दलितों एवं गरीबों की सशक्त आवाज के तौर पर विशिष्ट पहचान बनाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री बूटा सिंह ने अपने राजनीति करियर की शुरुआत अकाली दल से से की थी और पंडित नेहरू के काल में कांग्रेस का दामन थाम लिया था। उन्होंने देश के चार प्रधानमंत्रियों के साथ काम करके अपनी दक्षता का परिचय दिया।
आपको बता दें कि सरदार बूटा सिंह का लंबी बीमारी के बाद आज यहां 86 साल की उम्र में निधन हो गया।
बूटा सिंह का जन्म 21 मार्च 1934 को पंजाब में जालंधर के मुस्तफापुर गांव में हुआ था। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा जालंधर हासिल करने के बाद मुंबई से स्नातकोत्तर डिग्री हासिल की और फिर बुंदेलखंड से डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की। बूटा सिंह ने राजनीति में आने से पहले एक पत्रकार के रूप में भी काम किया था।
उन्होंने अपना पहला चुनाव अकाली दल के सदस्य के रूप में लड़ा। पंडित जवाहरलाल नेहरू के समय बूटा पहली बार तीसरी लोकसभा के लिए पंजाब के साधना निर्वाचन क्षेत्र से निर्वाचित हुए थे। उसके बाद कभी मुड़कर नहीं देखा और तीसरी, चौथी, पांचवीं, सातवीं, आठवीं. 10वीं 12वीं और 13 वीं लोकसभा के सदस्य रहे ।
कांग्रेस परिवार के बहुत क़रीबी रहे बूटा सिंह ने देश के चार प्रधानमंत्रयो के साथ काम किया। सबसे पहले वह पूर्व इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में खेल मंत्री रहे, फिर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें पहले देश का गृहमंत्री बनाया। नरसिम्हा राव के समय वह खाद्य मंत्री रहे और डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में उन्होंने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग का अध्यक्ष बनाया गया। वह इंदिरा गांधी के शासन में एशियाई खेलों के आयोजन समिति के भी अध्यक्ष थे। उन्होंने केंद्र में गृह मंत्री, कृषि मंत्री, रेल मंत्री, खेल मंत्री, खाद्य मंत्री, संचार मंत्री के पदों पर काम किया और बिहार के राज्यपाल के रूप में अपनी सेवाएं दी। वह 2004 से 2006 तक बिहार के राज्यपाल और 2007 से 2010 तक राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष रहे।
श्री बूटा सिंह को 2005 में बिहार विधानसभा भंग करने के कारण आलोचना का सामना करना पड़ा था तथा सुप्रीम कोर्ट ने उनके कदम की तीखी आलोचना की थी।