Subscribe for notification
ट्रेंड्स

भड़के तोमर, कहा-किसानों ने इस बार आंदोलन की पवित्रता ही खत्म कर दी

नई दिल्ली. कृषि कानूनों को लेकर किसानों और सरकार के बीच 11वें बैठकों के बाद भी कोई हल नहीं निकलने पर शुक्रवार को कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भड़क उठे। उन्होंने कहा कि किसी भी आंदोलन की पवित्रता होती है और किसान आंदोलन की पवित्रता नष्ट हो चुकी है। दरअसल, इसका राजनीतिक फायदा उठाया जा रहा है।दूसरी तरफ, किसान संगठनों का कहना है कि सभी दौरों की बातचीत में सरकार की तरफ से एक ही बात कही जाती रही है कि वह किसानों की सभी आशंकाओं और चिंताओं को दूर करना चाहती है, लेकिन उसकी किसी बात पर भरोसा नहीं किया जा सकता। साफ है कि सरकार और किसानों के बीच दूरी कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है। शायद यही वह सबसे बड़ी वजह है, जिसके चलते लगातार बातचीत के बावजूद दोनों पक्षों के बीच सार्थक संवाद का कोई पुल बनता नहीं दिख रहा है।

कृषि मंत्री ने दो टूक कहा कि हमने सबसे बेहतर प्रस्ताव किसानों को दे दिया है, लेकिन कुछ ताकतें चाहती हैं कि आंदोलन चलता रहे और इसका कुछ अच्छा नतीजा ना निकले। लगातार ये कोशिश हुई कि जनता और किसानों के बीच गलतफहमियां फैले और इसका फायदा उठाकर हर अच्छे काम का विरोध करने वाले कुछ लोग किसानों के कंधे का इस्तेमाल अपने राजनीतिक फायदे के लिए कर सकें।’ यही कारण है कि किसान संगठन लगातार कृषि कानूनों की वापसी की मांग पर अड़े रहे, जबकि सरकार ने कई वैकल्पिक प्रस्ताव भी दिए।

हमारी कोशिश थी कि वो सही रास्ते पर विचार करें। एक के बाद एक प्रस्ताव दिए, लेकिन जब आंदोलन की पवित्रता नष्ट हो जाती है तो निर्णय नहीं होता। वार्ता के दौर में मर्यादाओं का तो पालन हुआ, लेकिन किसानों के हक में बातचीत का मार्ग प्रशस्त हो, इस भावना का हमेशा अभाव था, इसलिए यह निर्णय तक नहीं पहुंच सकी। इसका मुझे भी खेद है।

भारत एक कृषिप्रधान देश है और यहां किसान आंदोलनों की एक भरपूर परंपरा रही है। आमतौर पर यह माना जाता है कि भारतीय समाज में समय-समय पर होने वाली उथल-पुथल में किसानों की कोई सार्थक भूमिका नहीं रही है, लेकिन ऐसा नहीं है क्योंकि भारत के स्वाधीनता आंदोलन में जिन लोगों ने शीर्ष स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, उनमें आदिवासियों, जनजातियों और किसानों का अहम योगदान रहा है। लेकिन अब जो किसान आंदोलन हो रहे हैं उनका स्वाभाव ही बदलता जा रहा है। किसानों के अधिकारों की हर हाल में रक्षा होनी चाहिए। यह आंदोलन भारत का आंतरिक मुद्दा है। लेकिन इसकी आड़ में विदेशी ताकतें देश के आंतरिक मामले में दखल दे रही हैं। किसान आंदोलन का स्वरूप जिस तेजी से बदल रहा है, उससे इसके राजनीतिक इस्तेमाल की आशंका बढ़ गयी है। शुरुआत में किसान सिर्फ एमएसपी (मैक्सिमम सेलिंग प्राइस) की लिखित गारंटी चाहते थे। लेकिन अब तीनों के तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं।

इसमें कोई दो राय नहीं की इस किसान आंदोलन में किसानों के वास्तविक मुद्दों पर राजनीति भारी पड़ गई है। आज देश में लोकतंत्र का मतलब, सैद्धांतिक और जनता के लाभ पर आधारित परिचर्चा और विरोध से हटकर मौकापरस्ती पर केंद्रित हो गया है।

AddThis Website Tools
Delhi Desk

Recent Posts

मोमेंट्स-रिकॉर्ड्सः रोहित टी-20 में 12 हजार रन पूरे किये, काली पट्टी बांधकर उतरे प्लेयर्स

हैदराबादः मुंबई इंडियंस (MI) ने IPL-18 के 41वें मैच में सनराइजर्स हैदराबाद (SRH) को 07 विकेट से हरा दिया। हैदराबाद…

6 hours ago

पहलगाम आतंकी हमले के बाद पीएम मोदी की पहली रैली आज, बिहार की धरती से आतंकवादियों और उनके पनाहगार पाकिस्तान को देंगे कड़ा संदेश

पटना: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को बिहार के दौरे पर रहेंगे। वे दरभंगा और मधुबनी जाएंगे। जम्मू-कश्मीर में हुए आतंकवादी…

7 hours ago

Pahalgam Attack: सरकार ने आज बुलाई सर्वदलीय बैठक, 65 साल पुराना सिंधु जल समझौता रोका, पाकिस्तानी नागरिकों का वीजा रद्द, अटारी बॉर्डर बंद, भारत के फैसलों के मायने

दिल्लीः जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले को लेकर पूरे देश में आक्रोश है। केंद्र सरकार ने मामले की…

7 hours ago

कार्यालय केवल एक भवन नहीं, कार्य का आलय होना चाहिएः डॉ. भागवत

दिल्लीः RSS यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह डॉ. मोहन भागवत ने कहा है कि कार्यालय केवल एक भवन नहीं,…

1 day ago

गर्मी के मौसम में अमृत सामान है नारियल पानी, जानें इसे पीने के फायदे, कितना पीना सुरक्षित और किन्हें नहीं पीना चाहिए

दिल्लीः गर्मी का मौसम शुरू हो चुका है। भीषण गर्मी ने लोगों का जीना दुश्वार कर दिया है। ऐसे में…

2 days ago