Sushil Modi

राज्यसभा सांसद एवं बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने आज दावा किया कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने कल्याणकारी योजनाओं को लागू कर प्रदेश के किसानों का भरोसा जीता है इसलिए वे नये कृषि कानून के मुद्दे पर विपक्ष के बहकावे में नहीं आये।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता श्री मोदी ने शुक्रवार को कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में केंद्र की राजग सरकार ने सस्ते ब्याज पर कृषकों को कर्ज देने के लिए किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) की शुरुआत की थी। उनकी पहल को आगे बढाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसान सम्मान निधि योजना लागू करने तक किसानों के लिए इतने काम किये कि बिहार के किसान नये कृषि कानून के मुद्दे पर राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस और वाम दलों के बहकावे में नहीं आये।

श्री मोदी ने प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव पर कटाक्ष करते हुए कहा कि विपक्ष का भारत बंद बिहार में ऐसा फ्लाॅप रहा कि राजद के नेता को राज्य छोड़कर भागना पडा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि से बिहार के 80 लाख किसानों को आज तक 6000 करोड़ रुपये भेजे जा चुके हैं।

पूर्व उप मुख्यमंत्री ने कहा कि राजग सरकार ने बिहार में कृषि विभाग का बजट 241 करोड़ से बढ़ाकर 2041 करोड़ और पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग का बजट 73 करोड़ से बढ़ाकर 776 करोड़ रुपये तक किया। हर पंचायत में किसान सलाहकार और कृषि स्नातकों को कृषि समन्वयक की नियुक्ति भी राजग सरकार ने की। उन्होंने कहा कि बिहार पहला राज्य बना, जिसने 12 विभागों को मिलाकर कृषि रोडमैप लागू किया। गैर रैयत किसानों को सरकारी योजना का लाभ देने की शुरुआत भी राजग ने की।

श्री मोदी ने कहा कि राजग सरकार ने किसानों को स्वायल हेल्थ कार्ड दिया और उन्हें नीमलेपित यूरिया उपलब्ध कराकर यूरिया की कालाबाजारी बंद करायी। केसीसी पर सस्ता कर्ज लेने के दायरे में पशुपालकों और मछली पालकों को भी शामिल किया गया। उन्होंने कहा कि कृषि यंत्रों की खरीद पर अनुदान, प्राकृतिक आपदा के समय कृषि इनपुट अनुदान और फसल सहायता योजना लागू कर खेती का जोखिम कम और आय बढाने का प्रयास तेज किया गया।

भाजपा नेता ने कहा कि 15 साल में लालू-राबडी की सरकार इनमें से एक भी काम नहीं कर पायी जबकि राजग सरकार ने किसानों के लिए इतने काम किये कि कृषि क्षेत्र में बिहार की विकास दर पंजाब से ज्यादा हो गई। इन प्रयासों का ही परिणाम था कि बिहार के किसान विपक्ष के साथ नहीं खडे हुए। उनके बंद के दौरान केवल राजनीतिक कार्यकर्ता सड़क पर उत्पात करते दिखे।

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