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राकेश टिकैत के आंसू भारी पड़े, गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों का फिर जमावड़ा

नई दिल्ली. भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत इंटरनेट मीडिया पर छाए हुए हैं। कोई उनके हक में बोल रहा है तो कोई उनके खिलाफ। 26 जनवरी को दिल्ली में हुई हिंसा के बाद ऐसा लग रहा था कि किसानों के आंदोलन की धार अब कुंद पड़ जाएगी, लेकिन राकेश टिकैत के आंसुओं ने आंदोलन की आंच में घी का काम किया और गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों का जमावड़ा लगने लगा। इसे देख भावुक राकेश टिकैत ने कहा कि आंसू बहने का असर आपने देख लिया। अब यह आंदोलन और मजबूत होगा।

दिल्ली में ट्रैक्टर परेड में हिंसा और फिर केस दर्ज होने के बाद गिरफ्तारी के सवाल पर राकेश टिकैत ने कहा कि यह आंदोलन मैं नहीं बल्कि किसान चला रहे हैं। यह आंदोलन चलता रहेगा। बता के जिद के धनी राकेश टिकैत कई दशकों से किसानों के हकों की लड़ाई के लिए सक्रिय हैं। 44 बार जेल जा चुके हैं। मध्य प्रदेश में भूमि अधिकरण कानून के खिलाफ हुए आंदोलन के चलते राकेश टिकैत को 39 दिनों तक जेल में रहना पड़ा था। राकेश टिकैत ने मेरठ यूनिवर्सिटी से एमए की पढ़ाई करने के बाद एलएलबी भी किया है। वर्ष 1992 में दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल के पद पर नौकरी करते थे, लेकिन पिता महेंद्र सिंह टिकैत का प्रभाव उन पर खूब है। इसलिए डटना वे जानते हैं। यही कारण है कि सरकार को सीधी चुनौती दे रहे हैं।

भाजपा को वोट देने और अब पार्टी से नाराजगी के सवाल पर टिकैत ने कहा कि नाराजगी तो अपनों से ही होती है, किसी और से थोड़े होती है। जब हम बराबर-बराबर चलेंगे तो वहीं टांग मारता है जो बराबर में हो। हम तो किसानों की यहां बात कर रहे हैं और किसानों की बात के लिए हर आघात सहने को तैयार हैं।

बता दें कि मुजफ्फरनगर जनपद के सिसौली गांव में 4 जून 1969 में जन्मे राकेश टिकैत भारतीय किसान यूनियन के मुखिया हैं। देश के जाने-माने किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत के वे बेटे हैं। कई दशकों से किसानों के हकों की लड़ाई के लिए सक्रिय हैं। 44 बार जेल जा चुके हैं। मध्य प्रदेश में भूमि अधिकरण कानून के खिलाफ हुए आंदोलन के चलते राकेश टिकैत को 39 दिनों तक जेल में रहना पड़ा था।

राकेश टिकैत ने मेरठ यूनिवर्सिटी से एमए की पढ़ाई करने के बाद एलएलबी भी किया है। वर्ष 1992 में दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल के पद पर नौकरी करते थे, लेकिन पिता महेंद्र सिंह टिकैत का प्रभाव उन पर खूब है। यही वजह है कि जब 1993-1994 में दिल्ली के लाल किले पर पिता महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में किसानों का आंदोलन चल रहा था तो वह भी भावुक हो गए। राकेश टिकैत पर सरकार ने आंदोलन खत्म कराने का दबाव बनाया। साथ ही कहा कि वह अपने पिता और भाइयों को आंदोलन खत्म करने को कहें, जिसके बाद राकेश टिकैत पुलिस की नौकरी छोड़ किसानों के साथ खड़े हो गए थे। महेंद्र सिंह टिकैत की कैंसर से मृत्यु के बाद राकेश टिकैत ने पूरी तरह भारतीय किसान यूनियन की कमान संभाल ली।

बालियान खाप से संबंध रखने वाले महेंद्र सिंह टिकैत की मौत के बाद उनके बड़े बेटे नरेश टिकैत को भारतीय किसान यूनियन का अध्यक्ष बनाया गया। इसके पीछे वजह यह है कि बालियान खाप के नियमों के मुताबिक, बड़ा बेटा ही मुखिया हो सकता है। ऐसे में नरेश टिकैत अध्यक्ष हैं, लेकिन कहा जाता है कि भारतीय किसान यूनियन की कमान राकेश टिकैत के हाथ में है और सभी अहम फैसले राकेश टिकैत ही लेते हैं।

Delhi Desk

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