गणतंत्र दिवस परेड में पहली बार बांग्लादेश की सेना शामिल हुई, भारत को दिया धन्यवाद

0
108

नई दिल्ली. बांग्लादेश के विदेश मंत्री ए. के. अब्दुल मोमिन ने भारत के साथ अपने देश के संबंधों को ऐतिहासिक और ‘चट्टान की तरह मजबूत’ करार देते हुए कहा था कि इन्हें कोई भी चीज नुकसान नहीं पहुंचा सकती। मोनिन ने 1971 के मुक्ति संग्राम के शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिये भारतीय सीमा से लगे पश्चिमी मेहरपुर में एक स्मारक का दौरा करने के बाद यह बात कही थी। आज उस चट्टानी रिश्ते की झलक गणतंत्र दिवस परेड में दिखाई दी।

बांग्लादेश के 122 जवान शामिल हुए : पहली बार पड़ोसी मित्र देश बांग्लादेश के सशस्त्र बलों की टुकड़ी दिल्ली में राजपथ पर गणतंत्र दिवस परेड में भाग लिया। इस टुकड़ी में बांग्लादेश के 122 जवान शामिल हुए। बांग्लादेश की इस टुकड़ी का नेतृत्व कमांडर लेफ्टिनेंट कर्नल अबू मोहम्मद शाहनूर शान और उनके डिप्टी लेफ्टिनेंट फरहान इशराक और फ्लाइट लेफ्टिनेंट सिबत रहमान ने किया। लेफ्टिनेंट कर्नल बनजीर अहमद की लीडरशीप वाले मार्चिंग बैंड ने “शोनो एकती मुजीबुर-अर थेके लोखो मुजीबुर” जैसा धुन बजाया है, जिसका अर्थ है “सुनो, मुजीबुर की आवाज सुनो, जिनके हजारों फॉलोअर्स है”। अहमद के अनुसार, सैनिक हमारे दोनों देशों के बीच दोस्ती की लौ के मशाल वाहक हैं। वे हमें 1971 की पीढ़ी के साथ जोड़ते हैं। हम गणतंत्र दिवस परेड में पहली बार उन्हें सम्मानित करते हैं, क्योंकि भारत और बांग्लादेश अपने राजनयिक संबंधों की स्थापना के 50 वर्ष मना रहे हैं और बांग्लादेश की आजादी के भी 50 साल हो रहे हैं।

जवानों के प्रति आभार : बताया जा रहा है कि बांग्लादेश की इस टुकड़ी में 1971 में बांग्लादेश को आजाद कराने के लिए भाग लेने वाली यूनिट्स के सैनिक शामिल थे। बांग्लादेश के जवानों ने न केवल पहली बार भारत के गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने पर गर्व महसूस किया , बल्कि इसके जरिए वे भारत के उन जवानों के प्रति आभार भी व्यक्त किया जिन्होंने बांग्लादेश की मुक्ति के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों के पचास साल पूरे हो गए हैं।

हम मनाते हैं विजय दिवस : याद रहे 16 दिसंबर को भारत में विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। 1971 में इसी दिन पाकिस्तानी सेना ने भारत के सामने समर्पण किया था, जिसके बाद 13 दिन तक चला युद्ध समाप्त हुआ। साथ ही जन्म हुआ बांग्लादेश का। 1971 के ऐतिहासिक युद्ध में पूर्वी कमान के स्टाफ़ ऑफ़िसर मेजर जनरल जेएफ़आर जैकब ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उस वक़्त भारतीय सेना के प्रमुख फ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने मेजर जनरल जैकब को ही समर्पण की सारी व्यवस्था करने के लिए ढाका भेजा था।16 दिसंबर को पाकिस्तान के जनरल नियाज़ी के साथ क़रीब 90 हज़ार पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने हथियार डाले थे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here