केंद्र के तीनों नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान दिल्ली की सीमा पर डटे हैं. किसानों के इस आंदोलन को डेढ़ महीने से भी ज्यादा का वक्त हो चुका है, साथ ही 9 दौर की वार्ता भी हो चुकी है लेकिन अभी तक कोई सहमति नहीं बन पाई है. किसानों की मांग है कि सरकार इन कानूनों को निरस्त करे. अब 19 जनवरी को किसान संगठनों और केंद्र के बीच 10वें दौर की बैठक होनी है लेकिन इससे पहले कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसानों को साफ संदेश दे दिया है कि ये कानून वापस नहीं होंगे, इसके लिए दूसरा विकल्प बताओ.
केंद्र सरकार के नए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले 53 दिनों से दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का धरना जारी है. किसान कृषि कानूनों को रद्द करवाने की मांग को लेकर अड़े हुए हैं. रविवार (17 जनवरी) को सरकार ने कहा है कि कानूनों को रद्द करने के अलावा वह प्रदर्शनकारी किसानों की आशंकाओं को दूर करने के लिए तैयार है.
समाचार एजेंसी एएनआई की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि सरकार ने विरोध प्रदर्शन कर रही किसान यूनियनों को प्रस्ताव भेजा है, जिसमें मंडियों के संबंध में उनकी आशंकाओं और व्यापारियों के पंजीकरण को लेकर सहमति बनी है.
केंद्रीय मंत्री तोमर ने कहा, ‘पराली जलाने और बिजली पर कानूनों पर चर्चा करने के लिए भी सहमति व्यक्त की है, लेकिन यूनियन केवल कानूनों को निरस्त करना चाहती हैं. भारत सरकार ने किसान यूनियन के साथ एक बार नहीं 9 बार घंटों तक वार्ता की, हमने लगातार किसान यूनियन से आग्रह किया कि वो कानून के क्लॉज पर चर्चा करें और जहां आपत्ति है वो बताएं. सरकार उस पर विचार और संशोधन करने के लिए तैयार है.’
कृषि मंत्री ने कहा, ‘किसान यूनियन टस से मस होने को तैयार नहीं है, उनकी लगातार ये कोशिश है कि कानूनों को रद्द किया जाए. भारत सरकार जब कोई कानून बनाती है तो वो पूरे देश के लिए होता है. इन कानूनों से देश के अधिकांश किसान, विद्वान, वैज्ञानिक, कृषि क्षेत्र में काम करने वाले लोग सहमत हैं.’ केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने कानूनों के क्रियान्वयन को रोक दिया है तो मैं समझता हूं कि जिद्द का सवाल ही खत्म होता है. हमारी अपेक्षा है कि किसान 19 जनवरी को एक-एक क्लॉज पर चर्चा करें और वो कानूनों को रद्द करने के अलावा क्या विकल्प चाहते हैं वो सरकार के सामने रखें.’
बता दें कि नए कृषि कानूनों को लेकर किसानों के मन में पैदा हुई आशंकाओं का समाधान तलाशने के लिए किसान यूनियनों के नेताओं के साथ शुक्रवार (15 जनवरी) को करीब पांच घंटे मंथन के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकला. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इन कानूनों के अमल पर रोक लगा दी है और मसले के समाधान के लिए विशेषज्ञों की एक कमेटी का गठित कर दी है. लेकिन इस गठन पर भी फिलहाल किसान संतुष्ट नहीं हैं.