पटना.
निचली जाति और दलित समुदाय को एक मंच पर लाने की कवायद के तहत रामविलास पासवान ने जिस लोक जनशक्ति पार्टी का गठन किया था, वह कुनबा दरकने लगा है। जानकारी के अनुसार, रविवार को दो दर्जन नेताओं ने लोजपा से इस्तीफा दे दिया। हालांकि यह अनायास उठाया गया कदम नहीं है। सुगबुगाहट तो विधानसभा चुनाव के ही समय से सुनी जा रही थी, लेकिन जानकार मानते हैं कि रामविलास पासवान की मौत के बाद भावनात्मक वोट की उम्मीदों ने उन्हें एक साथ बनाए रखा।
बताते चलें कि बिहार विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद एलजेपी प्रमुख चिराग पासवान ने बिहार प्रदेश की तमाम जिला इकाई को भंग कर दिया था। और कहा था कि दो महीने के अंदर सभी नई कमेटियों का गठन किया जाएगा। कमिटी भंग होते हीं एलजेपी के प्रदेश महासचिव केशव सिंह ने चिराग परआरोप लगाते हुए कहा कि चिराग पासवान संस्थापक रामविलास पासवान के बताये रास्ते से भटक गए हैं। वो लोजपा को प्रइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह चला रहे हैं। वे अपने पीए की सलाह पर काम कर रहे हैं, जबकि सांसदों एवं अन्य नेताओं की कोई पूछ नहीं है सारे समर्पित कार्यकर्ता अपने आप को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। बागी नेता केशव सिंह की मानें तो पार्टी के कई नेता, सांसद और राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान की कार्यशैली से नाराज चल रहे हैं। केशव सिंह ने कहा कि चिराग पासवान ने प्रशांत किशोर के साथ मिलकर चुनाव में काम किया। नीतीश कुमार को हराने के लिए कांग्रेस और दूसरे दलों से पैसा लेकर खेल किया गया। उन्होंने कहा की जल्द पैसों के मामलों को लेकर और खुलासा करूंगा।
बता दें कि लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान के निर्देश पर प्रदेश अध्यक्ष प्रिंस राज ने पार्टी विरोधी कार्य में संलिप्त तथा अनुशासनहीनता के कारण पूर्व प्रदेश महासचिव केशव सिंह को पार्टी से छह साल से निष्कासित कर दिया था। तब केशव सिंह ने दावा किया था कि खरमास बाद पार्टी के चार सांसद और बड़ी संख्या में अन्य नेता मिलकर लोजपा (रामविलास गुट) की स्थापना करेंगे।
लोजपा की स्थापना सन 2000 में वरिष्ठ राजनेता राम विलास पासवान ने किया था। उस समय बहुत कम लोगों को साथ लेकर उन्होंने पार्टी का शुरू किया था। पार्टी का लक्ष्य गरीब और निचले तबके को जोड़ना था। तभी पार्टी का नाम रखा गया लोक जनशक्ति पार्टी। कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के गठबंधन में पार्टी ने हमेशा अच्छा प्रदर्शन किया है। तब 2004 लोकसभा चुनाव में गठबंधन के साथ पार्टी ने चार सीटों पर कब्जा किया। इसके बाद विधानसभा चुनाव में भी पासवान 29 सीटों को समेटने में कामयाब रहे। अब महत्वाकांक्षा बढ़ने लगी है और आरोप गढ़े जाने लगे हैं। चिराग पासवान के लिए परीक्षा की खड़ी है।