नई दिल्ली. अगर तीनों कृषि कानूनों को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया जाए और एमएसपी किसानों का संवैधानिक अधिकार बने, तो किसानों और सरकार के बीच गतिरोध दूर हो सकता है। यह सुझाव जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी ने दिया है। त्यागी का मानना है कि दोनों पक्ष इसे स्वीकार करेंगे। उन्होंने कहा कि शांतिपूर्ण तरीके से और बातचीत से ही इसका हल निकल सकता है। वैसे भी सरकार इन कानूनों को डेढ़ साल तक निलंबित रखने को तैयार है। फिर इसे अनिश्चितकाल तक टालने में क्या दिक्कत है। बता दें कि केंद्रीय
कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने डेढ़ साल के लिए कानूनों को टालने का प्रस्ताव रखा है, सरकार एमएसपी पर लिखित आश्वासन देने को भी तैयार है।
त्यागी ने कहा कि सबसे पहले एमएसपी की बात करें, तो इसे कानून बनाने की मांग बिलकुल जायज है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। सरकारी खरीद है लेकिन उसके बाहर सरकार द्वारा घोषित एमएसपी किसानों को नहीं मिलता है। इसकी वजह से उसको आर्थिक नुकसान होता है। लिहाजा सबसे पहले जरूरी है कि इसको संवैधानिक अधिकार बनाया जाए। इसको संवैधानिक जामा पहनाया जाए।
किसानों का भी कहना है कि सरकार ने हाल ही में जो तीन नए कृषि कानून (New Farm Laws) बनाए हैं उनके पीछे सरकार की मंशा न्यूनतम समर्थन मूल्य सिस्टम को खत्म करने की है। हालांकि, सरकार बार-बार यही दुहाई दे रही है कि नए कानूनों से वर्तमान व्यवस्था पर कोई भी फर्क नहीं पड़ेगा, उल्टा किसानों को फायदा ही होगा।
क्या है MSP : तो सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि ये एमएसपी क्या होता है। दरअसल, MSP यानी मिनिमम सपोर्ट प्राइस या फिर न्यूनतम सर्मथन मूल्य होता है। MSP सरकार की तरफ से किसानों की अनाज वाली कुछ फसलों के दाम की गारंटी होती है। राशन सिस्टम के तहत जरूरतमंद लोगों को अनाज मुहैया कराने के लिए इस एमएसपी पर सरकार किसानों से उनकी फसल खरीदती है। बाजार में उस फसल के रेट भले ही कितने ही कम क्यों न हो, सरकार उसे तय एमएसपी पर ही खरीदेगी। इससे यह फायदा होता है कि किसानों को अपनी फसल की एक तय कीमत के बारे में पता चल जाता है कि उसकी फसल के दाम कितने चल रहे हैं। हालांकि मंडी में उसी फसल के दाम ऊपर या नीचे हो सकते हैं। यह किसान की इच्छा पर निर्भर है कि वह फसल को सरकार को बेचे एमएसपी पर बेचे या फिर व्यापारी को आपसी सहमति से तय कीमत पर।
कौन तय करता है MSP : फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य CACP यानी कृषि लागत एवं मूल्य आयोग तय करता है। CACP तकरीबन सभी फसलों के लिए दाम तय करता है। हालांकि, गन्ने का समर्थन मूल्य गन्ना आयोग तय करता है। आयोग समय के साथ खेती की लागत के आधार पर फसलों की कम से कम कीमत तय करके अपने सुझाव सरकार के पास भेजता है। सरकार इन सुझाव पर स्टडी करने के बाद एमएसपी की घोषणा करती है।
किन फसलों का तय होता है एमएसपी (MSP for Crops) : रबी और खरीफ की कुछ अनाज वाली फसलों के लिए एमएसपी तय किया जाता है। एमएसपी का गणना हर साल सीजन की फसल आने से पहले तय की जाती है। फिलहाल 23 फसलों के लिए सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करती है। इनमें अनाज की 7, दलहन की 5, तिलहन की 7 और 4 कमर्शियल फसलों को शामिल किया गया है। धान, गेहूं, मक्का, जौ, बाजरा, चना, तुअर, मूंग, उड़द, मसूर, सरसों, सोयाबीन, सूरजमूखी, गन्ना, कपास, जूट आदि की फसलों के दाम सरकार तय करती है।
एमएसपी का फायदा (Benefits of MSP) : एमएसपी तय करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि अगर बाजार में फसल का दाम गिरता है, तब भी यह तसल्ली रहती है कि सरकार को वह फसल बेचने पर एक तय कीमत तो जरूर मिलेगी।
एमएसपी तय करने का फार्मूला (MSP formula) : केंद्र में जब मोदी सरकार आई थी तब उसने फसल की लागत का डेढ़ गुना एमएसपी तय करने के नए फार्मूले अपनाने की पहल की थी। कृषि सुधारों के लिए 2004 में स्वामीनाथन आयोग बना था। आयोग ने एमएसपी तय करने के कई फार्मूले सुझाए थे। डा. एमएस स्वामीनाथन समिति ने यह सिफारिश की थी कि एमएसपी औसत उत्पादन लागत से कम से कम 50 प्रतिशत अधिक होना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में एनडीए सरकार ने स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश को लागू किया औ 2018-19 के बजट में उत्पादन लागत के कम-से-कम डेढ़ गुना एमएसपी करने की घोषणा की।
कैसे होती है किसानों से खरीद (Crop Procurement) : हर साल बुआई से पहले फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय हो जाता है। हर खरीफ और रबी सीजन के लिए एमएसपी तय होता है। बहुत से किसान तो एमएसपी देखकर ही फसल बुआई करते हैं। एमएसपी पर सरकार विभिन्न एजेंसियों के माध्यम से किसानों से अनाज खरीदती है। MSP पर खरीदकर सरकार अनाजों का बफर स्टॉक बनाती है। सरकारी खरीद के बाद FCI और नैफेड के पास यह अनाज जमा होता है। इस अनाज का इस्तेमाल सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के लिए होता है। अगर बाजार में किसी अनाज में तेजी आती है तो सरकार अपने बफर स्टॉक में से अनाज खुले बाजार में निकालकर कीमतों को काबू करती है।
MSP सिस्टम की दिक्कत : किसानों की फसलों की लागत तय कर पाना मुश्किल होता है। छोटे किसान अपनी फसल को MSP पर नहीं बेच पाते हैं। बिचौलिये, किसान से खरीदकर फसल खरीदकर MSP का फायदा उठाते हैं। अभी कई फसलें MSP के दायरे से बाहर हैं।