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राष्ट्रीय

क्यों बांये कंधे पर पल्लू रखती हैं महिलाएं, मोदी ढूंढ निकाला बंगाल कनेक्शन, जानें क्या है वजह

दिल्लीः क्या आप जानते हैं कि महिलाएं बांये कंधे पर पल्लू क्यों रखती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिलाओँ के बांये कंधे पर साड़ी का बल्लू रखने का बंगाल कनेक्शन ढूंढ निकाला है। मोदी ने आज पश्चिम बंगाल के शांति निकेतन स्थित विश्व भारती विश्वविद्यालय के 100 साल पूरे होने के मौके पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए छात्रों को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने रवींदनाथ टैगोर के गुजरात कनेक्शन का भी जिक्र किया और बताया कि बांये कंधे पर साड़ी का पल्लू रखने का चलन टैगोर परिवार की बहू ज्ञाननंदनी देवी ने शुरू किया था। साथ ही उन्होंने महिला सशक्तीकरण संगठनों से इस पर और रिसर्च करने का आह्वान किया। आपको बता दें कि गुजरात में महिलाएं सीधे पल्ले यानी साड़ी का पल्लू दाहिने कंधे पर ही रखती हैं।

पीएम ने अपने संबोधन के दौरान गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के गुजरात कनेक्शन का उल्लेख करते हुए कहा, “गुरुदेव के बड़े भाई सत्येंद्र नाथ टैगोर जब आईसीएस में थे, तो उनकी नियुक्ति गुजरात में भी हुई थी। इसलिए रवींद्रनाथ टैगोर अक्सर गुजरात जाते थे। उन्होंने काफी लंबा समय गुजरात में बिताया था।“

उन्होंने कहा कि अहमदाबाद में रहते हुए उन्होंने दो लोकप्रिय बांग्ला कविताएं भी लिखी थीं। उन्होंने अपनी रचना क्षुधित पाषाण का एक हिस्सा भी गुजरात प्रवास के दौरान ही लिखा था। मोदी ने बताया कि गुजरात की एक बेटी गुरुदेव के घर पर बहू बनकर आईं।

पीएम ने महिला सशक्तीकरण के संगठनों को बांये कंधे पर साड़ी के पल्लू रखने के प्रचलन पर अध्ययन करने का आह्वान करते हुए बताया कि सत्येंद्र नाथ टैगोर जी की पत्नी ज्ञाननंदनी देवी जी जब अहमदाबाद में रहती थीं तो उन्होंने देखा कि वहां की स्थानीय महिलाएं अपनी साड़ी के पल्लू को दाहिने कंधे पर रखती थीं। अब दायें कंधे पर पल्लू से महिलाओं को काम करने में भी कुछ दिक्कत होती थी।यह देखकर ज्ञाननंदनी देवी ने आइडिया निकाला कि क्यों ने साड़ी के पल्लू को बांये कंधे पर रखा जाए। मुझे ठीक-ठीक तो नहीं याद है लेकिन कहते हैं कि बांये कंधे पर साड़ी का पल्लू उन्हीं का देन है।

आपको बता दें कि ज्ञाननंदनी देवी रविंद्रनाथ टैगोर के बड़े भाई सत्येंद्रनाथ टैगोर की पत्नी थीं। वह 1863 में भारतीय सिविल सर्विस में जाने वाली पहली भारतीय महिला थीं। बताया जाता है कि ज्ञाननंदनी देवी ने अपनी इंग्लैंड और बॉम्बे की यात्राओं के अनुभवों और पारसी गारा पहनने के तरीकों को मिलाकर साड़ी पहनने का तरीका निकाला जो आज भी भारत में प्रचलन में है। बताते हैं कि सबसे पहले इसे ब्रह्मसमाज की औरतों ने अपनाया था इसलिए इसे ब्रह्मिका साड़ी कहा गया।

 

Shobha Ojha

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