सुशासन बाबू के प्रशासन की इज्जत नहीं, महिला बीडीओ की बाल खींचकर पिटाई

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पटना. बिहार में आराजक तत्वों का बोलबाला थमने का नाम नहीं ले रहा है। बढ़ते अपराध से बिगड़ते हालत के सबूत इतने खुले रूप में सामने आ रहे हैं कि राज्य सरकार अब उन्हें अपने किसी गढ़े हुए आंकड़ों के ज़रिये भी नकार नहीं सकती। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब सार्वजनिक भाषणों में अपना ये पसंदीदा जुमला दुहराने से बचते हैं कि ”राज्य में अमन-चैन और क़ानून का राज क़ायम है।”

आंकड़े बताते हैं कि यहां सबसे जघन्य अपराध यानी हत्या, अपहरण और बलात्कार की घटनाएं ज़्यादा हो रही हैं। ख़ासकर हत्याओं का सिलसिला काफ़ी तेज़ हो गया है। अब तो प्रशासन पर सीधा हमला बोला जा रहा है और जब अधिकारियों के साथ मार-पीट की जा रही है, तो आम लोगों की सुरक्षा के बारे में सोचना भी संभव नहीं लगता।

ताजा मामला विवाद पैक्स चुनाव का है। नामांकन रद्द होने से नाराज अध्यक्ष पद के दावेदारों ने अपने 5-6 साथियों के साथ महिला बीडीओ कामिनी देवी पर जानलेवा हमला बोल दिया। बीडीओ को इसका कतई आभास नहीं था और न ही कभी उन्होंने इस तरह के हमले के बारे में कभी सोचा होगा। घोसवरी ब्लॉक ऑफिस से निकलकर बीडीओ कामिनी देवी अपनी गाड़ी में शाम करीब 6 बजे बैठने ही वाली थीं कि हमलावरों ने बाल पकड़ कर उन्हें खींच लिया। फिर जमीन पर पटककर लात-घूसों से उनकी बेरहमी से पिटाई की। इस दौरान उनका सिर फट गया। कई जगह चोटें भी आई हैं।
बीडीओ को बचाने आए दूसरे स्टाफ भी हमलावरों के निशाने पर रहे। एक-एक कर हमलावरों ने सभी की जमकर धुनाई की। हैरत यह है कि इतना हंगामा करने के बाद वे आसानी से वहां से निकल भी गए। जख्मी बीडीओ का घोसवरी अस्पताल में इलाज जारी है। हमलावरों के नाम बमबम यादव, अखिलेश यादव और कुर्मीचक के सरपंच मनोज यादव बताए जा रहे हैं। उनके साथ और 5-6 लोगों ने हमला बोला था। एक आरोपी सरपंच मनोज यादव को गिरफ्तार कर लिया गया है।

बता दें कि मोकामा से अलग कर घोसवरी को नया प्रखंड बनाया गया है, मगर यहां सुरक्षा का कोई खास इंतजाम नहीं है। कोई सीसीटीवी कैमरा भी नहीं लगा है, इसलिए बीडीओ पर हुए हमले का पुलिस के पास कोई सीसीटीवी फुटेज नहीं है। हमले के वक्त सिर्फ दो सुरक्षाकर्मी मौजूद थे। सुरक्षाकर्मियों ने बीच-बचाव की कोशिश की, मगर हमलावरों ने उनके साथ भी हाथापाई की।
ऐसे में ये सवाल उठना स्वाभाविक है कि मौजूदा मुख्यमंत्री के ‘अमन-चैन ‘ वाले बहुप्रचारित दावे की विश्वसनीयता क्या है? सत्ता रचित भ्रमजाल को तोड़ने जैसा ये प्रश्न अब पूछा जाने लगा है।

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