सुप्रीम कोर्ट में याचिका-9 राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित करें या फिर इस कानून को ही खत्म करें

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नई दिल्ली. अभी तक आमतौर पर देश में मुस्लिम को अल्पसंख्यक के चश्मे से देखा जाता है। हालांकि इसमें सिख, बौद्ध, ईसाई, जैन भी आते हैं, लेकिन सबसे अधिक हो-हल्ला मुस्लिमों के नाम पर ही मचता है। दिलचस्प बात यह है कि ‘मुस्लिम तुष्टीकरण’के जुमले को किसी ने अभी तक परिभाषित नहीं किया है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना सरीखी पार्टियां हाल के वर्षों में जो हिंदुत्ववादी राजनीति करती रही हैं उसका आधार आपस में जुड़े दो दावे हैं— एक तो यह कि धर्मनिरपेक्ष भारत में हिंदू प्रताड़ित हो रहे हैं और दूसरा यह कि आज़ादी के बाद से धर्मनिरपेक्षता के नाम पर मुसलमानों का ‘तुष्टीकरण’।

बहरहाल, एक याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई है कि देश के 9 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, लेकिन उन्हें अल्पसंख्यक का लाभ नहीं मिल रहा है। इनमें लद्दाख, मिजोरम, लक्ष्यद्वीप, कश्मीर, नगालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और मणिपुर में रह रहे हिंदूओं की स्थिति अल्पसंख्यक के तौर पर है। याचिककर्ता ने कहा है कि अल्पसंख्यक होने के कारण यहां रह रहे हिंदुओं को अल्पसंख्यक का लाभ मिलना चाहिए, या फिर अल्पसंख्यक का दर्जा ही खत्म कर देना चाहिए।

बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय की ओर से दाखिल अर्जी में कहा गया है कि राज्यों की मान्यता भाषाई आधार पर हुई है, ऐसे में अल्पसंख्यक का दर्जा राज्यवार होना चाहिए न कि देश के लेवल पर हो सकता है। ऐसे में भाषाई और धर्म के आधार पर स्टेटवाइज ही अल्पसंख्यक का दर्जा होना चाहिए और राज्यवार ही इस पर विचार होना चाहिए।ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के बाद अब अल्पसंख्यक का दर्जा राज्यवार ही होना चाहिए और वह भाषा और धर्म के आधार पर राज्यस्तर पर हो सकता है।

साथ ही याचिकाकर्ता ने नेशनल कमिशन फॉर माइनॉरिटी ऐक्ट 1992 के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिकाएं जो तमाम राज्यों के हाई कोर्ट में पेंडिंग हैं, उन्हें सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने की गुहार लगाई है। याचिकाकर्ता ने कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट, मेघालय हाईकोर्ट, गुवाहाटी हाई कोर्ट में इससे संबंधित केस पेंडिंग है जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर किया जाना चाहिए। अलग-अलग हाई कोर्ट में केस होने से अलग अलग मत आ सकते हैं ऐसे में मामला सुप्रीम कोर्ट में सुना जाना चाहिए। याचिकाकर्ता ने कहा कि नेशनल कमिशन फॉर माइनॉरिटी एक्ट 1992 की धारा 2 (सी) को गैर संवैधानिक घोषित किया जाए, जिसके तहत अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाता है।

गुहार लगाई गई है कि हिंदुओं को 9 राज्यों में अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाए। अब सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से एक सप्ताह के अंदर प्रतिवादियों के नाम पूरा कर पेश करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट में इससे पहले भी अश्विनी उपाध्याय की ओर से अर्जी दाखिल की गई थी तब सुप्रीम कोर्ट ने 20 फरवरी 2020 को मामले में सुनवाई से इनकार कर दिया था और याचिकाकर्ता को दिल्ली हाई कोर्ट जाने को कहा था।

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