नई दिल्ली. अंतहीन समझे जा रहे सिलसिले के अंत की फिर शुरुआत हुई। किसानों के साथ विज्ञान भवन में बैठक हो रही है। देश को लगता नहीं, पर उम्मीद है कि गतिरोध टूट सकता है, क्योंकि सरकार के तेवर भी सामने आ चुके हैं और किसान संगठन सुप्रीम कोर्ट तथा पुलिस की प्रतिक्रिया भी जान चुके हैं।
बहरहाल किसानों और केंद्र सरकार के बीच आज होने वाली अगले दौर की वार्ता के लिए किसान नेता और केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर विज्ञान भवन पहुंचे। शुरुआत में झटका देते हुए अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हन्नान मोल्लाह ने कहा कि हमें इससे बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं है। सरकार का रवैया थोड़ा और सकारात्मक होगा तो बेहतर हो सकता है। सरकार ने जो प्रस्ताव दिया था उसमें पुराने प्रस्ताव से थोड़ा फर्क था, इसीलिए वह प्रस्ताव हम आमसभा में ले गए थे। चर्चा के बाद उन लोगों ने उसे मानने से इनकार कर दिया। सरकार को आंदोलन के मूड को समझना चाहिए और उसके अनुसार काम करना चाहिए।
बता दें कि नए कृषि कानूनों के खिलाफ में दिल्ली की सीमाओं पर लगातार 58वें दिन भी किसानों का हल्लाबोल जारी है। कृषि कानूनों पर कोई समाधान नहीं निकलने से घमासान अब भी बरकरार है। ऐसे में किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच इस वार्ता के काफी मायने हैं। इसके पहले सरकार की तरफ से कहा गया था कि 1.5 साल तक कानून के क्रियान्वयन को स्थगित किया जा सकता है। इस दौरान किसान यूनियन और सरकार बात करके समाधान ढूंढ सकते हैं, लेकिन किसान अड़े हुए हैं, वे तीनों कानूनों को रद्द करने और एमएसपी पर कानून बनाने की मांग से नीचे उतरने को तैयार ही नहीं हैं।
इस बीच, 26 जनवरी को दिल्ली में गणतंत्र दिवस पर घोषित किसानों की रैली के बारे में हन्नान मोल्लाह ने कहा कि हम प्रोग्राम को बदल नहीं सकते। घोषित कार्यक्रम के अनुसार रैली की जाएगी। 26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड को लेकर बातचीत चल रही है। ट्रैक्टर परेड तो होगी ही। सरकार रिंग रोड पर आने से मना कर रही है, लेकिन किसान पीछे नहीं हटेगा। हम देखते हैं इसे शांतिपूर्ण तरीके से कहां तक कामयाब किया जा सकता है।
स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह पहली बार है, जब अपनी मांगों को लेकर किसान इतनी बड़ी संख्या में सड़क पर डटे हैं। इससे पहले शायद ही कभी इतनी बड़ी संख्या में किसानों को एकजुट होकर सरकार को चुनौती देते देखा गया होगा। नए कृषि कानूनों से नाराज उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा समेत अन्य राज्यों से आए किसान अब भी दिल्ली की सीमाओं को घेरे बैठे हैं और किसी भी हद तक जाकर तीनों नए कृषि कानूनों को वापस कराना चाहते हैं।
याद कीजिए जब इसी देश में ‘लोकपाल’ को लेकर तब की कांग्रेस सरकार के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन खड़ा हुआ था, लेकिन उस वक्त कांग्रेस के पास पूर्ण बहुमत नहीं था और कुछ महीनों में ही लोकसभा के चुनाव होने वाले थे। यही वजह थी कि सरकार जनता के सामने झुक गई और लोकपाल बिल लेकर आई। नरेंद्र मोदी की सरकार के पास पूर्ण बहुमत है और इन्हें सत्ता जाने का डर भी नहीं है, इसलिए अडिग है।
हाल के दिनों में देखा गया है कि सरकार के खिलाफ धीरे-धीरे ही सही आवाजें उठने लगी हैं। नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ भी शाहीन बाग में जोरदार प्रदर्शन हुए थे। एक तबका उस वक्त भी कानून को वापस कराने की मांग पर अड़ा था। वहीं दूसरी तरफ सरकार के समर्थन में लोग प्रदर्शन को नाजायज करार दे रहे थे। कभी प्रदर्शन में मौजूद महिलाओं पर सवाल उठ रहे थे, तो कभी पैसे लेकर प्रदर्शन में शामिल होने के। हालांकि कोरोना महामारी की वजह से लोगों को प्रदर्शन खत्म करना पड़ा। अब उसी राह पर किसान हैं और खुलेआम सरकार से दो-दो हाथ करने को तैयार हैं।
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