सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ सोमवार को तल्ख टिप्पणी की। कोर्ट ने  सरकार और किसानों के बीच बातचीत में प्रगति न होने पर  चिंता व्यक्ति की और कहा कि आप मुद्दा संभाल नहीं पाए, अब हमें कुछ एक्शन लेना पड़ेगा।

चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रमासुब्रमण्यम की बेंच ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि क्यों न तीनों कृषि कानूनों पर तब तक रोक लगा दी जाए, जब तक इस मामले में कोर्ट द्वारा गठित समिति विचार कर अपनी रिपोर्ट न सौंप दे। हालांकि अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कृषि कानूनों पर रोक की कोर्ट की सलाह का कड़ा विरोध किया।

वहीं जस्टिस बोबडे ने पूछा, “आप हमें बताएं कि क्या आप कृषि कानूनों पर रोक लगाते हैं या हम लगाएं। इन कानूनों को स्थगित कीजिए। इसमें क्या मसला है? हम इसे आसानी से रोक लगाने के पक्ष में नहीं हैं, लेकिन हम कहना चाहते हैं कि कानून को फिलहाल लागू न करें।”

कोर्ट ने कहा कि नए कृषि कानूनों के खिलाफ जारी आंदोलन के दौरान कुछ किसानों ने आत्महत्या कर ली है। बूढ़े- बुजुर्ग और महिलाएं आंदोलन का हिस्सा बन रही हैं। आखिर हो क्या रहा है? आज तक एक ऐसी याचिका दायर नहीं हुई है, जिसमें कहा गया हो कि कृषि कानून अच्छे हैं। इस दौरान चीफ जस्टिस ने केंद्र सरकार और किसानों के बीच बातचीत पर कोई प्रगति नहीं होने पर चिंताई तथा  कहा कि किसान संगठनों और सरकार के बीच नौ दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन कोई प्रगति नहीं हुई है, जबकि अगली बैठक 15 जनवरी के लिए निर्धारित है।

वहीं अटॉर्नी नजर ने कोर्ट से जल्दबाजी में कोई आदेश पारित न करने का अनुरोध किया, जिस पर चीफ जस्टिस ने नाराजगी जताते हुए कहा, “मिस्टर अटॉर्नी जनरल आप धैर्य को लेकर हमें लेक्चर न दें। हमें जल्दबाजी में क्यों न रोक लगानी चाहिए।” इसके बाद उन्होंने कहा कि वह आज या कल मामले में अपना आदेश जारी करेंगे। संभव है आज भी आंशिक आदेश जारी हो और कल पूरा आदेश।

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