्चे के साथ अश्लील हरकतें करती है। मौसी ने बच्चे को धमकी दे रखी थी कि यदि इस घटना के बारे में वह अपनी मां को बताता है तो उसकी खूब पिटाई की जाएगी।

बाल कल्याण समिति ने इस मामले में अपनी जांच की। जांच अधिकारी के सामने बच्चे ने भी इस बात की पुष्टि कर दी। पुलिस की जांच में बच्चे ने खुलासा किया कि उसने अपनी आपबीती अपनी मां को बताई थी, लेकिन मां ने उसकी बात को महत्व नहीं दिया। विशेष सत्र न्यायालय में आरोपियों ने स्वयं को बरी करने की अर्जी दायर की, लेकिन मामले की गंभीरता को देखते हुए निचली अदालत ने याचिका खारिज कर दी। इसके बाद आरोपियों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने मां और मामा को तो मामले से बरी कर दिया, लेकिन मुख्य आरोपी मौसी को बरी नहीं किया। दूसरी तरफ, मौसी ने एफआईआर खारिज करने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की। दलील दी कि उसके खिलाफ गलत मंशा से बच्चे के पिता ने उसे पट्टी पढ़ा कर शिकायत कराई है। कहा कि घटना की तारीख और शिकायत कराने की तारीख में एक लंबा विलंब है, लेकिन हाईकोर्ट ने इन तथ्यों को महत्व नहीं दिया। उक्त निरीक्षण के साथ आरोपी मौसी की याचिका खारिज कर दी।

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने एफआईआर खारिज करने से साफ इनकार किया है। न्या.सुनील शुक्रे व न्या.अविनाश घारोटे की खंडपीठ ने इस फैसले में कहा है कि प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसेस एक्ट (पोक्सो अधिनियम) का गठन ही बच्चों की यौनाचारों से सुरक्षा के लिए किया गया है। ऐसे मामले में एक निष्पक्ष ट्रायल से ही सच्चाई सामने ला सकता है।

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