राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के नर्स और फार्मासिस्ट को कोविड टीकाकरण का प्रशिक्षण देने के लिए अपोलो मेडिस्किल्स के साथ एक करार किया है।
केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने गुरुवार को यहां बताया कि इसके प्रशिक्षण के लिए निगम धन उपलब्ध करायेगा। यह प्रशिक्षण नौ दिन का होगा तथा इसमें ऑनलाइन और भौतिक कक्षाएं शामिल होंगी। प्रशिक्षण का पाठ्यक्रम केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के दिशा निर्देशों के अनुरूप तैयार किया गया है।
मंत्रालय के अनुसार इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत अगले कुछ महीनों में हजारों लोगों को प्रशिक्षित किया जाएगा। देश में करोड़ों लोगों का कोविड टीकाकरण किया जाना है। ये प्रशिक्षित लोग इसमें सहायक बनेंगे। इस करार पर निगम के उप महाप्रबंधक सुरेश कुमार शर्मा और मेडिस्किल्स के कारोबार प्रमुख विशाल सिन्हा ने हस्ताक्षर किये।
सेंटर फार सेलुलर एंड मॉलीक्यूलर बॉयोलॉजी के निदेशक डॉ. राकेश मिश्रा ने गुरुवार को यहां उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू से मुलाकात की और उन्हें हाल ही में ब्रिटेन तथा दक्षिण अफ्रीका में पाये गये कोरोना वायरस के नये स्वरूप से अवगत कराया।
डॉ. मिश्रा ने उपराष्ट्रपति को बताया कि कोरोना वायरस के नये स्वरूप से टीकों की प्रभावशीलता में परिवर्तन की संभावना कम है। इसके अलावा, ऐसा कोई सबूत नहीं है जो बताता है कि नया स्वरूप मरीजों के लिए अधिक नुकसानदेह है, हालांकि वे अधिक संक्रामक हैं। उन्होंने बताया कि वायरस के इस स्वरूप से भी उसी तरह निपटा जा सकता है जिस तरह उसके पहले रूप से निपटने की तैयारी की जा रही है।
उपराष्ट्रपति ने सीसीएमबी में कोरोना वायरस के नए स्वरूप का भारत में होने वाला संभावित प्रभाव और वायरस के विभिन्न पहलुओं पर किए जा रहे कार्यों के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की थी।
यहां जारी एक आधिकारिक विज्ञप्ति के मुताबिक इस अवसर पर सीसीएमबी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. के लक्ष्मी राव भी मौजूद थे। डा. मिश्रा ने श्री नायडू को बताया कि इस बात की जांच की जा रही है कि भारत में कोरोना वायरस का नया स्वरूप मौजूद है या नहीं।
उप राष्ट्रपति के समक्ष कोरोना वायरस को लेकर सीसीएमबी की ओर से किये जा रहे कार्यों की प्रस्तुति देते हुए डॉ मिश्रा ने कहा कि कोरोना वायरस का नया स्वरूप अन्य वायरस की तुलना में 71 फीसदी अधिक संक्रामक है। उन्होंने कहा कि दक्षिण अफ्रीका में भी ऐसे समानान्तर वायरस की पहचान की गयी है जो युवा लोगों को अधिक प्रभावित करता है। इस पर गहन अनुसंधान की जरूरत है।
सीसीएमबी के निदेशक ने बताया कि सीसीएमबी और देश के अन्य शोधकर्ताओं द्वारा अनुक्रमित जीनोम के विश्लेषण से पता चला है कि भारत में वायरस का प्रारंभिक प्रसार मुख्य रूप से नये भारत विशिष्ट क्लैड के कारण हुआ था, जिसका नाम आई/ए3आई क्लैड था। वायरस के इस स्वरूप का भारत में प्रवेश दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के जरिए हुआ था।
सीसीएमबी की ओर से किए गए विश्लेषण से यह पता चला है कि समय के साथ, कमजोर ए3आई क्लैड को अंततः ए2ए क्लैड द्वारा बदल दिया गया था, जो विश्व स्तर पर प्रचलित स्ट्रेन भी है।
उन्होंने कहा कि सीसीएमबी कोरोना वायरस के नमूनों का परीक्षण शुरू करने वाली पहली गैर-आईसीएमआर प्रयोगशाला थी। इसने अन्य शोध संस्थानों और विश्वविद्यालयों में परीक्षण के लिए एसओपी भी स्थापित किये। इसने परीक्षण दिशा-निर्देशों के आधार पर चिकित्सा अस्पतालों और अन्य परीक्षण केंद्रों के 200 से अधिक कर्मियों को प्रशिक्षित किया है।
डॉ. मिश्रा ने कहा कि सीसीएमबी ने अभी तक आरटी-पीसीआर पद्धति के जरिये 50,000 से अधिक नमूनों की जांच की है। उन्होंने कहा कि सभी सीएसआईआर लैबों ने अब तक सात लाख से अधिक नमूनों की जांच की है। उन्होंने यह भी कहा कि सीसीएमबी के ड्राई स्वैब डायरेक्ट आरटी-पीसीआर पद्धति को आईसीएमआर ने मंजूरी दे दी है।
राजधानी में वैश्विक महामारी कोविड-19 की रोकथाम के लिये पहले चरण में 51 लाख लोगों को वैक्सीन लगायी जाएगी और इसके लिए एक करोड़ दो लाख वैक्सीन की आवश्यकता होगी।