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साढ़े तीन महीने बाद सुप्रीम कोर्ट ने नए कृषि कानूनों पर लगाई रोक, बातचीत के लिए गठित की कमेटी

साढ़े तीन महीने बाद सुप्रीम कोर्ट ने तीन नए केंद्रीय कानूनों पर फिलहाल रोक लगा दी है तथा इस मुद्दे पर बातचीत करने के लिए चार सदस्यों की समिति गठित की है। कोर्ट ने आज कृषि कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर लगातार दूसरे दिन सुनवाई की।

चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रमासुब्रमण्यम की बेंच ने मामले की सुनवाई के दौरान नए कृषि कानूनों पर बातचीत करने के लिए चार सदस्यों की कमेटी गठित की। इस कमेटी में भारतीय किसान यूनियन के भूपेंद्र सिंह मान, इंटरनेशनल पॉलिसी के प्रमुख डॉ. प्रमोद कुमार जोशी, एग्रीकल्चर इकोनॉमिस्ट अशोक गुलाटी तथा शेतकरी संघटना, महाराष्ट्र अनिल घनवत शामिल हैं।

कोर्ट में सुनवाई के दौरान पिटीशनर वकील एमएल शर्मा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से गठित की जाने वाली समिति के समक्ष पेश होने से किसानों ने इनकार कर दिया है। किसानों का कहना है कि कई लोग चर्चा के लिए आ रहे हैं, लेकिन प्रधानमंत्री सामने नहीं आ रहे। इस पर चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि  प्रधानमंत्री को नहीं बोल सकते, इस मामले में वे पार्टी नहीं हैं।

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि हम कानून के अमल को अभी सस्पेंड करना चाहते हैं, लेकिन बेमियादी तौर पर नहीं। हमें कमेटी में यकीन है और हम इसे बनाएंगे। यह कमेटी न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा होगी। कमेटी इसलिए बनेगी ताकि तस्वीर साफ तौर पर समझ आ सके।

उन्होंने कहा कि हम यह दलील भी नहीं सुनना चाहते कि किसान इस समिति के समक्ष पेश नहीं होंगे। हम मसले का हल चाहते हैं। यदि किसान बेमियादी आंदोलन करना चाहते हैं, तो करें। उन्होंने कहा कि जो भी व्यक्ति मसले का हल चाहेगा, वह कमेटी के पास जाएगा। कमेटी किसी को सजा नहीं सुनाएगी, न ही कोई आदेश जारी करेगी। वह सिर्फ हमें रिपोर्ट सौपेंगी। यह राजनीति नहीं है। राजनीति और ज्यूडिशियरी में फर्क है। आपको को-ऑपरेट करना होगा।

इस दौरान किसान संगठनों के वकील विकास सिंह किसानों को अपने प्रदर्शन के लिए प्रमुख जगह चाहिए, नहीं तो आंदोलन का कोई मतलब नहीं रहेगा। रामलीला मैदान या बोट क्लब पर प्रदर्शन की मंजूरी मिलनी चाहिए। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि हम अपने आदेश में कहेंगे कि किसान दिल्ली के पुलिस कमिश्नर से रामलीला मैदान या किसी और जगह पर प्रदर्शन के लिए इजाजत मांगें।

वहीं अटॉर्नी नजर केके वेणुगोपाल ने किसानों के आंदोलन का विरोध करते हुए कहा कि एक प्रतिबंधित संगठन किसान आंदोलन में मदद कर रहा है। अटॉर्नी जनरल इसे मानते हैं या नहीं? उन्होंने कहा कि हम कह चुके हैं कि आंदोलन में खालिस्तानियों की घुसपैठ हो चुकी है।

 

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